मेरे बाबूजी!
व्यक्ति चित्र | इन्दिरा वर्मासोचते हुये बहुत समय हो गया कि बाबूजी के जीवन के विषय में कुछ लिखूँ परन्तु कहाँ से आरंभ करूँ और क्या-क्या बताऊँ उनके बारे में, यह समझ ही नहीं पा रही थी।
अनेक महान आत्माओं की कथायें लिखी गईं हैं व हम सभी उनसे कुछ न कुछ सीखते भी हैं; परन्तु वे आत्माएँ हमारे निजी जीवन से दूर होती हैं। हम उन्हें दूसरी दृष्टि से ही देखते हैं।
मेरे बाबूजी, मेरे श्वसुर, तो मेरे विवाह के बाद पास ही रहे, यह मेरा कितना बड़ा सौभाग्य रहा, शब्दों में बताना कठिन है और लिखना तो और भी कठिन। फिर भी प्रयास तो करूँगी।
मेरे बाबूजी जिनका पूरा नाम था, डॉ. मुकुंद स्वरूप वर्मा, ने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय १९२३ में, लखनऊ से मेडिकल पास करके जायन किया, जहाँ वे महामना मदन मोहन मालवीय जी के सानिध्य में व उनके बाद उनके पुत्र गोविंद मालवीय के साथ रहे व काम किया।
मालवीय जी की सलाह से बाबूजी ने वहाँ आयुर्वेदिक कॉलेज की स्थापना की। साथ ही उन्होंने बनारस नगर में अपना सर्जरी का काम भी आरम्भ किया।
कहा जाता है कि व्यस्त लोगों के पास बहुत काम आता है, कदाचित इस कारण से कि वे सब काम कुशलता से कर लेते हैं। मेरे बाबूजी भी उन्हीं में से एक थे- कर्मठ! बनारस विश्वविद्यालय में वे पढ़ाते तो थे ही, साथ-साथ लेखन का काम भी करते थे। भारत में सुबह चार बजे उठकर लिखने का काम आरंभ कर देते थे।
अभी कुछ वर्ष पहले तक उनकी कई पुस्तकें भारत में उपलब्ध थीं। हिन्दी पाठकों की सुविधा के लिये उन्होंने कई अंग्रेज़ी मेडिकल पुस्तकों का हिन्दी में अनुवाद किया। जिनमें 'ग्रेज़ अनाटोमी (Grays Anatomy)’ भी सम्मिलित है, जो कि निश्चय ही बहुत बड़ा काम है। नागरी प्राचारिणी सभा की ओर से उन्हें मंगला प्रसाद पारितोषिक से भी सम्मानित किया गया। बनारस विश्व विद्यालय की सेवा में वे निरतंर रहे तथा आयुर्वेद की शिक्षा प्रणाली में भी उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा।
अवकाश प्राप्त करने के पश्चात वे दिल्ली के ’केंद्रीय हिंदी निदेशालय (Central Hindi directorate)' के सदस्य नियुक्त किये गये जहाँ उन्होंने हिन्दी भाषा को जन उपयोगी बनाने का काम किया ।
बाबूजी श्री रामचरितमानस के प्रेमी थे। बहुत से प्रसंग उन्हें कंठस्थ थे और जब वे उनके प्रिय भागों के विषय में बोलते तो जैसे सरस्वती का आगमन हो जाता। धाराप्रवाह बोलते हुए प्रेम मग्न हो जाते व अश्रुधार बह निकलती।
बाबूजी अध्यात्म से भी प्रभावित रहे। रामचरितमानस के गहन अध्ययन का प्रभाव तथा अध्यात्म का अद्भुत मिश्रण उनके व्यक्तित्व में मिलता था। शांत, गम्भीर, ज्ञान के भंडार साथ ही परोपकारी, दयालु शिक्षक!
