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वसंत रुत

वह औरत भी उसी अपार्टमेंट का हिस्सा है। कभी-कभार दोपहर के बाद यहाँ गोल घेरे के चक्कर लगाती, बेंच पर बैठ फोटो खींचती मुस्कुराती रहती है। चुस्त-दुरुस्त पेंट, जैकेट और स्नोबूट पहने पैरों को सँभलकर आहिस्ता-आहिस्ता रखती सैर करती है। यहाँ की नहीं लगती वह। 

कॉफ़ी हाउस में ऊँची टेबल-कुर्सी पर बैठी पारदर्शी शीशे में से आती-जाती कारों को देखती कॉफ़ी के घूँट भरती है। बाहर कार में से उतर एक गोरी लड़की अपनी गोद में बच्चे को उठाये अंदर प्रवेश करती है। क़रीब चार साल का बच्चा उछल-उछलकर चीज़ों की माँग करता है। कॉफ़ी सर्व करने वाली लड़की जिसके ब्लोंड सुनहरी बाल हैं, बच्चे की ओर हो जाती है। 

एक लंबा गोरा बूढ़ा, लंबी सी मोटी जैकेट पहने अंदर प्रवेश करता है। घुसते ही जैकेट को उतार कुर्सी पर रखकर ऑर्डर देता है, “वन मीडियम एक्सप्रैसो कॉफ़ी एंड गिव स्पेस फ़ॉर क्रीम।” 

“विल यू लाइक अमेरिकन कॉफ़ी?” वेटर लड़की पूछती है। 

“ओ याह! दैट्स ओ. के.!” कहकर उसने उसकी तरफ़ देखा और हाथ मिलाया। 

उस औरत ने भी भरपूर मुस्कान उसकी तरफ़ फेंकी। बूढ़ा आराम से सोफ़े पर बैठने की बजाय उसके साथ ही ऊँची टेबल कुर्सी पर बैठ गया। वह उसको नहीं जानती, मगर बहुत बार आते-जाते ‘हाय-हैलो’ होती रहती है। वे दोनों एक ही बिल्डिंग के अलग-अलग फ़्लोर पर रहते थे। बूढ़ा उस कॉफ़ी हाउस में दो बार आता था—ग्यारह बजे और फिर शाम चार बजे। वह भी क़रीब चार बजे नीचे आती थी और कभी-कभार ही कॉफ़ी पीती थी। 

उसके साथ कॉफ़ी पीने के लिए कोई भी नहीं होता था। बच्चे पढ़ने गए होते थे या जॉब पर। बूढ़े-बुज़ुर्ग इधर-उधर घूमने निकलते या वेस्ट-साउथ मॉल में आ बैठते। फ़ूड कोर्ट या टिम हॉर्टन या किसी भी खाने-पीने की जगहों पर लंबी क़तारें लगी होतीं। उसे नहीं पता था कि उनके अपार्टमेंट के साथ सटी दीवार से ही जुड़ा कॉफ़ी हाउस था—पर्कलिन। अंदर से बहुत ख़ूबसूरत सोफ़ों और ऊँची स्टूल की तरह कुर्सियों से सजाया हुआ। 

वह अकेली है। या यह कह लो, उसका जीवन साथी नहीं है कोई। पाँच महीने हो गए हैं इस बर्फ़ीली धरती पर आए हुए। बर्फ़ देखकर, उस पर चलते हुए, पैर गड़ाते हुए, हल्की-हल्की फुहार का लुत्फ़ लेते हुए, बच्चों को स्केटिंग करते देख दिल नहीं भरता। चल, और कुछ महीने रह ले इस बर्फ़ीले लावे वाली धरती पर। घर से बाहर निकलो तो चारों ओर बर्फ़ ही बर्फ़। नहीं तो कहाँ है बर्फ़? वह सोचती है। 

एक बर्फ़ ही जी रही है इस क़ुदरत में। पर क्या वह भी जी रही है? चलो, आज वह भी जीकर देखे। सोचते हुए कहती है, “आज सारा दिन उसका।” वह तैयार होती है। 

अल्बर्टा का एडमिंटन—खुला, ख़ूबसूरत और बेमिसाल। इधर जाओ तो टोरोंटो, उधर जाओ तो ब्रिटिश कोलोम्बिया, वहाँ जाओ तो विनीपैग, यहाँ आओ तो स्वर्ग: जैसपर, बैम्फ, केलोना, वैनकूवर। उफ़! सभी जीवन जी रहे हैं। साँस उसकी भी चल रही है। दौड़ रही है। हाँफ रही है। मुस्कुरा रही है। कुछ न कुछ आँखों के सामने आ ही जाता है उसके। 

स्नोबूट पहनकर लिफ़्ट से नीचे आने के लिए वह बटन दबाती है। ‘नहीं, सातवीं मंज़िल से सीढ़ियों से होकर नीचे उतरेगी।’ रोज़ तो यही कसरत करती है वह। सवेरे सीढ़ियाँ उतरती है और चढ़ती है। शाम चार बजे फिर सीढ़ियों से ही चढ़ती-उतरती है। सारी बिल्डिंग में हल्की गरमी वाला वातावरण है। दरवाज़ा खोलते ही बर्फ़ीली ठंडी हवा का झोंका उसके बालों को छूता हुआ ‘सर्र . . . ’ से गुज़र जाता है। 

