शंकर दा
स्मृति लेख | मानोशी चैटर्जी“शंकर दा नहीं रहे मुनिया।”
“ओह“
शंकरदा की उम्र हो चुकी थी। अभी-अभी मिल के आ रही थी उनसे चन्दननगर के इस बार के विज़िट के दौरान। शंकर दा मेरे पिताजी से दो-तीन साल बड़े थे। मेरे परदादा जी एक डॉक्टर थे और प्रथम विश्वयुद्ध में भाग लिया था उन्होंने। उनकी बाद में झेलम में पोस्टिंग हुई थी। बाद में जब वे चन्दननगर आ कर रहने लगे, तो शंकर दा हमारे घर काम पर लगे थे। शंकर दा अपने भाई-बहनों के साथ सामने ही एक मिट्टी की कुटिया में रहते थे। हमारे घर में उस वक़्त गायें हुआ करती थीं। गायों की देख-रेख से ले कर घर-आँगन बुहारने तक का काम शंकर दा ही करते थे। बाद में दादाजी और दादीजी और फिर आख़िरी तक हमारे घर वे काम करते रहे।
गर्मी की छुट्टियों में मैं हर साल दादा-दादी जी से मिलने चंदननगर जाया करती थी। कोरबा से हम जब चन्दननगर दादाजी के पास घूमने आते तो शंकर दा हमारी टाफ़ी लाने जैसी छोटी-छोटी फ़रमाइशें पूरी करते। शंकर दा को घर में परिवार के सदस्य जैसा ही सम्मान प्राप्त था और दादीजी उन्हें बेटे जैसा ही प्यार करतीं।
मेरे दादाजी के गुज़र जाने के बाद जब हम कोरबा से चन्दननगर रहने आ गये, तब पाया कि दादी जी शंकर दा पर शायद हमसे भी ज़्यादा निर्भर थीं। अपनी छोटी-छोटी ज़रूरतों के लिये वे सबसे पहले शंकर दा को ही गुहार लगातीं। शंकर दा सुबह-सुबह आ कर घर के खिड़की दरवाज़े खोलते, आँगन बुहारते, गायों को चारा डालते, धोने वाले कपड़े भिगोते और फिर सारे दिन ही कुछ न कुछ करते रहते। दादी पुराने ज़माने की थीं, बिल्कुल वक़्त पर खाना, चाय, सोना सब ठीक समय पर। हर काम के लिये दादी जी शंकर दा को ही कहतीं। ठीक चार बजे, वे शंकर दा को हाँक लगातीं, “शंऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽकर . . . ओ शंऽऽऽऽऽऽऽऽकर . . . चाय पीने आ जा।”और शंकर दा की तत्पर आवाज़, अपनी कुटिया से, “जाऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽईईईई . . .” हम कहते, “अच्छा है जो शंकर दा का नाम शंकर है, दादीजी को काफ़ी पुण्य हो जाता है रोज़, इतने बार भगवान का नाम लेने से।”
मैं कभी भी बहुत स्वावलम्बी मानसिकता की नहीं रही, स्वभावतः। कहीं जाना हो, पास बाज़ार तक भी, तो कोई साथ रहे तो आसान लगता है। तो उस वक़्त भी, अपनी कज़िन के घर जाने के लिये (कोई १०-१५ मिनट चलने का रास्ता) मैं शंकर दा से कहती, “शंकर दा मेरे साथ चलिये, पहुँचा आइये।” शंकर दा मेरे साथ निकल चलते। पर शंकर दा अपनी चाल से और मैं अपनी तेज़ चाल से। तो होता यह कि शंकर दा मुझ से कई क़दम दूर पीछे और मैं दीदी के घर पहुँच भी जाती, एक तरह से भूल ही जाती कि शंकर दा साथ थे। और तब ५ मिनट बाद, बेल बजती, “मुनिया, तुम पहुँच गई न?”
“हाँ शंकर दा, अब आप जाइये, दो घंटे बाद आ जायेंगे क्या फिर?”