यहाँ, मैं, बनारस जो अब वाराणसी नाम से जाना जाता है, के विषय में कुछ बताना चाहूँगी। यह नगर उत्तर प्रदेश, भारत में गंगा नदी के तट पर स्थित है तथा अपने धार्मिक वातावरण के लिये जाना जाता है। गंगा जी की आरती व अनगिनत मन्दिरों का पवित्र स्थान माना जाता है। यहाँ का काशी विश्वनाथ जी व हनुमान मंदिर देखने दूर-दूर से भक्तजन आते हैं। यहाँ के अनेक घाट भी प्रसिद्ध हैं। कहा जाता है कि काशी अर्थात बनारस में जिनकी मृत्यु होती है, वे स्वर्ग प्राप्त करते हैं। यहाँ की मिठाइयाँ व साड़ियाँ प्रसिद्ध हैं।
सौभाग्य से मेरा विवाह बनारस में हुआ, वहाँ कुछ दिन रह कर वहाँ के जीवन का अनुभव तो हुआ ही, वहाँ के मन्दिर, मिठाइयाँ, साड़ियाँ भी देखने, खाने व पहनने को मिलीं ।
१९७० में बाबूजी कनाडा आ गये तथा हम सब साथ रहने लगे। भारत का जीवन छोड़ कर यहाँ आना उनके लिये कठिन तो रहा होगा परंतु उन्होंने हमें कभी आभास न होने दिया। हमारे साथ बराबर रहे, दुख में उत्साह बढ़ाया, सुख में हमारे साथ ख़ुश हुए।
डॉक्टर होने के कारण, यहाँ आते ही उन्होंने सोचना आरंभ किया कि यहाँ क्या करना चाहिये। यहाँ अपने क्षेत्र में तो वे काम कर नहीं सकते थे, इस लिये उन्होंने रेडक्रॉस और पुस्तकालयों में जाना शुरू किया तथा कुछ कर पाने के अवसर खोजते रहे। प्रतिदिन वे रेडक्रॉस जाते व थोड़ा समय वहाँ व्यतीत करते। इस प्रकार उन्होंने वहाँ का सारा पुस्तकालय ठीक किया। वहाँ के कार्यकर्ता उन्हें जानने लगे व अनेक प्रकार की सलाह उनसे लेने लगे। बाबूजी का समय सकारात्मक ढंग से व्यतीत तो होता ही था, उनके मित्र भी बन गये, जिनके साथ उनका संपर्क अन्त तक बना रहा।
८० वर्ष की उम्र में बाबूजी ने पेंटिग सीखी तथा परिवार के सभी सदस्यों के लिये भिन्न-भिन्न प्रकार के चित्र बनाये जो हम सबके घरों में हैं तथा उनकी याद दिलाते हैं। चित्रकारी में उनकी रुचि देखते ही बनती थी। छोटे बच्चे को मानो नया खिलौना मिल गया। कैनवस, रंग तथा अनेक साधन जुटाये व अपना समय व्यतीत करने का सुगम साधन ढूँढ़ लिया।
भगवत गीता का एक सरल अनुवाद अंग्रेज़ी में एक मित्र के साथ मिलकर किया विशेषकर हिंदी न जानने वाले बच्चों के लिये। मानसमंदता अर्थात (mental retardation) के ऊपर हिन्दी में एक पुस्तक लिखी क्योंकि उस समय मैं ऐसी एक संस्था में काम करती थी और उन्हें लगता था कि यह क्षेत्र ऐसा है जिसके विषय में बहुत कम ज्ञान है, भारत में तो और भी कम!