वह दरवाज़ा खोल बाहर आती है। सामने कारों की क़तारें और उन पर लदी बर्फ़। उसके ज़ेहन पर भी बर्फ़ जैसा या विचारों जैसा कुछ न कुछ लदा रहता है। आज दूध का घूँट भरते ही उसे उबकाई सी आयी। पंजाब में गाय-भैंसों का हाथ से निकाला दूध लेना पड़ता है या दूधिये घर पर दे जाते हैं। यहाँ जर्मन गायों के थनों में मशीन लगी हुई है। यू-ट्यूब पर देखा-इतनी ख़स्ता हालत। मशीन से दूध निकाला जा रहा है, थनों में है या नहीं, किसी को कोई परवाह नहीं, बेशक ख़ून ही आ रहा हो। उफ़! कॉफ़ी बग़ैर दूध की, चाय में भी दूध नहीं। सोचते हुए फिर बर्फ़ की ओर उसकी नज़र उठ जाती है। 

गाँधी बकरी का दूध पीता था। गाँधी का नाम याद आते ही उसके अंदर एक हूक-सी उठती है। भारत में सारे झगड़ों की जड़ ही गाँधी की फोटो है। ये नोट गाँधीवादी हैं, हर अमीर के घर में गाँधी घुसा हुआ है। महीने के पहले दिन ही बैंकों में, फिर हाथों में, फिर ख़र्चों में और आख़िर में पता नहीं कहाँ उड़ जाते हैं ये गाँधीवादी नोट। गाँधी नीति न होती तो हमारे शहीदों की कुछ और ही राह होती। देश बहुत पहले आज़ाद होता। 

अब भी हम कौन-सा आज़ाद हैं? सोचते हुए स्नोबूट पहने पैरों को बर्फ़ पर टिकाती है। बर्फ़ पिघल रही है—फिसलने का ख़तरा है। 

पहले वह साथ वाले कॉफ़ी हाउस से कॉफ़ी लेकर बाहर बेंच पर बैठ सूरज की किरणों के साथ आँख-मिचौली खेलेगी। कॉफ़ी लेने के लिए उसके पैर उधर मुड़ जाते हैं। और अब वह बूढ़ा भी साथ वाली कुर्सी पर बैठ ख़ुद-ब-ख़ुद बातें किए जा रहा है। 

“यू आर कोरियन?” 

“नो, इंडियन।” 

“मुस्लिम?" तभी एक हिजाब पहने लड़की दाख़िल होती है। ”वह मुस्लिम हो सकती है या किसी अन्य देश की?" वह औरत उस बूढ़े को इशारा करती है। 

“नहीं, यह सीरियाई भी हो सकती है। कैनेडा कितना खुलेदिल वाला मुल्क है जो चाहे आता रहे। बट यू नो-हमारी जॉब्स . . .?” 

“क्यों? जॉब का ख़तरा तो कंपनियों की अपनी दोगली नीतियों के कारण है। अगर जॉब्स नहीं हैं तो क्यों बुलाते हैं, हर किसी को।” 

“यह इराक, पाकिस्तान, आई एस आई कितने ख़तरनाक लोग हैं।” 

बूढ़ा अपनी उम्र में भी शांत होकर कॉफ़ी पीने की बजाय ख़तरों की बातें कर रहा है। बंदूकों की, गोलियों की, आग की लपटों की या मार-काट की ही बातें किए जाता है। 

‘यह बूढ़ा इस उम्र में रोमांस की बातें क्यों नहीं करता?” वह मुस्कुराती है। और अपनी कॉफ़ी का मग उठाकर कॉफ़ी हाउस के बाहर आ जाती है। 

बूढ़े की नज़रें उसकी पीठ पर चिपकी हुई हैं। 

♦ ♦ ♦

स्प्रूम ग्रोव में रहते हैं वे दोनों। स्प्रूम ग्रोव अल्बर्टा का जीवंत अपार्टमेंट। सामने ख़ूबसूरत फूलों और दरख़्तों से भरा, साफ़-सुथरा घास वाला मैदान। ऐन बीच में बड़ी-सी स्टेज जो हर समय बच्चों और बड़ों की ख़ातिर आयोजित होने वाले कार्यक्रमों के लिए इस्तेमाल होती है। जगह-जगह पर सुविधा के लिए बार्बेक्यू रखे हुए हैं। विशेष तौर पर सर्दियों में परिवार सहित लोग हॉट डॉग, न्यूडल्ज़, चिकन नगेट्स, जूस, बीयर, वाइन लेते हुए धूप में दिन गुज़ारते हैं। धूप भी कैसी, बस चमकती किरणों से ही लोग ख़ुश हो जाते हैं। 

बीचों-बीच लक्कड़ के कटे हुए बड़े-बड़े टुकड़ों का ढेर देखकर ख़ुश होती है वह औरत। कोई न कोई आग जलाकर रखता है और कई लोग आग के इर्द-गिर्द खड़े या बैठे रहते हैं। उसको अपने देश का त्योहार ‘लोहड़ी’ याद हो आता है। बच्चे मैदान में खेलते हैं, युगल हाथ में हाथ डाले घूमते हैं और बुज़ुर्ग सैर करते हैं। उस औरत की चोर नज़र उन जोड़ों पर टिक जाती है। बुज़ुर्ग तो क्या बच्चे तक उन जोड़ों को नहीं देखते। सब अपने आप में मस्त मानो जवान लड़का-लड़की उनके लिए किसी भी आकर्षण का कारण नहीं। 

‘मेरे देश में ये जोड़े यदि इस तरह घूमते तो . . .?’ 