बहुत सारी यादें जुड़ी हैं शंकर दा के साथ। इस बार जा कर सुना शंकर दा बीमार हैं। अभी भी वही कुटिया है उनकी। उन्होंने तो शादी नहीं की, भाई-बहनों के परिवार में ही रहते थे। मैं उनसे मिलने गई। वे लेटे हुए थे, बिल्कुल बूढ़े हो चुके थे, अब तो काम भी नहीं करते थे कुछ सालों से। मैं उनके सिरहाने बैठी, सिर पर हाथ फेरा और उनकी तबीयत पूछी। डॉक्टर हाई ब्लड प्रेशर बता रहे थे। उनकी आँखों में पानी था।”जँवाईबाबू कैसे हैं? तुम कैसी हो?” ये सब पूछा। ज़्यादा क्या कर सकती थी मैं। यही बस कर सकते हैं हम हमेशा ही . . . बस कुछ पैसे ही दे कर आ गई। कहा, “शंकर दा, अगर आप बुरा न मानें तो आपको कुछ पैसे दे कर जा रही हूँ, आप को ज़रूरत होगी। आपको क्या खाने का मन है बताइये, मैं ला देती हूँ।” शंकर दा ने कहा, “न बेटा बुरा क्या मानना, माँ कुछ दे तो बेटा कभी इंकार करता है क्या?”
मम्मी के आज फ़ोन पर यह ख़बर सुनाते ही सारी यादें और शंकर दा का बूढ़ा चेहरा बार-बार सामने आ रहा है। यही जीवन है . . . और फिर मृत्यु . . . इसी बीच होती हैं मान-अभिमान, ऊँचे-नीचे, दोस्ती-दुश्मनी की बातें। रह जाता है वही संसार और कुछ ऐसे पल जो गढ़ जाते हैं एक युग। कथाएँ बनती हैं और हमारी स्मृति के किसी कोने में रह जाते हैं—संस्मरण।
इस विशेषांक में
कविता
- तुम्हारा प्यार आशा बर्मन | कविता
- आकांक्षा आशा बर्मन | कविता
- जागृति आशा बर्मन | कविता
- मेरा सर्वस्व आशा बर्मन | कविता
- नित – नव उदित सफ़र डॉ. रेणुका शर्मा | कविता
- इन्द्रधनुषी लहर डॉ. रेणुका शर्मा | कविता
- पिता का दिल डॉ. रेणुका शर्मा | कविता
- पिता डॉ. रेणुका शर्मा | कविता
- नया साल डॉ. रेणुका शर्मा | कविता
- बसन्त आया था डॉ. रेणुका शर्मा | कविता
- ये पत्ते डॉ. रेणुका शर्मा | कविता
- एक मुट्ठी संस्कृति डॉ. रेणुका शर्मा | कविता
- जीवंत आसमान की धरती का जादू डॉ. रेणुका शर्मा | कविता
- राह डॉ. अंकिता बर्मन | कविता
- मुस्कान डॉ. अंकिता बर्मन | कविता
- अग्नि के सात फेरे तरुण वासुदेवा | कविता
- माँ और स्वप्न तरुण वासुदेवा | कविता
- ये पैग़ाम देती रहेंगी हवायें निर्मल सिद्धू | कविता
- उम्र के तीन पड़ाव निर्मल सिद्धू | कविता
- वह पूनम कासलीवाल | कविता
- तुम कहाँ खो गए . . . प्राण पूनम कासलीवाल | कविता
- हर बार पूनम कासलीवाल | कविता
- आना-जाना पूनम कासलीवाल | कविता
- पिता हो तुम पूनम चन्द्रा ’मनु’ | कविता
- माँ हिन्दी पूनम चन्द्रा ’मनु’ | कविता
- कैकयी तुम कुमाता नहीं हो पूनम चन्द्रा ’मनु’ | कविता
- कृष्ण संग खेलें फाग पूनम चन्द्रा ’मनु’ | कविता
- साँवरी घटाएँ पहन कर जब भी आते हैं गिरधर पूनम चन्द्रा ’मनु’ | कविता
