सूखे पत्ते
कहानी | सतीश सेठीएक लम्बे अरसे के बाद विदेश से रघुबीर अपने शहर वापिस लौटा। बहुत उत्सुक था अपनी भूली-बिसरी यादों को फिर से जीने के लिए। जब वो अपने शहर टैक्सी द्वारा अपने घर पहुँचा तो रात बहुत हो चुकी थी। माता–पिता का स्वर्गवास हुए तो एक अरसा हो चुका था और अब घर में बड़ी बहन रहती थी। दरवाज़ा खटखटाया, बड़ी बहन ने दरवाज़ा खोला और रघुबीर को घर के अन्दर ले गई । रघुबीर को उसके पुराने कमरे में ठहराया गया जहाँ उसने अपना सारा सामान टिका दिया। लम्बा हवाई सफ़र फिर रेलगाड़ी से रेलवे स्टेशन और फिर टैक्सी से घर तक का सफ़र, रघुबीर बहुत थक चुका था। हाथ-मुँह धो के थोड़ी देर आराम करने के लिए रघुबीर बिस्तर पे लेट गया। आँखें आधी सी बन्द हुईं ही थी, उसे आभास हुआ जैसे किसी ने पुकारा हो, धीरे से सर के बालों को सहलाते पूछा, “सफ़र कैसा रहा तुम्हारा। बड़ी ही देर बाद आए हो अपने घर वापिस।” इन्हीं ख़्यालों में खोया था, अचानक आवाज़ आई—खाना लग गया है, जल्दी से आ जाओ सभी इन्तज़ार कर रहे हैं। मन में बरबस ही ख़्याल आया, मेरा इन्तज़ार करने वाली जो मेरे घर पहुँचने से पहले घर की दहलीज़ पे आ खड़ी होती थी वो तो कब की इन्तज़ार से मुक्त हो चुकी। अब कौन इन्तज़ार करता है मेरा उस की तरह?
खाने पे सभी परिवारजनों से बातचीत हुई। इधर–उधर की बातें पड़ोस की बातें और कुछ रिश्तेदारों की बातें चल रहीं थीं मगर थकान से चूर रघुबीर को ज़्यादा कुछ समझ नहीं आ रहा था। खाना खाते-खाते नींद से भरी आँखें बंद हुई जा रहीं थी। रघुबीर कमरे में जाते ही बिस्तर पे लेट गया ना जाने कब उसे गहरी नींद आ गयी। इतनी गहरी नींद मुद्दत के बाद आई थी रघुबीर को और पता ही ना चला कब सुबह हो गई।
सुबह जल्दी तैयार हो कर रघुबीर बड़ी उत्सुकता से घर से पैदल ही निकाल पड़ा और अपना गली मुहल्ला घूमने लगा। पूरे पंद्रह वर्ष बाद विदेश से लौटा था। बहुत सी यादें , पुराने क़िस्से मन में तरंगों की तरह उठ रहे थे।
पड़ोस में रहने वाली वो बज़ुर्ग औरत जो हमेशा सफ़ेद कपड़े पहनती, सर पे मोतिया रंग की सफ़ेद कढ़ाई वाली चुनरी ओढ़े रहती और सर्दी के मौसम में ऊपर से ग़र्म हल्का आसमानी रंग का शॉल भी ओढ़ लेती थी। गोरा रंग ऊँचा क़द सब उसे दादी कहते थे। रघुबीर दादी को अक़्सर याद करता रहता और सोचता कि उससे एक दिन ज़रूर मिलेगा। मुहल्ले के सभी बच्चे जब उन्हें प्रेम से दादी माँ कह के बुलाते तो वो बड़ी प्रसन्न होती और वो भी सब से बड़ा ही दुलार करती थी। दादी माँ कहते ही वो कितनी दुआयें देती सर पे हाथ फ़ेर आशीर्वाद देती। दादी को मिलने रघुबीर उनके घर पहुँचा तो पता चला दादी पिछले वर्ष स्वर्ग सिधार गई थी। रघुबीर बड़ा दुखी हुआ और उसका का दिल बहुत उदास हो गया। सोच रहा था काश वो एक साल पहले आया होता तो दादी का आशीर्वाद मिल जाता। सभी बच्चे प्रेम से मुहल्ले में एक कड़कती आवाज़ वाली औरत को सरदारनी मौसी और उसके भाई को सरदार मामा कहते थे, पता चला वो भी पिछले वर्ष स्वर्ग सिधार गए थे। कितने ही बचपन के दोस्त शहर छोड़ कहीं और जा बसे थे। बहुत कुछ बदल चुका था।