‘तो? सारा ब्रह्मांड रुक जाता। ख़ासकर नौजवान लड़कों की तो जान ही हथेली पर आ जाती।’ वह अपने आप हँसती है। 

‘अब मेरे देश में भी पाबंदियों के बावजूद लड़के-लड़कियाँ परवाह नहीं करते। उड़े फिरते हैं . . . एकांत के हर कोने में बाँहों में बाँहें डाले, अपने आप में मग्न रहते हैं।’ 

किसी अन्य जगह सैर करने की बजाय वह अपार्टमेंट में आकर सोफ़े पर बैठ जाती है। 

उसने बूढ़े को आते हुए देखा, पर उसके आते-आते वो ऑटोमेटिक लॉक वाला दरवाज़ा ‘खट’ से बंद हो चुका था। उस बूढ़े ने टच करके दरवाज़ा खोलने के लिए चाबियाँ ढूँढ़नी शुरू कीं। एक हाथ में पकड़ी छड़ी और दो बड़े काग़ज़ी लिफ़ाफ़ों को उसने बड़े बड़े शीशों के साथ टिकाना चाहा। उस औरत से रहा नहीं गया और उसने दौड़कर दरवाज़ा खोल दिया। 

“ओह, थैंक्यू।” वह मुस्कुराया। 

“इट्स ओ के,” वह भी मुस्कुराई। वह बडे़ कॉरीडोर में पड़े सोफ़ों पर बैठी साप्ताहिक अख़बार देख रही थी। बाहर से सैर करने के बाद वह हमेशा यहाँ बैठकर अख़बार पढ़ती है। सातवीं मंज़िल पर पहुँचने के लिए लिफ़्ट सात मिनट भी नहीं लगाएगी उसके लिए। वह बूढ़ा लिफ़्ट से ऊपर पता नहीं किस मंज़िल पर चला गया। 

कई दिन उनका आमना-सामना उसी कॉरीडोर में होता रहा। उस बूढ़े ने एक दब्बू क़िस्म का छोटा-सा खिलौने जैसा ‘चुआवा’ कुत्ता उठा रखा होता। वह लिफ़्ट से उतर सीधी लकीर पर चलता दरवाज़े को खोल बाहर निकल जाता था। वह इधर-उधर देखता भी नहीं था। उसकी आँखों में से ख़ालीपन के साथ-साथ एक उतावलापन दिखाई देता था, मानो कोई उसका पीछा कर रहा हो। 

एक दिन वह अपनी बेटी के पामेरियन पैट डॉग ‘टेली’ को घुमा रही थी। आज वह बूढ़ा भी ‘चुआवा’ को घुमा रहा था। उनका सामना उस पैदल चलने वाली घुमावदार कंकरीट की पतली सड़क पर हो गया। 

“हाय!” उसने कहा। फिर पहचान कर उसने दुबारा “ओ हाय!“ कहा। वह भी खड़ी हो गई। 

“हाउ स्वीट! वैरी स्वीट!!“ पुचकारते हुए उसने पामेरियन की ओर अपना हाथ बढ़ाया। पामेरियन उसका हाथ चाटने लगी। उसका चुआवा भी उस पामेरियन को देख उछलता हुआ धीमी-धीमी आवाज़ निकालता उसके साथ खेलने लगा। वे दोनों अपनी-अपनी भाषा छोड़ अँग्रेज़ी में बातें करने लगे। 

♦ ♦ ♦

मार-काट, गोलियों-बंदूकों की बात करने वाला बूढ़ा भी अकेला है। उसका नाम है—हैनरी। 

हैनरी 80 वर्ष की उम्र का एक तंदरुस्त बूढ़ा लग रहा था। वह आयरलैंड से अपने बेटे के पास अपना पालतू चुआवा ‘सैमी’ लेने आया था। कुछ महीने इधर रहेगा। उसकी पत्नी का पिछले साल ही देहांत हुआ था। अब वह अकेला था और पत्नी के होते हुए ही दो साल पहले उसका पुत्र और पुत्रवधू उस छोटे-से दो साल के पप्पी सैमी को उससे माँगकर ले गए थे। वह सैमी को अनाथ कुत्तों की देखभाल करने वाली ‘पैट शॉप’ से लेकर आया था—सफ़ेद और भूरा, फ़ुर्तीला, खिलौने जैसा! 

उसने जीन पर फर वाले हुड की जैकेट पहन रखी थी। उसका क़द लगभग छह फुटा था। उस अधेड़ उम्र की औरत ने अब उसको ग़ौर से देखा। गोरा, भूरी आँखों में नीलापन भी था। उस बूढ़े के कान चिपके हुए थे, गालें गुलाबी रंगत वाली और चेहरे की हड्डियाँ उभरी हुई थीं। 

हाथ मिलाने पर उसकी मज़बूती से पता चलता था कि कोई भी नौजवान ख़ुद को इस बूढ़े के बाहुपाश से ख़ुद को आसानी से छुड़ा नहीं सकता था। 

रोज़ सैर करता वह इस तरह घुलमिल गया जैसे वह उस औरत को बरसों से जानता हो। उसने कहा, “युअर नेम?”  और उसके नाम की प्रतीक्षा करने लगा। 