- कटघरा प्रीति अग्रवाल 'अनुजा' | कविता
- आईना प्रीति अग्रवाल 'अनुजा' | कविता
- मुलाक़ात प्रीति अग्रवाल 'अनुजा' | कविता
- पेड़ डॉ. शैलजा सक्सेना | कविता
- माँ! मैं तुम सी न हो पाई! डॉ. शैलजा सक्सेना | कविता
- चिड़िया का होना ज़रूरी है डॉ. शैलजा सक्सेना | कविता
- मूड (Mood) डॉ. शैलजा सक्सेना | कविता
- गुरुदेव सीमा बागला | कविता
- मेरी बिटिया, मेरी मुनिया संदीप कुमार सिंह | कविता
- अधूरी रह गई संदीप कुमार सिंह | कविता
- चंदा, क्या तुम भी एकाकी हो? संदीप कुमार सिंह | कविता
- मैं नदी हूँ सविता अग्रवाल ‘सवि’ | कविता
- लेखनी से संवाद सविता अग्रवाल ‘सवि’ | कविता
- हमारे पूर्वज सीमा बागला | कविता
- मेरा बचपन वाला ननिहाल सीमा बागला | कविता
- धारा ३७० सीमा बागला | कविता
- परिक्रमा सुरजीत | कविता
- तू मिलना ज़रूर सुरजीत | कविता
- प्रवास कृष्णा वर्मा | कविता
- वायरस डॉ. निर्मल जसवाल | कविता
- लाईक ए डायमण्ड इन द स्काई डॉ. निर्मल जसवाल | कविता
- लिफ़ाफ़ा प्राची चतुर्वेदी रंधावा | कविता
- चार्ली हेब्दो को सलाम करते हुए धर्मपाल महेंद्र जैन | कविता
- रोबॉट धर्मपाल महेंद्र जैन | कविता
- मेरे टेलीस्कोप में धरती नहीं है धर्मपाल महेंद्र जैन | कविता
- निज भाग्य विधाता परिमल प्रज्ञा प्रमिला भार्गव | कविता
- आ गया बसंत है परिमल प्रज्ञा प्रमिला भार्गव | कविता
- कुछ कहा मधु भार्गव | कविता
- मेरी माया मधु भार्गव | कविता
- मधु स्मृति स्नेह सिंघवी | कविता
- अश्रु स्नेह सिंघवी | कविता
- निमंत्रण स्नेह सिंघवी | कविता
- मैं हवा हूँ इन्दिरा वर्मा | कविता
- मेरी पहचान इन्दिरा वर्मा | कविता
- चिट्ठियाँ इन्दिरा वर्मा | कविता
- वह कोने वाला मकान इन्दिरा वर्मा | कविता
- एक दिया जलाया इन्दिरा वर्मा | कविता
- आशीर्वाद इन्दिरा वर्मा | कविता
- बंधन कृष्णा वर्मा | कविता
- सोंधी स्मृतियाँ कृष्णा वर्मा | कविता
- स्त्री कृष्णा वर्मा | कविता
- रेत कृष्णा वर्मा | कविता
- ज़िन्दगी का साथ दीप्ति अचला कुमार | कविता
- छोटे–बड़े सुख दीप्ति अचला कुमार | कविता
- सिमटने के दिन दीप्ति अचला कुमार | कविता
- दुविधा दीप्ति अचला कुमार | कविता
- दिशाभ्रम आशा बर्मन | कविता
- मैं और मेरी कविता आशा बर्मन | कविता
- अपेक्षायें आशा बर्मन | कविता
- प्रश्न आशा बर्मन | कविता
- सन्नाटे अम्बिका शर्मा | कविता
- रोज़ सुबह अम्बिका शर्मा | कविता
- इत्मीनान अम्बिका शर्मा | कविता
- मन की आँखें आशा बर्मन | कविता
पुस्तक समीक्षा
- सहज स्नेह पगी – 'कही-अनकही' डॉ. शैलजा सक्सेना | पुस्तक समीक्षा
- भक्ति, वैराग्य तथा आध्यात्मिक भावों की निश्छल अभिव्यक्ति: ’निर्वेद आशा बर्मन | पुस्तक समीक्षा