रघुबीर टैक्सी में सारा शहर घूमने के लिए निकल पड़ा। कुछ बचपन के दोस्तों से रास्ते में मुलाक़ात करते वो अपने स्कूल पहुँच गया। पुराना लोहे का बड़ा सा दरवाज़ा जिस पर स्कूल का नाम लिखा था, देख के रघुबीर बड़ा खुश हुआ। प्रिन्सिपल साहिब से इजाज़त ले कर रघुबीर सारे स्कूल में घूमा आया मगर उसे कोई पुराना अध्यापक नहीं मिला। सब सेवा निवृत हो चुके थे। उसे तो स्कूल छोड़े अरसा हो चुका था और वक़्त बहुत आगे निकल चुका था। फिर टैक्सी में बैठ वो पुरानी हवेली की ओर निकल पड़ा जो स्कूल से थोड़ा आगे थी। रघुबीर ने जब नज़र उस ओर दौड़ाई जहाँ पुरानी हवेली हुआ करती थी कभी, तो देखा वहाँ कितने ही छोटे-छोटे घर बन चुके थे और हवेली का निशाँ तक नहीं बचा था। कितना कुछ बदल गया था उसे लगा उस कि यादों का सारा ख़ज़ाना जैसे खो गया हो।
शहर में जगह-जगह घूमा मगर उसे कुछ भी वैसा ना लगा जो पहले जैसा हो। कुछ पुराने दोस्त मिले, पुरानी बातें बहुत हुईं लेकिन सब की ज़िन्दगी में ज़िम्मेदारियाँ बढ़ चुकी थीं कुछ परेशान तो कुछ बहुत समृद्ध और व्यस्त हो चुके थे। रघुबीर को लगा कि यहाँ सब बदल गया, किसी को किसी का इन्तज़ार नहीं सभी अपनी दुनियाँ में व्यस्त हो चुके थे। सोच रहा था कि काश वो कभी शहर छोड़ कर ना जाता। उसे बहुत मायूसी हुई, लगा उसकी यादों का पुराना ख़ज़ाना ज़मीन में गहरा गड़ गया है। उसे लगा जैसे वो गहरी नींद से वर्षों बाद आज उठा हो और सब कुछ बदल गया हो।
इस विशेषांक में
कविता
- तुम्हारा प्यार आशा बर्मन | कविता
- आकांक्षा आशा बर्मन | कविता
- जागृति आशा बर्मन | कविता
- मेरा सर्वस्व आशा बर्मन | कविता
- नित – नव उदित सफ़र डॉ. रेणुका शर्मा | कविता
- इन्द्रधनुषी लहर डॉ. रेणुका शर्मा | कविता
- पिता का दिल डॉ. रेणुका शर्मा | कविता
- पिता डॉ. रेणुका शर्मा | कविता
- नया साल डॉ. रेणुका शर्मा | कविता
- बसन्त आया था डॉ. रेणुका शर्मा | कविता
- ये पत्ते डॉ. रेणुका शर्मा | कविता
- एक मुट्ठी संस्कृति डॉ. रेणुका शर्मा | कविता
- जीवंत आसमान की धरती का जादू डॉ. रेणुका शर्मा | कविता
- राह डॉ. अंकिता बर्मन | कविता
- मुस्कान डॉ. अंकिता बर्मन | कविता
- अग्नि के सात फेरे तरुण वासुदेवा | कविता
- माँ और स्वप्न तरुण वासुदेवा | कविता
- ये पैग़ाम देती रहेंगी हवायें निर्मल सिद्धू | कविता
- उम्र के तीन पड़ाव निर्मल सिद्धू | कविता
- वह पूनम कासलीवाल | कविता
- तुम कहाँ खो गए . . . प्राण पूनम कासलीवाल | कविता
- हर बार पूनम कासलीवाल | कविता
- आना-जाना पूनम कासलीवाल | कविता