“या . . . नगीना,” उस औरत ने कहा। 

“या . . . नगीना। मेरा बेटा कहता है, डैड यू बोथ आर ओल्ड नाउ। आप दोनों अपना ख़्याल रखो। और मेरी बहू सैमी को ‘माय बेबी . . . माय बेबी’ कहती-पुचारकती हुई ले आयी,” कहते कहते उसकी आँखें भर आईं। अपनी पत्नी और सैमी के बिना उसने एक साल कैसे बिताया, वह ही जानता है। “मैंने अकेला रहने के लिए जन्म नहीं लिया। बेटा अपनी पत्नी को लेकर यहाँ आ गया। आयरलैंड ही रहता तो मैं सैमी को मिल तो सकता था।” 

बूढ़े की सूनी आँखों के कोयों में सैमी बसा हुआ था। सैमी को वह पुत्र की तरह मानता था। दरअसल, उसके बेटे के नौकरी पर चले जाने के बाद उसकी पत्नी ऐलिसा अपार्टमेंट में अकेली रह जाती है। इसीलिए उसका बेटा सैमी को एक तरह से उससे छीनकर ही ले आया था ताकि ऐलिसा उसके बाद अकेलापन महसूस न करे। 

“देखो, बेटे को अपनी बीवी की चिंता है, बाप की नहीं। मैं बूढ़ा अस्सी साल का। शायद और पंद्रह-बीस बरस जिऊँ। किस तरह समय बीतेगा? पिछले दिनों अपने दोस्त के साथ यूरोप घूम आया था। साल के दो महीने ही न! फिर घर काटने को दौड़ता है। फूल-पौधे देखता हूँ, बर्फ़ पड़ जाए तो ख़ुद ही साफ़ करता हूँ। ड्राई-वे भी साफ़ रखना पड़ता है। मुझे बिल्लियाँ अच्छी नहीं लगतीं, उनपर भरोसा नहीं।” 

नगीना उस की बातें सुनती हुई बीच-बीच में सिर हिलाती उसकी ‘हाँ’ में ‘हाँ’ मिलाती मुस्कुरा पड़ती। 

नगीना, पचास साल की। साफ़ रंग, क़द-काठी ठीक-ठाक। आँखों में चमक। पतली, तंदरुस्त। पैंट या कभी-कभार अपने देश के पहरावे में लंबा कुर्ता और पिंडलियों तक का पजामा। इस देश के रीति-रिवाज़ की तरह उसको भी काला रंग ज़्यादा अच्छा लगता है। जीन्ज़ पर कमर से नीचे तक शर्ट, उसके ऊपर कसी हुई जैकेट। नाक और कान में हीरे के छोटे-छोटे चमकते नग। रूची की घड़ी, रंग-बिरंगी अंगूठियाँ जिन्हें वह बदल-बदलकर पहनती है, मगर अपने पति द्वारा दी हीरे की अँगूठी उसकी उँगली पर से कभी नहीं उतरी। आँखों में काजल और होंठों को रँगना वह कभी नहीं भूलती। बालों में कहीं-कहीं सफ़ेदी है, जिन्हें वह नहीं रंगती। पर बालों की रंगत से यूँ लगता है जैसे उसने बाल रँगे हुए हों। 

उसने हैनरी को बताया कि वह अपनी बेटी के पास चार-पाँच महीने के लिए आई है। सैर करने के बहाने बेटी की पामेरियन को साथ ले आती हूँ। वह भी अकेली है, पर किसी की परवाह नहीं। भावुकता को वह नहीं पालती, अकेली ही ख़ुश है। दस साल पहले उसके पति की मौत हो गई थी। हैनरी उसको हैरानी से देखता है। 

अकेली और ख़ुश? यह विधवा तो लगती नहीं। वह तो उसे शादीशुदा ही समझता था। 

नगीना बताती है, “उसके बच्चे हैं। फिर वह विधवा कैसे हुई? दो बेटियाँ उसकी देखभाल करती हैं। एक बेटी बंगलौर (भारत) में है। वह चार-पाँच महीने कभी इस बेटी के पास और कभी उस बेटी के पास बिताती है। बाक़ी समय अपने शहर में रहती है। मैप पर दिखाऊँगी अपना शहर।” 

“सो, यू आर इंडियन, नो मुस्लिम।” 

“याह, हिन्दू इंडियन। नो नो पंजाबी,” वह हिन्दू कहकर हकला गई। न हिन्दू, न मुस्लिम, वह तो पंजाबी है। 

“यू आर ए गुड ह्यूमन, अच्छी दोस्त बन सकती हो,” हैनरी ने ख़ुश होते हुए कहा और उसके हाथों को सहलाया। वह चौंक उठी। 

♦ ♦ ♦

दूसरे दिन। वह चलते-चलते यूँ ही बस की प्रतीक्षा वाले छोटे से शैड के अंदर खड़ी हो जाती है। अभी सुबह ही फ़ेसबुक खोलते ही सरसरी-सी नज़र हर ख़बर पर गई थी। चुग़लियाँ, अफ़वाहें, सुंदर दिखने को, छाये रहने का, आप क्या कर रहे हो और दूसरे क्या कर रहे हैं, या किस ग्रुप में किस ग्रुप के साथ मुक़ाबला चल रहा है, हर चीज़ पारदर्शी हो जाती है। हर चीज़ का पर्दाफ़ाश हो रहा है। 