- प्रवासी कथाकार शृंखला – शैलजा सक्सेना : समीक्षा प्रो. अमिता तिवारी | पुस्तक समीक्षा
- सम्भावनाओं की धरती: कैनेडा गद्य संकलन डॉ. अरुणा अजितसरिया | पुस्तक समीक्षा
- युगीन यातनाओं को रेखांकित करती कविताएँ डॉ. मनोहर अभय | पुस्तक समीक्षा
- विश्वास की रौशनी से भरी कविताएँ: 'क्या तुम को भी ऐसा लगा?' डॉ. रेखा सेठी | पुस्तक समीक्षा
पत्र
कहानी
- भड़ास सतीश सेठी | कहानी
- सूखे पत्ते सतीश सेठी | कहानी
- उसने सच कहा था सुमन कुमार घई | कहानी
- स्वीकृति मानोशी चैटर्जी | कहानी
- दो बिस्तर अस्पताल में डॉ. शैलजा सक्सेना | कहानी
- एक और विदाई सविता अग्रवाल ‘सवि’ | कहानी
- वसंत रुत डॉ. निर्मल जसवाल | कहानी
- एक खेल अटकलों का डॉ. हंसा दीप | कहानी
- अक्स डॉ. हंसा दीप | कहानी
- विशाखा कृष्णा वर्मा | कहानी
- बेटे का सुख विजय विक्रान्त | कहानी
- पगड़ी सुमन कुमार घई | कहानी
साहित्यिक आलेख
- समाजों का कैनवास–सम्भावनाओं की धरती अनिल जोशी | साहित्यिक आलेख
- कैनेडा के हिंदी साहित्य में योगदान देने वाले साहित्यकार डॉ. दीपक पाण्डेय | साहित्यिक आलेख
- कैनेडा की राजधानी ओटवा में हिंदी साहित्य की भूमिका डॉ. जगमोहन हूमर | साहित्यिक आलेख
- कैनेडा में हिंदी-शिक्षण परंपरा में स्थानीय संस्थाओं की भूमिका डॉ. दीपक पाण्डेय | साहित्यिक आलेख
- कैनेडा की विपुल और समृद्ध कविता धारा का परिचय कराता काव्य संकलन–सपनों का आकाश अनिल जोशी | साहित्यिक आलेख
- अचला दीप्ति कुमार, व्यक्तित्व तथा कृतित्व आशा बर्मन | साहित्यिक आलेख
- कृष्णा वर्मा के सृजन-कर्म से गुज़रते हुए डॉ. पूर्वा शर्मा | साहित्यिक आलेख
- राग-विराग के समभाव की कवयित्री: इंदिरा वर्मा! डॉ. सुमन सिंह | साहित्यिक आलेख
रचना समीक्षा
लघुकथा
कविता - हाइकु
स्मृति लेख
गीत-नवगीत
किशोर साहित्य कहानी
चिन्तन
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
व्यक्ति चित्र
बात-चीत
- डॉ. नूतन पाण्डेय द्वारा टोरोंटो, कैनेडा निवासी डॉ. शैलजा सक्सेना से बातचीत डॉ. नूतन पांडेय | बात-चीत
- कैनेडा की हिंदी कथाकार हंसा दीप से साक्षात्कार डॉ. दीपक पाण्डेय | बात-चीत
- डॉ. दीपक पाण्डेय द्वारा कैनेडा निवासी डॉ. स्नेह ठाकुर से साक्षात्कार डॉ. दीपक पाण्डेय | बात-चीत
- कैनेडा निवासी राधेश्याम त्रिपाठी से डॉ. नूतन पाण्डेय की बातचीत डॉ. नूतन पांडेय | बात-चीत
- कैनेडा निवासी डॉ. रत्नाकर नराले से डॉ. नूतन पाण्डेय का संवाद डॉ. नूतन पांडेय | बात-चीत
- कैनेडा निवासी व्यंग्यकार धर्मपाल महेंद्र जैन से डॉ. दीपक पाण्डेय का संवाद डॉ. दीपक पाण्डेय | बात-चीत