अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित
पीछे जाएं

वायरस

यहाँ विदेश में 
मेपल दरख़्त पत्तों की खड़खड़ाहट
लदे फूल खिलखिलाती क़ुदरत
घरों के अन्दर खिले फूल
हरियाली से भरी कायनात थी। 
 
मैं देखती रही आसमाँ
भरा भरा बादलों का ग़ुबार 
टप् टप् पिघलती बूँदें 
लोगों का ग़ायब हुजूम 
 
मँडरा रहा सूनी सड़कों में
वायरस का साया था 
क़रीने से पार्क की हुई कारें
पहले जैसा जो था 
वैसा ही हरा भरा था
 
कहीं कहीं इक्का-दुक्का लोग 
बदहवास से सायों से डरते
बर्फ़ से ढकी वादियों में
साँ-साँ पत्ते लड़खड़ाते l
गिरते बिखरते ख़ौफ़ से जूझते 
धीमे से दर बन्द कर 
अन्दर दुबक जाते 
यह विदेशी लोग। 
 
कल मेरे देश में बन्द था
शाम होते होते 
शंख नाद, मन्दिर की घंटियों
का संगीत 
थाली चम्मच कटोरी
की आवाज़ से करोना 
से महा जंग था 
 
आओ जो कल था
आज भी वही सुकून लाएँ
घर परिवार संग बैठे
और बतियाएँ . . .
‘कहा जो सखी ने 
कुछ टूटे रिश्ते समेटे
गिले शिकवों के पौधे उखाड़ 
मन की क्यारी में प्यार के 
बीज उपजाएँ-‘ धीमी स्वर लहरी 
से मन को थपथपाएँ 
 
जो कल रोपा था 
हरियावल और झरनों के 
बहते पानी का आनन्द लेते 
आज से बूँद बूँद 
वही सुकून लाएँ 
पक्षियों का कलरव सुने
क़ुदरत बचाएँ 
और मुस्कुराएँ!!! 

इस विशेषांक में

कविता

पुस्तक समीक्षा

पत्र

कहानी

साहित्यिक आलेख

रचना समीक्षा

लघुकथा

कविता - हाइकु

स्मृति लेख

गीत-नवगीत

किशोर साहित्य कहानी

चिन्तन

हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी

व्यक्ति चित्र

बात-चीत

अन्य विशेषांक

  1. सुषम बेदी - श्रद्धांजलि और उनका रचना संसार
  2. ब्रिटेन के प्रसिद्ध लेखक तेजेन्द्र शर्मा का रचना संसार
  3. दलित साहित्य
  4. फीजी का हिन्दी साहित्य
पीछे जाएं