वह शीशेवाली दीवार के साथ पीठ टिका लेती है। सुबह का समय। घंटे भर बाद बस आती दिखाई दी। वेस्ट मॉल तक बस जाएगी। 

चल, आज वेस्ट मॉल तक ही चलते हैं। संसार का सब से बड़ा और मनोरंजन वाला मॉल। 

अब तक तो बच्चे कार में ही लेकर जाते थे। आज वह अपनी मर्ज़ी पर थी। गेट से ही उसको बोट रेस्तरां नज़र आ जाता है। नीचे पानी में डॉलफिन तैर रही थीं। अचानक उसको यूरोप के समुद्र में व्हेल मछलियाँ नज़र आती हैं। समंदर के किनारे क़तारों की क़तार, मछलियाँ हलचल-विहीन बेजान पड़ी हैं। लोग तमाशा देख रहे हैं। गोरे मछुआरे उनको काट काटकर मांस इकट्ठा कर रहे हैं। समंदर का पानी लाल और गंदा नहीं हो गया होगा? वह सोचती है, गंदगी का क्या? 

मुंबई में गणेश की मूर्तियों का विसर्जन करने के लिए कितना कुछ बहता है, समुद्र गंदला हो जाता है। किसको चिंता? 
उसके पैर स्वमिंग पूल की ओर तरफ़ बढ़ने लगते हैं। वह रेलिंग को पकड़कर नज़ारे देखती है। 

“ओह-हाय! वॉय डोंट यू स्विम,” साथ वाला पचास-पचपन की उम्र का स्पेनिश आदमी उससे कहता है। उसके साथ वह बातें करने लगता है। स्पेनिश वैसे भी भारतीय लगते हैं। उसको ऐसे ही मर्द आकर्षित करते हैं। उसका अपना मर्द भी ऐसा ही था—गोरा चिट्टा, पर? उसकी सोच आगे नहीं बढ़ती। 

पानी से उसको डर लगता है। बाहर बर्फ़ है, पर यहाँ उसको गरमी लग रही है। अपनी जैकेट वह उतार लेती है और हाथ में पकड़े कैमरे से फोटो खींचती है। 

स्कूल के दिनों में उसने तैराकी सीखनी चाही था। पहले दिन ही लुधियाना के रक्ख-बाग़ के पूल में, इंस्ट्रक्टर लड़के ने दस फुट ऊँचे फट्टे पर से छलाँग लगाने के लिए कहा था। आँखें बंद करके उसने छलाँग लगा दी और उसको लगा, वह डूब रही है। लड़के ने उसको कमर से पकड़कर ऊपर उठाना चाहा। लड़के के स्पर्श पर वह और ज़्यादा डुबकियाँ मारने लगी। लड़के ने ग़ुस्से में उसकी पतली बाँहों को मरोड़ा देकर किनारा पकड़ा दिया। उसके बाद तौबा! जे़हन में एक डर बैठ गया। तैरने की इच्छा फुर्र हो गई! हवा में हाथ हिलाकर वह ख़ुद-ब-ख़ुद हँसती है। 

मगर इस जीवन के समंदर में वह तैरना बख़ूबी जानती है। रूह और जिस्म दोनों को साथ लेकर वह आहिस्ता-आहिस्ता उम्र के ख़ूबसूरत पड़ाव पर आ रही है।

♦ ♦ ♦

हैनरी उसको बताता है-वह शायद सैमी को लेकर ही जाएगा। वह बहुत भावुक है। सैमी के बिना अधमरा। उसकी पत्नी भी सैमी के दुख में रोती चली गई। 

“मैं मरना नहीं चाहता। सैमी उसके जीने का कारण है,” उसका बेटा और बहू अपनी दुनिया में ख़ुश हैं, “नहीं . . . यस, मैं इनके पास नहीं रह सकता। मेरी अपनी लाइफ़ है। मुझे चाहे कितना समय इनको तंग करना पड़े, पर मैं सैमी को लेकर ही जाऊँगा।” 

वे दोनों अब आम तौर पर हर रोज़ अपार्टमेंट की लॉबी में ही मिलने लग पड़े। नगीना कभी-कभी अकेली ही सातवीं मंज़िल से सीढ़ियों के रास्ते नीचे आती, ऐसा करना उसके लिए कसरत ही तो था। पर हैनरी के पास हमेशा चुआवा कुत्ता ही होता। 

हैनरी उसको आयरलैंड की बहुत सारी बातें सुनाता। कई हैरानकुन करने वाली कहानियाँ, भूत-प्रेतों की कहानियाँ। आयरलैंड के ख़ाली पड़े दूर-दराज के एकांत घरों की कहानियाँ, जहाँ आत्मायें निवास करती हैं। नगीना को बड़ा अजीब लगता। यह तो हमारे भारत के अंधविश्वास की कहानियाँ बता रहा है। इंग्लैंड की भी यही कहानियाँ हैं। आयरलैंड कौन सा इंग्लैंड से अलग है . . . वह सोचती? 