बाबूजी के साथ लंबे समय तक रहने के कारण हम सभी परिवारजन एवं मित्र, संबंधी- सभी पर उनकी गहरी छाप पड़ी।
उनके प्रभावशाली जीवन से हम सभी ने सीखने का प्रयत्न किया व उनकी शिक्षा व सीख किसी न किसी रूप में याद रखने का प्रयत्न करते हैं। जैसे मैं पहले भी लिख चुकी हूँ, हमारा सारा परिवार उनके कारण एक सकारात्मक महापुरुष के साथ लम्बे समय का भागीदार रहा। परिवार के बच्चे व बड़े उनकी अमूल्य बातों, कहानियों की अभी भी चर्चा करते हैं।
बाबूजी पठन-पाठन में तो निपुण थे ही, इसी कारण वे प्रत्येक माह एक पुस्तक बच्चों के लिये मँगवाते थे। उनका कहना था कि तुरन्त बच्चे पढ़ें अथवा नहीं, घर में पुस्तकें होंगी तो कभी न कभी पढ़ेंगे, सीखेंगे तथा पुस्तक प्रेम आगे बढ़ायेंगे! बाबूजी की अनेक पुस्तकों को उचित स्थान देने के लिये हमने अपने घर में एक कमरा बनाया जहाँ परिवार के सदस्य बहुधा बैठते थे। यदाकदा यहाँ रामचरितमानस का पाठ, पूजा आदि भी होती थी।
अपने सरल व्यक्तित्व तथा सकारात्मक विचारों ने उन्हें सबका प्रिय बना दिया।
बाबूजी अपने अन्त समय तक अधिकतर अच्छे स्वास्थ्य पूर्ण रहे। बस बोलना व खाना कम कर दिया मानों सक्रिय जीवन से मोह छोड़ रहे हों।
उन दिनों वही प्रिय मित्र आये जिनके साथ उन्होंने गीता का अनुवाद किया था। उनके कहने पर, रामचरितमानस के किसी प्रसंग को बाबूजी सुनाने लगे और इसी घटना के साथ-साथ जैसे उन्होंने इस भौतिक संसार से नाता तोड़ लिया। उसके थोड़े समय बाद ही मेरे पति की गोद में अपना सिर रख कर, आँखें बंद कर लीं तथा सदा के लिये इस संसार से विदा ले ली।
बाबूजी कहते थे कि उन्हें निर्वाण नहीं चाहिए वरन् वे चाहते हैं कि वे बार-बार संसार में जन्म लें जिससे उन्हें मानव जाति की सेवा के अवसर मिलते रहें। ईश्वर से यही प्रार्थना है कि उनकी यह इच्छा पूर्ण हो!
इस विशेषांक में
कविता
- तुम्हारा प्यार आशा बर्मन | कविता
- आकांक्षा आशा बर्मन | कविता
- जागृति आशा बर्मन | कविता
- मेरा सर्वस्व आशा बर्मन | कविता
- नित – नव उदित सफ़र डॉ. रेणुका शर्मा | कविता
- इन्द्रधनुषी लहर डॉ. रेणुका शर्मा | कविता
- पिता का दिल डॉ. रेणुका शर्मा | कविता
- पिता डॉ. रेणुका शर्मा | कविता
- नया साल डॉ. रेणुका शर्मा | कविता
- बसन्त आया था डॉ. रेणुका शर्मा | कविता
- ये पत्ते डॉ. रेणुका शर्मा | कविता
- एक मुट्ठी संस्कृति डॉ. रेणुका शर्मा | कविता
- जीवंत आसमान की धरती का जादू डॉ. रेणुका शर्मा | कविता
- राह डॉ. अंकिता बर्मन | कविता
- मुस्कान डॉ. अंकिता बर्मन | कविता
- अग्नि के सात फेरे तरुण वासुदेवा | कविता
- माँ और स्वप्न तरुण वासुदेवा | कविता
- ये पैग़ाम देती रहेंगी हवायें निर्मल सिद्धू | कविता
- उम्र के तीन पड़ाव निर्मल सिद्धू | कविता