- पिता हो तुम पूनम चन्द्रा ’मनु’ | कविता
- माँ हिन्दी पूनम चन्द्रा ’मनु’ | कविता
- कैकयी तुम कुमाता नहीं हो पूनम चन्द्रा ’मनु’ | कविता
- कृष्ण संग खेलें फाग पूनम चन्द्रा ’मनु’ | कविता
- साँवरी घटाएँ पहन कर जब भी आते हैं गिरधर पूनम चन्द्रा ’मनु’ | कविता
- कटघरा प्रीति अग्रवाल 'अनुजा' | कविता
- आईना प्रीति अग्रवाल 'अनुजा' | कविता
- मुलाक़ात प्रीति अग्रवाल 'अनुजा' | कविता
- पेड़ डॉ. शैलजा सक्सेना | कविता
- माँ! मैं तुम सी न हो पाई! डॉ. शैलजा सक्सेना | कविता
- चिड़िया का होना ज़रूरी है डॉ. शैलजा सक्सेना | कविता
- मूड (Mood) डॉ. शैलजा सक्सेना | कविता
- गुरुदेव सीमा बागला | कविता
- मेरी बिटिया, मेरी मुनिया संदीप कुमार सिंह | कविता
- अधूरी रह गई संदीप कुमार सिंह | कविता
- चंदा, क्या तुम भी एकाकी हो? संदीप कुमार सिंह | कविता
- मैं नदी हूँ सविता अग्रवाल ‘सवि’ | कविता
- लेखनी से संवाद सविता अग्रवाल ‘सवि’ | कविता
- हमारे पूर्वज सीमा बागला | कविता
- मेरा बचपन वाला ननिहाल सीमा बागला | कविता
- धारा ३७० सीमा बागला | कविता
- परिक्रमा सुरजीत | कविता
- तू मिलना ज़रूर सुरजीत | कविता
- प्रवास कृष्णा वर्मा | कविता
- वायरस डॉ. निर्मल जसवाल | कविता
- लाईक ए डायमण्ड इन द स्काई डॉ. निर्मल जसवाल | कविता
- लिफ़ाफ़ा प्राची चतुर्वेदी रंधावा | कविता
- चार्ली हेब्दो को सलाम करते हुए धर्मपाल महेंद्र जैन | कविता
- रोबॉट धर्मपाल महेंद्र जैन | कविता
- मेरे टेलीस्कोप में धरती नहीं है धर्मपाल महेंद्र जैन | कविता
- निज भाग्य विधाता परिमल प्रज्ञा प्रमिला भार्गव | कविता
- आ गया बसंत है परिमल प्रज्ञा प्रमिला भार्गव | कविता
- कुछ कहा मधु भार्गव | कविता
- मेरी माया मधु भार्गव | कविता
- मधु स्मृति स्नेह सिंघवी | कविता
- अश्रु स्नेह सिंघवी | कविता
- निमंत्रण स्नेह सिंघवी | कविता
- मैं हवा हूँ इन्दिरा वर्मा | कविता
- मेरी पहचान इन्दिरा वर्मा | कविता
- चिट्ठियाँ इन्दिरा वर्मा | कविता
- वह कोने वाला मकान इन्दिरा वर्मा | कविता
- एक दिया जलाया इन्दिरा वर्मा | कविता
- आशीर्वाद इन्दिरा वर्मा | कविता
- बंधन कृष्णा वर्मा | कविता
- सोंधी स्मृतियाँ कृष्णा वर्मा | कविता
- स्त्री कृष्णा वर्मा | कविता
- रेत कृष्णा वर्मा | कविता
- ज़िन्दगी का साथ दीप्ति अचला कुमार | कविता
- छोटे–बड़े सुख दीप्ति अचला कुमार | कविता
- सिमटने के दिन दीप्ति अचला कुमार | कविता
- दुविधा दीप्ति अचला कुमार | कविता
- दिशाभ्रम आशा बर्मन | कविता
- मैं और मेरी कविता आशा बर्मन | कविता
- अपेक्षायें आशा बर्मन | कविता
- प्रश्न आशा बर्मन | कविता
- सन्नाटे अम्बिका शर्मा | कविता
- रोज़ सुबह अम्बिका शर्मा | कविता
- इत्मीनान अम्बिका शर्मा | कविता
- मन की आँखें आशा बर्मन | कविता