“यू नो? 13 नंबर हम मनहूस समझते हैं। वह जीसस . . .।” 

♦ ♦ ♦

इस तरह साल के दो महीने, सुनहरे दिन, उन दोनों ने कभी उगते सूरज की किरनों या कभी अस्त होते सूरज की रोशनी में अपने अपने तौर पर वसूले ब्याज के साथ गुज़ारे। कभी सैर करते और कभी शाम को अपार्टमेंट के साथ लगे कॉफ़ी हाउस में अपनी मनपसंद ‘लाटे टी’ अथवा रैगूलर कॉफ़ी का सिप भरते। 

उसकी बहू ऐलिसा नगीना को जानती थी। कभी-कभार वह ऐलिसा को लॉबी में ‘सैमी’ के साथ मिलती थी। ऐलिसा नगीना को कई बार बताया करती थी, “हम सैमी को अपने ससुर पापा से जबरन ले आए हैं। पापा कभी भी हमारे पास आकर इसकी माँग कर सकते हैं। पामेरियन ‘टेली’ को लेकर वह उत्साहित होती थी और कहा करती थी, यदि उसका ससुर, उसके सैमी को छीनकर ले गया तो वह ‘टेली’ के साथ खेला करेगी।” 

उसकी बेटी तब उस समय घबरा गई थी, “यह कहीं मेरी लाड़ली को चोरी न कर ले। आय हेट आयरिश . . .” और उसे ‘टेली’ पर निगाह रखने की हिदायत देती रही, “मॉम, ज़ंजीर न छोड़ना और उस बूढ़े की बातों में इतना न डूब जाना कि टेली को ही भूल जाओ। सामने ही रहना।” नगीना के पास अपना मोबाइल नहीं था। जब नीचे जाना होता तो वह अपनी बेटी का मोबाइल ले आती थी। बेटी को उसकी बड़ी चिंता रहती, “आप कहीं गुम ही न हो जाओ। इस परचे पर घर का पता और दोनों मोबाइल नंबर लिख दिए हैं। ध्यान से चलना। स्नोशूज़ पहन रखे हैं न? बर्फ़ में पैर गड़ा गड़ाकर चलना।” 
नगीना को याद हो आता है, अमरीका में रहने वाली उसकी आंटी दोस्त की बेटी भी डरा करती थी कि कहीं उसकी माँ भी गुम न हो जाए। जब इस बार पंचकूला से अपनी बेटी के पास अमरीका आई तो एक महीने तक उसकी कोई ख़बर नहीं मिली। फ़ोन भी कोई नहीं उठा रहा था। एक दिन अचानक उसकी बेटी ने फ़ेसबुक पर लिखा—“माँ चली गई।” 

“कहाँ चली गई?” पूछा तो फ़ोन पर सिसक-सिसककर रोते हुए उसने बताया, “नगीना आंटी, वो शाम को सैर करने गई थीं। बीस मिनट बाद जब वापस नहीं लौटीं तो मैं घबराकर उन्हें देखने गई। वहाँ पुलिस खड़ी थी और माँ गिरी पड़ी थी। मम्म बिना कुछ कहे, चले गए।” नगीना को भी बहुत धक्का लगा-87 साल की थी, अच्छी-भली। 

नगीना को उसकी बेटी फ़ोन पकड़ाकर कहती, “ये फ़ोन पकड़ो, मैं टाइम टू टाइम पूछती रहूँगी।” और सचमुच जब भी वह टेली को सातवीं मंज़िल से लेकर नीचे आती है, वह फ़ोन पर फ़ोन करके उसका सैर करना भी मुहाल कर देती है। ये बेटियाँ भी जादूमयी हैं, ज़िन्दगी ख़ुशहाल करने वाली डोर। 

हैनरी हँसता क्योंकि उसे भी फ़ोन पर फ़ोन आते रहते थे जब वह दूसरी मंज़िल से सैमी को लेकर आता था। उसके बेटे से कहीं अधिक उसकी बहू को यह भय अधिक सताता कि कहीं वह सैमी को लेकर आयरलैंड न भाग जाए। 

“डैड, आपसे अपना तो ख़्याल रखा नहीं जाता, सैमी का कैसे रखोगे?“ उसका बेटा दलील देता। 

“मैं तंदरुस्त हूँ। देख तो, यह मेरे साथ कितना ख़ुश है। सैमी बता इसे, मैं तुझ अनाथ को लेकर आया और तुझे पाला। तू मेरा बेटा है। आय एम युअर डैड!“ वह उस कुत्ते पर अपना हक़ जताते हुए भावुक होकर अपनी आँखें पोंछने लग पड़ता और निढाल हो जाता। 

“ओह माय गॉड!“ उसकी बहू हत्प्रभ हुई उसको देखती, घबराकर सैमी की चेन उसको थमा देती। 

वह उससे लाड़ जताता, चूमता, चाबी उठाकर बाहर चल पड़ता। सैमी भी उसके कानों, हाथों, यहाँ तक की गालों को भी चाटते हुए उसकी तरफ़ ‘ऊँ . . . ऊँ . . . ’ करता उछलता, उसे उठा लेने के लिए आवाज़ें निकालता। यदि सैमी को हैनरी नज़र न आता तो उसका फ़ूड उसी तरह पड़ा रहता। वह खाना-पीना छोड़ देता और एकटक दरवाज़े की तरफ़ मुँह किए बैठा रहता। तीन महीने इसी तरह बीत गए। 

