25 वर्ष के अंतराल में एक और परिवर्तन
आलेख | चिन्तन मधु शर्मा15 Oct 2022 (अंक: 215, द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)
दोस्तो, जो बात मैं यहाँ कहने का प्रयास करने जा रही हूँ, यद्यपि वह बहुत छोटी है परन्तु उसकी भूमिका शायद थोड़ी लम्बी हो जाये।
जैसा कि आप सभी जानते ही हैं कि हमारे यू.के. की महारानी एलिज़ाबैथ द्वितीय का 8 सितंबर को 96 वर्ष की आयु में उनके महलों में से एक बैल्मॉरल क़िले, स्कॉटलैंड में स्वर्गवास हो गया। शाही रीति के अनुसार उनके देहान्त के 11वें दिन उनके अंतिम संस्कार की पूरी व्यवस्था की गई।
राष्ट्रीय ध्वज में लिपटा उनका ताबूत बैल्मॉरल महल से स्कॉटलैंड की राजधानी ऐडिनबरा के सेंट जाइल्स कैथिड्रल में छह घंटे की शवयात्रा के उपरान्त पहुँचा, ताकि वहाँ की जनता भी उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित कर सके। उस छह घंटे के समस्त मार्ग के दोनों ओर हज़ारों लोग सम्मान देने के लिए चुपचाप खड़े दिखाई दिए।
इसी भाँति लाखों लोग उन सभी छोटी-बड़ी सड़कों के दोनों तरफ़ घंटों शान्ति से प्रतीक्षा करते रहे, जब ताबूत को ऐडिनबरा से आर.ए.ऐफ़. (रॉयल एअर फ़ोर्स) विमान द्वारा नॉर्थहॉल्ट बेस और फिर वहाँ से लंदन के वैस्टमिंस्टर हॉल तक ले जाया गया। जनता द्वारा अंतिम श्रद्धांजलि देने के लिए वहाँ पाँच दिनों के लिए ताबूत रखा गया। तदोपरान्त 11वें दिन महारानी के अपने पसंदीदा निवास, विंडज़र क़िले, के सेंट जॉर्ज चैपल में उनके अंतरंग दफ़न के लिए अंतिम शवयात्रा में लंदन से वहाँ तक लगभग दो घंटे लगे।
लेकिन जहाँ-जहाँ से स्वर्गवासी महारानी ऐलिज़ाबैथ की शवयात्रा गुज़री तो मैंने एक अटपटी बात नोट की—यद्यपि सुदूर देश-प्रदेशों से आये हुए लोगों सहित इतने दिनों से सड़क किनारे डेरा डाले हुए अपनी प्रिय महारानी के ताबूत की एक झलक पाने वालों की संख्या 31 अगस्त 1997 वाले दिन राजकुमारी डायना की शवयात्रा के समय उमड़ी भीड़ से बहुत अधिक थी। लेकिन फिर भी, स्वर्गवासी महारानी के लिए जय-जयकार व तालियों की आवाज़ स्वर्गवासी राजकुमारी डायना के लिए आकाश तक गूँजती करतल ध्वनि की तुलना में बहुत धीमी थी। तत्काल ही इसका कारण भी समझ आ गया कि लोग इस बार उतना ही शोकाग्रस्त होने के बावजूद भी तालियाँ बजा कर स्वर्गवासी महारानी के लिए सम्मान प्रगट करने में असमर्थ क्यों रहे। क्योंकि वहाँ पहुँची हुई 90-95% जनता महारानी की शवयात्रा को अपने मोबाइल फोन द्वारा रिकॉर्ड करने में व्यस्त थी। केवल गिने-चुने वृद्ध या छोटे-बच्चे ही तालियाँ बजा रहे थे . . . क्योंकि उनके पास मोबाइल फोन न होने के कारण उनके हाथ ख़ाली जो थे।
कितने दुःख की बात है कि लोगों के हाथ में मोबाइल फोन आ जाने से इसका सकारात्मक से अधिक सोशल-मीडिया पर मनोरंजन के लिए प्रयोग किया जा रहा है। आँखों के सामने कोई भयानक दुर्घटना हो जाए या किसी व्यक्ति के प्राण निकल रहे हों तो अधिकतर लोग सबसे पहले अपने-अपने मोबाइल फोन पर फ़िल्म बनाने लगते हैं . . . और बाद में ऐम्बुलैंस बुलाने या स्वयं सहायता करने के लिए क़दम उठाते हैं।
क्या आप जैसे सुलझे हुए पाठक कृपया मेरे प्रश्न का उत्तर दे सकते हैं कि मानव इतने कम समय के अंतराल में मानविय मान्यताओं के प्रति इतना अचेत हो कैसे गया?
