चन्द पुराने ख़तों के टुकड़े
शायरी | सजल मधु शर्मा15 Jul 2024 (अंक: 257, द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)
चन्द पुराने ख़तों के बचे हुए टुकड़े थे,
प्यार के कुछ में झूठमूठ के झगड़े थे।
उड़ा के ले गई आँधी इक पल में उन्हें,
छूटा हाथ से दामन जो हम पकड़े थे।
याद नहीं आज तुम्हें उनका नाम तक,
जला के कश्तियाँ किनारे जो खड़े थे।
आँखें शर्मसार, गर्दन झुकी-झुकी सी,
ग़ुरूर से भरे कभी जो अकड़े-अकड़े थे।
दुल्हन मारे ज़िद्द के जब पीहर आ बैठी,
दहलीज़ पर बड़े-बूढ़ों ने नाक रगड़े थे।
बहाके ले चला सैलाब तमाम खिलौने,
छोड़ें किसे बचाएँ बच्चे हैरत में पड़े थे।
आकर जन्नत में भी आ न पाया सुकून,
दक़ियानूसी असूलों पे वहाँ भी अड़े थे।
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