मौसम बदल रहा था। सुन्दर रंग-बिरंगे फूल-पत्ते जिस तरह खिले हुए थे, उसी तरह हैनरी उमंगों में भरकर सैमी को कभी पैदल चलाता और कभी उसे गोद में उठाकर सैर करवाता। वह नगीना का लॉबी में इंतज़ार करता। सातवें फ्लोर पर नगीना को बुलाने के लिए जाना कठिन होता। वह अपनी ‘की’ से सिर्फ़ दूसरी मंज़िल तक ही जा सकता था। कभी-कभी वह रूठ जाता। उसकी बहू कभी-कभार नगीना से मिलती तो बताती, “मैं मोटी हो रही हूँ। बिकॉज़ नो एक्सरसाइज़, नो वाकिंग। सैमी अब मेरे ससुर पापा के साथ ही होता है। मेरी सैर तो होती ही नहीं।” इतना कहकर वह रुआँसी हो जाती। 

मौसम के बदलते ही ठंड शुरू हो गई। अक्तूबर में पहली बर्फ़बारी अचानक हो गई। हल्की-हल्की बर्फ़ की परत चारों ओर बिखरी नज़र आने लगी। 

हैनरी ने सैर नहीं छोड़ी। वह सैमी को गरम कपड़ों, बूटों के साथ लैस करके ‘प्रैम’ में लेकर आने लगा। बर्फ़ पड़ने के साथ पैदल रास्ता फिसलन-भरा होने के कारण बच्चे सैर वाली राह पर स्केटिंग करने लग पड़े। दो राउंड लगा लेने के बाद वे दोनों लॉबी में बैठकर बातें करते। ज़्यादातर वह सैमी की बातें करता। सैमी ये . . . सैमी वो . . .। कई बार वह हैरान होती–यह बूढ़ा इन्सान है या सैमी की तरह कोई जीव? अपने बेटे-बहू की तो बातें ही नहीं करता। कॉफ़ी पीने के लिए यदि साथ वाले कॉफ़ी हाउस में जाना हो तो कॉफ़ी हाउस वालों से मिन्नत-याचना करके सैमी को गोद में बिठाये रखता और कॉफ़ी सिप करता रहता। नगीना कभी-कभी खीझ उठती, पर सैमी को घर में छोड़ने की बजाय वह कॉफ़ी न पीने को तरजीह देता। वहीं टेली भी सैमी के साथ प्रैम में बैठकर इंतज़ार करती रहती कि कब वे अपने अपार्टमेंट में जाएँगे। 

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एक दिन सब कुछ उथल-पुथल हो गया। 

ऐलिसा सैमी को सुबह-सवेरे अपने संग लेकर अपनी दोस्त के घर चली गई। वहाँ से वे दोनों अपने पालतू कुत्तों को डॉग-पॉर्क में सैर करवाने ले गईं। पॉर्क से कुत्ते आने का नाम ही नहीं ले रहे थे। दौड़-दौड़कर जब वे थक गए तो वे दोनों शाम तक अपने अपने घर वापस लौट आईं। शाम तक तो वापस आ ही जाना था। 

हैनरी उस समय सोया पड़ा था, पर शाम तक सैमी को न देख वह घबरा गया। लिफ़्ट से उतरा तो कॉरीडोर में गिर पड़ा। अपार्टमेंट के कोरियाई व्यक्ति ने इधर-उधर फ़ोन पर सम्पर्क किया। ऐलिसा नहीं मिली। फिर नगीना को दौड़कर बुला लाया। नगीना ने बेटी को नौकरी पर से बुलाया। उसने ऐलिसा को फ़ोन किया, वह नहीं मिली। शाम को जब नगीना ने फ़ोन पर बताया तो वह अपने कमरे में सैमी को फ़ूड देकर आराम से बैठी कॉफ़ी पी रही थी। उसने सोचा, हैनरी सैर को गया होगा। 

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ऐलिसा घबराहट के साथ पाँच मिनट में ही इमरजेंसी वार्ड में पहुँची। उसके हाथ-पैर काँप रहे थे। अपनी भाषा में वह ‘जीसस-जीसस’ कर रही थी। नगीना और उसकी बेटी के हाथों को बार बार चूमती हुई थैंक्स कर रही थी जो उसके ससुर पापा को अस्पताल लेकर आई थीं। नगीना को बेहद तसल्ली हुई कि इस बहू में इंसानियत और बेटी होने का जज़्बा है। वह अपने ससुर के लिए कितनी फ़िक्रमंद थी। 

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नगीना, उसकी बेटी और ऐलिसा अस्पताल के कमरे के बाहर बैठी थीं। 

नर्स ने बाहर आकर पूछा, “ऐनी एशियन वुमैन हेयर?” 

नगीना का दिल धक्क करके रह गया। उसकी बेटी ने आँखों की पलकें ऊपर उठाकर अपनी माँ को इशारों में पूछा, “आपने तो नहीं इस बुढ़े को कुछ कहा जो हर्ट अटैक हो गया?” 

ऐलिसा एकदम उठी, “माय डैड!” 

“डोंट वरी, माइनर अटैक . . .” नर्स ने कहा और नगीना पर निगाह टिक गई। 

“मी?” नगीना की निगाहों ने पूछा। नर्स ने दुबारा आकर फिर पूछा, “ऐनी पंजाबी वुमैन?” 