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
हास्य-व्यंग्य कविता
किशोर साहित्य कविता
कविता
- 16 का अंक
- 16 शृंगार
- 6 जून यूक्रेन-वासियों द्वारा दी गई दुहाई
- अंगदान
- अकेली है तन्हा नहीं
- अग्निदाह
- अधूरापन
- असली दोस्त
- आशा या निराशा
- उपहार/तोहफ़ा/सौग़ात/भेंट
- ऐन्टाल्या में डूबता सूर्य
- ऐसे-वैसे लोग
- कविता क्यों लिखती हूँ
- काहे दंभ भरे ओ इंसान
- कुछ और कड़वे सच – 02
- कुछ कड़वे सच — 01
- कुछ न रहेगा
- कैसे-कैसे सेल्ज़मैन
- कोना-कोना कोरोना-फ़्री
- ख़ुश है अब वह
- खाते-पीते घरों के प्रवासी
- गति
- गुहार दिल की
- जल
- दीया हूँ
- दोषी
- नदिया का ख़त सागर के नाम
- पतझड़ के पत्ते
- पारी जीती कभी हारी
- बहन-बेटियों की आवाज़
- बेटा होने का हक़
- बेटी बचाओ
- भयभीत भगवान
- भानुमति
- भेद-भाव
- माँ की गोद
- मेरा पहला आँसू
- मेरी अन्तिम इच्छा
- मेरी मातृ-भूमि
- मेरी हमसायी
- यह इंग्लिस्तान
- यादें मीठी-कड़वी
- यादों का भँवर
- लंगर
- लोरी ग़रीब माँ की
- वह अनामिका
- विदेशी रक्षा-बन्धन
- विवश अश्व
- शिकारी
- संवेदनशील कवि
- सती इक्कीसवीं सदी की
- समय की चादर
- सोच
- सौतन
- हेर-फेर भिन्नार्थक शब्दों का
- 14 जून वाले अभागे अप्रवासी
- अपने-अपने दुखड़े
- गये बरस
ग़ज़ल
किशोर साहित्य कहानी
कविता - क्षणिका
सजल
चिन्तन
लघुकथा
- अकेलेपन का बोझ
- अपराधी कौन?
- अशान्त आत्मा
- असाधारण सा आमंत्रण
- अहंकारी
- आत्मनिर्भर वृद्धा माँ
- आदान-प्रदान
- आभारी
- उपद्रव
- उसका सुधरना
- उसे जीने दीजिए
- कॉफ़ी
- कौन है दोषी?
- गंगाजल
- गिफ़्ट
- घिनौना बदलाव
- देर आये दुरुस्त आये
- दोगलापन
- दोषारोपण
- नासमझ लोग
- पहली पहली धारणा
- पानी का बुलबुला
- पिता व बेटी
- प्रेम का धागा
- बंदीगृह
- बड़ा मुँह छोटी बात
- बहकावा
- भाग्यवान
- मोटा असामी
- सहानुभूति व संवेदना में अंतर
- सहारा
- स्टेटस
- स्वार्थ
- सोच, पाश्चात्य बनाम प्राच्य
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
कविता-मुक्तक
कविता - हाइकु
कहानी
नज़्म
सांस्कृतिक कथा
पत्र
सम्पादकीय प्रतिक्रिया
एकांकी
स्मृति लेख
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं