असाधारण सा आमंत्रण
कथा साहित्य | लघुकथा मधु शर्मा1 Jul 2024 (अंक: 256, प्रथम, 2024 में प्रकाशित)
“प्रिय मित्रो! बहुत ही भारी मन से आपको सूचित करना चाहता हूँ कि मैं अब इस धरती पर कुछ ही महीनों का मेहमान हूँ। एक अन्तिम भेंट में आप सभी से क्षमा माँग सकूँ, इसके लिए मैं अपने वही रेगुलर-पब के सादा से माहौल में अगले सप्ताह शनिवार के दिन दो बजे दोपहर से लेकर चार बजे तक अपना साठवाँ जन्मदिन मनाना चाहता हूँ।
जुआ खेलने की लत के कारण मैं बहाने बना-बना कर आप सभी से समय-समय पर पैसे उधार लेता रहा। वह ऋण मैंने अब न चुकाया तो इस दुनिया से विदा होते हुए मेरे प्राण आसानी से निकल न पायेंगे। परन्तु समस्या आन खड़ी हुई है कि मुझ जुआरी के पास इतना पैसा आयेगा कहाँ से? उसका समाधान मिल तो गया है लेकिन वह मेरे भाग्य के साथ-साथ आप सभी पर भी निर्भर करता है कि आप यदि अंतिम बार मेरा साथ दे दें।
वह ऐसे कि कृपया मुझे कोई उपहार देने की बजाय इस सप्ताह निकलने वाली लॉटरी की एक-एक टिकट ख़रीद कर मुझे भेंट में दें। हाँ, टिकट के पीछे अपना नाम लिखना न भूलिएगा। चौंकिए नहीं! मैं जुआरी अवश्य हूँ परन्तु दुनिया से जाते-जाते बेईमानी नहीं करूँगा।
यदि किसी की टिकट पर मेरी बड़ी वाली लॉटरी निकल आती है तो मैं उस दोस्त को जीती हुई राशि का आधा हिस्सा दूँगा। और साथ ही साथ आप सभी से लिया हुआ क़र्ज़ भी उतार दूँगा। मेरा यह मैसेज आपके पास सबूत के रूप में है ही। और यदि मेरी लॉटरी न भी निकली तो आपसे क्षमा माँगने का मेरे पास केवल यही अन्तिम अवसर है। आशा है आप मुझे निराश नहीं करेंगे व मुझसे भेंट करने अवश्य आयेंगे।”
वट्सअप पर पच्चीस-छब्बीस दोस्तों व अपने जान-पहचान वालों को यह मैसेज भेजकर वह व्यक्ति जानलेवा रोग से ग्रसित होने पर भी शनिवार को जैसे-तैसे उसी पब में नियत समय पर पहुँच गया। प्रतीक्षा करते-करते दो घंटे बीत गये, परन्तु उसके उन सभी जान-पहचान वालों में से एक भी इन्सान वहाँ न पहुँचा, और न ही किसी का कोई मैसेज ही आया। थक-हार कर जब वह घर जाने के लिए उठ कर खड़ा हुआ तो उस पब में ही एक काम करने वाले कर्मचारी ने उसके समीप आकर धीमे से कहा, “सर, मेरी रात की शिफ़्ट अभी शुरू हुई है। आपको देखा तो मुझसे यह बताए बिन रहा नहीं गया . . . कल रात मेरे कानों में उड़ती-उड़ती भनक पड़ी थी कि आपके दोस्तों ने आप की तबियत ख़राब होने की बात पर बिलकुल भी विश्वास नहीं किया . . . उन्हें लगा कि आप फिर से उन्हें बेवुक़ूफ़ बना कर अपना उल्लू सीधा करना चाहते हैं। और यह भी सुनने में आया था कि यहाँ विदेशी रीति के अनुसार आपको अपने जन्मदिन पर किसी के लिए ड्रिंक भी ख़रीदने की आवश्यकता नहीं . . . और तो और लॉटरी की ढेरों टिकट भी यूँ मुफ़्त पा लेने की आपकी योजना भी सफल हो जाती।”
यह सुनकर वह बीमार इन्सान अपना सा मुँह लिए सोचने पर मजबूर हो गया कि आज जब वास्तव में रोग रूपी भेड़िया सामने आन खड़ा हुआ है तो उस जैसे सदैव झूठ बोलने वाले मक्कार की पुकार सुनकर लोग उसे बचाने क्यों आयेंगे!
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