“ओ याह! पंजाबी,” नगीना उसके साथ अंदर गई। रोज़ की मुलाक़ातों के दौरान हैनरी और नगीना दोनों ने एक-दूसरे के बारे में जानकारी साझी कर ली थी। अब वे दोनों एक दूसरे के देश, कौम, कल्चर और रंग-भेद आदि से परिचित थे। हैनरी को पता था कि वह भारत के ख़ुशहाल इलाक़े पंजाब से है। 

हैनरी ने आयरलैंड का एक चैप्टर भी नगीना के आगे खोला था कि अफ़्रीकन ग़ुलामों की तरह आयरिश अँगरेज़ों के ग़ुलाम भी होते थे। उसने यह बात भी नहीं छिपाई थी कि वह भी आयरलैंड के ग़ुलामों की जड़ों में से ही पैदा हुआ है, उसके पूर्वजों में से कई ग़ुलामी का नरक भोग चुके थे। 

उस बूढ़े हैनरी ने बैड से ऊपर उठते हुए नगीना का हाथ पकड़ याचना-सी करते हुए धीमे स्वर में कहा, “सैमी प्लीज़! अगर सैमी न मिला तो मुझे बड़ा अटैक हो जाएगा। मैं अकेला आयरलैंड के बड़े-से घर में मर जाऊँगा। भूत बन जाऊँगा। ऐलिसा और मेरे पुत्र को कहो कि वे सैमी को मुझे दे दें।” 

‘क्या पुत्र और उसकी बीवी को हैनरी से मोह है?’ सवाल उसकी छाती पर उग आया। 

यहाँ नगीना ग़लत थी। उसका पुत्र और बहू अल्बर्टा में जॉब मिलने के कारण आयरलैंड को अलविदा कह आए थे। पिता पुश्तैनी जायदाद होने के कारण आयरलैंड नहीं छोड़ना चाहता था। उसकी पत्नी, मित्र, सारे जहान की ख़ुशियाँ, उसका एकाकीपन, ये सब उसकी जान थी, पर सैमी उसकी जान में अटका पड़ा था। 

ऐलिसा और उसका पुत्र सैमी को अपने से अलग नहीं करना चाहते थे, पर इतने भी ज़ालिम-बेरहम नहीं थे कि उनके पिता की धड़कनें बंद हो जाएँ। 

उन दोनों ने मन मसोसकर सैमी को हैनरी के साथ भेजने का निर्णय ले लिया।

♦ ♦ ♦

एक महीने बाद जब हैनरी को उसका पुत्र और बहू ऐलिसा आयरलैंड वाले घर में छोड़ने गए तो सैमी एक मिनट भी हैनरी से अलग नहीं हुआ था। उसके पुत्र ने एक केयरटेकर का प्रबंध कर, दो दिन बाद वापसी की तैयारी कर ली। दरवाज़े पर हैनरी और सैमी को जब अलविदा किया तो हैनरी ने कहा, “नगीना को थैंक्स कहना। कहना-वो मुझे फ़ोन करे, मैं भी फ़ोन करूँगा।” 

सैमी की चऊ-चऊ सुन ऐलिसा का दिल उछल रहा था और पैर आगे नहीं बढ़ रहे थे। एअरपोर्ट की ओर बढ़ती टैक्सी में से उसकी नज़रें सैमी पर से नहीं हट रही थीं। 

♦ ♦ ♦

कुछ महीनों के बाद हैनरी का उसकी बहू ऐलिसा को फ़ोन आया, “मैंने एक अनाथ लड़के को केयरटेकर के तौर पर रख लिया है और यू नो, मुझे बर्फ़ में दबी झाड़ियों में से एक बीमार लैबरा डॉग मिला है, उसका इलाज करवा रहा हूँ। मैं बहुत ख़ुश हूँ।” 

ऐलिसा का सिर चकरा गया। उसे याद आया कि जब वह छोटी-सी थी तो सामने वाले मकान में हैनरी का परिवार रहता था। वह उसके पुत्र के संग खेला करती थी। अचानक एक दिन उसके माता-पिता घर से गए तो वापस ही नहीं लौटे। बर्फ़ की जानलेवा आँधी में वे जैसे कहीं खो गए थे। 

कई दिनों की प्रतीक्षा के बाद हैनरी ने ऐलिसा को अपने घर का ही सदस्य मानकर उसे अपना लिया था। और आज ऐलिसा ख़ुशहाल जीवन व्यतीत कर रही है, उसको अपने ससुर पापा में हमेशा अनाथों का मसीहा नज़र आता रहा था। 

यह रहस्य ऐलिसा ने सैमी को आयरलैंड छोड़ने के बाद नगीना को बताया था और अचानक उसने नगीना से पूछा था, “क्या तुम्हें कंपनी की ज़रूरत नहीं है?” 

नगीना को ऐलिसा की पुतलियों में एक प्रश्न टँगा हुआ नज़र आया। वह हैरान होकर ऐलिसा के मुँह की तरफ़ देखने लगी। तभी, उसके दिमाग़ में नफ़रत के कीड़े ने अंगड़ाई ली, ’कुत्तों-बिल्लियों के साथ चिपटे रहने वाले इस गोरे हैनरी की कंपनी?’ अपनी सोच पर उसके अंदर रंगभेद का एक बुलबुला फूट पड़ता है। वह स्वयं ही शर्मसार होकर बात का रुख़ बदलते हुए मुस्कुराकर कहती है—

“नहीं ऐलिसा। अपनी वसंत-रुत मैं आप जीना चाहती हूँ।” 
 

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