- वह पूनम कासलीवाल | कविता
- तुम कहाँ खो गए . . . प्राण पूनम कासलीवाल | कविता
- हर बार पूनम कासलीवाल | कविता
- आना-जाना पूनम कासलीवाल | कविता
- पिता हो तुम पूनम चन्द्रा ’मनु’ | कविता
- माँ हिन्दी पूनम चन्द्रा ’मनु’ | कविता
- कैकयी तुम कुमाता नहीं हो पूनम चन्द्रा ’मनु’ | कविता
- कृष्ण संग खेलें फाग पूनम चन्द्रा ’मनु’ | कविता
- साँवरी घटाएँ पहन कर जब भी आते हैं गिरधर पूनम चन्द्रा ’मनु’ | कविता
- कटघरा प्रीति अग्रवाल 'अनुजा' | कविता
- आईना प्रीति अग्रवाल 'अनुजा' | कविता
- मुलाक़ात प्रीति अग्रवाल 'अनुजा' | कविता
- पेड़ डॉ. शैलजा सक्सेना | कविता
- माँ! मैं तुम सी न हो पाई! डॉ. शैलजा सक्सेना | कविता
- चिड़िया का होना ज़रूरी है डॉ. शैलजा सक्सेना | कविता
- मूड (Mood) डॉ. शैलजा सक्सेना | कविता
- गुरुदेव सीमा बागला | कविता
- मेरी बिटिया, मेरी मुनिया संदीप कुमार सिंह | कविता
- अधूरी रह गई संदीप कुमार सिंह | कविता
- चंदा, क्या तुम भी एकाकी हो? संदीप कुमार सिंह | कविता
- मैं नदी हूँ सविता अग्रवाल ‘सवि’ | कविता
- लेखनी से संवाद सविता अग्रवाल ‘सवि’ | कविता
- हमारे पूर्वज सीमा बागला | कविता
- मेरा बचपन वाला ननिहाल सीमा बागला | कविता
- धारा ३७० सीमा बागला | कविता
- परिक्रमा सुरजीत | कविता
- तू मिलना ज़रूर सुरजीत | कविता
- प्रवास कृष्णा वर्मा | कविता
- वायरस डॉ. निर्मल जसवाल | कविता
- लाईक ए डायमण्ड इन द स्काई डॉ. निर्मल जसवाल | कविता
- लिफ़ाफ़ा प्राची चतुर्वेदी रंधावा | कविता
- चार्ली हेब्दो को सलाम करते हुए धर्मपाल महेंद्र जैन | कविता
- रोबॉट धर्मपाल महेंद्र जैन | कविता
- मेरे टेलीस्कोप में धरती नहीं है धर्मपाल महेंद्र जैन | कविता
- निज भाग्य विधाता परिमल प्रज्ञा प्रमिला भार्गव | कविता
- आ गया बसंत है परिमल प्रज्ञा प्रमिला भार्गव | कविता
- कुछ कहा मधु भार्गव | कविता
- मेरी माया मधु भार्गव | कविता
- मधु स्मृति स्नेह सिंघवी | कविता
- अश्रु स्नेह सिंघवी | कविता
- निमंत्रण स्नेह सिंघवी | कविता
- मैं हवा हूँ इन्दिरा वर्मा | कविता
- मेरी पहचान इन्दिरा वर्मा | कविता
- चिट्ठियाँ इन्दिरा वर्मा | कविता
- वह कोने वाला मकान इन्दिरा वर्मा | कविता
- एक दिया जलाया इन्दिरा वर्मा | कविता
- आशीर्वाद इन्दिरा वर्मा | कविता
- बंधन कृष्णा वर्मा | कविता
- सोंधी स्मृतियाँ कृष्णा वर्मा | कविता
- स्त्री कृष्णा वर्मा | कविता
- रेत कृष्णा वर्मा | कविता
- ज़िन्दगी का साथ दीप्ति अचला कुमार | कविता
- छोटे–बड़े सुख दीप्ति अचला कुमार | कविता
- सिमटने के दिन दीप्ति अचला कुमार | कविता
- दुविधा दीप्ति अचला कुमार | कविता
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