पुस्तक समीक्षा
- सहज स्नेह पगी – 'कही-अनकही' डॉ. शैलजा सक्सेना | पुस्तक समीक्षा
- भक्ति, वैराग्य तथा आध्यात्मिक भावों की निश्छल अभिव्यक्ति: ’निर्वेद आशा बर्मन | पुस्तक समीक्षा
- प्रवासी कथाकार शृंखला – शैलजा सक्सेना : समीक्षा प्रो. अमिता तिवारी | पुस्तक समीक्षा
- सम्भावनाओं की धरती: कैनेडा गद्य संकलन डॉ. अरुणा अजितसरिया | पुस्तक समीक्षा
- युगीन यातनाओं को रेखांकित करती कविताएँ डॉ. मनोहर अभय | पुस्तक समीक्षा
- विश्वास की रौशनी से भरी कविताएँ: 'क्या तुम को भी ऐसा लगा?' डॉ. रेखा सेठी | पुस्तक समीक्षा
पत्र
कहानी
- भड़ास सतीश सेठी | कहानी
- सूखे पत्ते सतीश सेठी | कहानी
- उसने सच कहा था सुमन कुमार घई | कहानी
- स्वीकृति मानोशी चैटर्जी | कहानी
- दो बिस्तर अस्पताल में डॉ. शैलजा सक्सेना | कहानी
- एक और विदाई सविता अग्रवाल ‘सवि’ | कहानी
- वसंत रुत डॉ. निर्मल जसवाल | कहानी
- एक खेल अटकलों का डॉ. हंसा दीप | कहानी
- अक्स डॉ. हंसा दीप | कहानी
- विशाखा कृष्णा वर्मा | कहानी
- बेटे का सुख विजय विक्रान्त | कहानी
- पगड़ी सुमन कुमार घई | कहानी
साहित्यिक आलेख
- समाजों का कैनवास–सम्भावनाओं की धरती अनिल जोशी | साहित्यिक आलेख
- कैनेडा के हिंदी साहित्य में योगदान देने वाले साहित्यकार डॉ. दीपक पाण्डेय | साहित्यिक आलेख
- कैनेडा की राजधानी ओटवा में हिंदी साहित्य की भूमिका डॉ. जगमोहन हूमर | साहित्यिक आलेख
- कैनेडा में हिंदी-शिक्षण परंपरा में स्थानीय संस्थाओं की भूमिका डॉ. दीपक पाण्डेय | साहित्यिक आलेख
- कैनेडा की विपुल और समृद्ध कविता धारा का परिचय कराता काव्य संकलन–सपनों का आकाश अनिल जोशी | साहित्यिक आलेख
- अचला दीप्ति कुमार, व्यक्तित्व तथा कृतित्व आशा बर्मन | साहित्यिक आलेख
- कृष्णा वर्मा के सृजन-कर्म से गुज़रते हुए डॉ. पूर्वा शर्मा | साहित्यिक आलेख
- राग-विराग के समभाव की कवयित्री: इंदिरा वर्मा! डॉ. सुमन सिंह | साहित्यिक आलेख
रचना समीक्षा
लघुकथा
कविता - हाइकु
स्मृति लेख
गीत-नवगीत
किशोर साहित्य कहानी
चिन्तन
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
व्यक्ति चित्र
बात-चीत
- डॉ. नूतन पाण्डेय द्वारा टोरोंटो, कैनेडा निवासी डॉ. शैलजा सक्सेना से बातचीत डॉ. नूतन पांडेय | बात-चीत
- कैनेडा की हिंदी कथाकार हंसा दीप से साक्षात्कार डॉ. दीपक पाण्डेय | बात-चीत
- डॉ. दीपक पाण्डेय द्वारा कैनेडा निवासी डॉ. स्नेह ठाकुर से साक्षात्कार डॉ. दीपक पाण्डेय | बात-चीत
- कैनेडा निवासी राधेश्याम त्रिपाठी से डॉ. नूतन पाण्डेय की बातचीत डॉ. नूतन पांडेय | बात-चीत
- कैनेडा निवासी डॉ. रत्नाकर नराले से डॉ. नूतन पाण्डेय का संवाद डॉ. नूतन पांडेय | बात-चीत
- कैनेडा निवासी व्यंग्यकार धर्मपाल महेंद्र जैन से डॉ. दीपक पाण्डेय का संवाद डॉ. दीपक पाण्डेय | बात-चीत