अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा यात्रा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

अभिलाषा

हम सभी के जीवन में यदा-कदा अचानक कुछ कठिन समस्याएँ या प्रश्न सामने आ खड़े होते हैं। कुछ-एक का समाधान तो मस्तिष्क पर बिन दबाव डाले मिल जाता है, तो कुछ-एक को सुलझाने में एक जीवन भी पर्याप्त नहीं होता। 

उस रात एक अटपटा स्वप्न आया। आम इंसानों से कहीं लम्बी-चौड़ी डील-डौल वाला एक व्यक्ति, जो देखने में न तो राक्षसों सा भयानक और न ही ईश्वर सा तेज लिए हुए, कहने लगा, “मधु उठो, जल्दी उठो! मेरे पास इतना समय नहीं। ऐसा है कि मुझे हर हज़ार वर्ष पश्चात ही यह शक्ति प्राप्त होती है, जिससे मैं किसी एक व्यक्ति की कोई भी अभिलाषा पूरी कर सकता हूँ। आज तुम्हें चुना गया है। अपनी कोई एक इच्छा, केवल एक इच्छा बताओ . . . चाहे वह तुम्हारे भूतकाल से संबधित हो या भविष्य से, मैं उसे पूरी कर सकता हूँ।”

मैं डरी तो नहीं . . . हाँ सकपका अवश्य गई थी . . . क्योंकि उसने मुझे गहरी नींद से जगा जो दिया था। ‘प्रभु की इच्छा में अपनी इच्छा’ मानकर चलने का प्रयास करने वालों में से हूँ, अत: मुझे क्या माँगना चाहिए, कुछ समझ नहीं आया। लेकिन फिर दिमाग़ में बिजली सी कौंधी और मैं बोल पड़ी, “आप मेरी इच्छा कभी पूरी न कर पायेंगे, लेकिन बताने में हर्ज़ ही क्या है! क्या आप पीछे, बहुत पीछे जाकर 'बिग-बैंग' (महाविस्फोट) को रोक सकते हैं?” 

उसकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा किए बिना मैंने अपनी बात जारी रखी, “ऐसा है कि . . . न बिग-बैंग होता न गैलक्सीज़ (आकाशगंगाएँ) बनतीं, न हमारी गैलक्सी बनती तो न ही हमारा सौर-मण्डल बनता और न ही उसके ग्रह। ऐसे में हमारी पृथ्वी का सृजन न होता, तो न ही बेचारी धरती-माँ विभिन्न देशों और सीमाओं में बँटती। और तो और, यहाँ जन्म लेने वाले महान बुद्धपुरुषों के अपने-अपने सिद्धांतानुसार व विचारानुकूल उनके अनुयायी फिर सैंकड़ों धर्मों की स्थापना भी न कर पाते। परिणाम स्वरूप सीमाओं या इन धर्मों के वाद-विवाद को लेकर युद्ध-महायुद्ध न छिड़ते . . . जिनके चलते लाखों निर्दोष लोग आये दिन यूँ ही मौत की गोद में न समा रहे होते . . .”

देव की भाँति दिखने वाले उस व्यक्ति ने मेरी बात बीच में ही काटते हुए, और मुझसे नज़रें चुराते हुए कहा, “मधु, तुम तो समय के चक्र को रोकने की इच्छा व्यक्त कर रही हो, यह . . . यह असम्भव है। युद्ध-महायुद्ध जैसी ढेरों आपदाओं या प्राकृतिक दुर्घटनाओं को तो सम्भवत: मैं रोक लेता . . . लेकिन बिग-बैंग से जुड़े पुरातन समय से अवतरित हो रहे अवतारों के प्रागट्य को रोकना सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी के भी वश में नहीं है। चूँकि मैं तुम्हारी इच्छा पूरी न कर सका तो मेरा अस्तित्व भी आज समाप्त . . . ,” यह कहता हुआ वह वहीं ढेर हो गया। 

अब आप पाठक ही बताएँ कि क्या मेरी वह अभिलाषा अनैतिक थी? 

अच्छा हुआ . . . बहुत अच्छा हुआ जो मैंने वर्तमान व भविष्य के सभी जीवों को (मुझ सहित) सदबुद्द्धि‌ प्रदान करने की इच्छा प्रकट नहीं की . . . क्योंकि यह कार्य तो बिग-बैंग को रोकने से भी अधिक कठिन साबित होता। है न! 

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

25 वर्ष के अंतराल में एक और परिवर्तन
|

दोस्तो, जो बात मैं यहाँ कहने का प्रयास करने…

अच्छाई
|

  आम तौर पर हम किसी व्यक्ति में, वस्तु…

अनकहे शब्द
|

  अच्छे से अच्छे की कल्पना हर कोई करता…

अपना अपना स्वर्ग
|

क्या आपका भी स्वर्ग औरों के स्वर्ग से बिल्कुल…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता

लघुकथा

हास्य-व्यंग्य कविता

किशोर साहित्य कविता

ग़ज़ल

किशोर साहित्य कहानी

कविता - क्षणिका

सजल

चिन्तन

हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी

कविता-मुक्तक

कविता - हाइकु

कहानी

नज़्म

सांस्कृतिक कथा

पत्र

सम्पादकीय प्रतिक्रिया

एकांकी

स्मृति लेख

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं