अभिलाषा
आलेख | चिन्तन मधु शर्मा1 Aug 2022 (अंक: 210, प्रथम, 2022 में प्रकाशित)
हम सभी के जीवन में यदा-कदा अचानक कुछ कठिन समस्याएँ या प्रश्न सामने आ खड़े होते हैं। कुछ-एक का समाधान तो मस्तिष्क पर बिन दबाव डाले मिल जाता है, तो कुछ-एक को सुलझाने में एक जीवन भी पर्याप्त नहीं होता।
उस रात एक अटपटा स्वप्न आया। आम इंसानों से कहीं लम्बी-चौड़ी डील-डौल वाला एक व्यक्ति, जो देखने में न तो राक्षसों सा भयानक और न ही ईश्वर सा तेज लिए हुए, कहने लगा, “मधु उठो, जल्दी उठो! मेरे पास इतना समय नहीं। ऐसा है कि मुझे हर हज़ार वर्ष पश्चात ही यह शक्ति प्राप्त होती है, जिससे मैं किसी एक व्यक्ति की कोई भी अभिलाषा पूरी कर सकता हूँ। आज तुम्हें चुना गया है। अपनी कोई एक इच्छा, केवल एक इच्छा बताओ . . . चाहे वह तुम्हारे भूतकाल से संबधित हो या भविष्य से, मैं उसे पूरी कर सकता हूँ।”
मैं डरी तो नहीं . . . हाँ सकपका अवश्य गई थी . . . क्योंकि उसने मुझे गहरी नींद से जगा जो दिया था। ‘प्रभु की इच्छा में अपनी इच्छा’ मानकर चलने का प्रयास करने वालों में से हूँ, अत: मुझे क्या माँगना चाहिए, कुछ समझ नहीं आया। लेकिन फिर दिमाग़ में बिजली सी कौंधी और मैं बोल पड़ी, “आप मेरी इच्छा कभी पूरी न कर पायेंगे, लेकिन बताने में हर्ज़ ही क्या है! क्या आप पीछे, बहुत पीछे जाकर 'बिग-बैंग' (महाविस्फोट) को रोक सकते हैं?”
उसकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा किए बिना मैंने अपनी बात जारी रखी, “ऐसा है कि . . . न बिग-बैंग होता न गैलक्सीज़ (आकाशगंगाएँ) बनतीं, न हमारी गैलक्सी बनती तो न ही हमारा सौर-मण्डल बनता और न ही उसके ग्रह। ऐसे में हमारी पृथ्वी का सृजन न होता, तो न ही बेचारी धरती-माँ विभिन्न देशों और सीमाओं में बँटती। और तो और, यहाँ जन्म लेने वाले महान बुद्धपुरुषों के अपने-अपने सिद्धांतानुसार व विचारानुकूल उनके अनुयायी फिर सैंकड़ों धर्मों की स्थापना भी न कर पाते। परिणाम स्वरूप सीमाओं या इन धर्मों के वाद-विवाद को लेकर युद्ध-महायुद्ध न छिड़ते . . . जिनके चलते लाखों निर्दोष लोग आये दिन यूँ ही मौत की गोद में न समा रहे होते . . .”
देव की भाँति दिखने वाले उस व्यक्ति ने मेरी बात बीच में ही काटते हुए, और मुझसे नज़रें चुराते हुए कहा, “मधु, तुम तो समय के चक्र को रोकने की इच्छा व्यक्त कर रही हो, यह . . . यह असम्भव है। युद्ध-महायुद्ध जैसी ढेरों आपदाओं या प्राकृतिक दुर्घटनाओं को तो सम्भवत: मैं रोक लेता . . . लेकिन बिग-बैंग से जुड़े पुरातन समय से अवतरित हो रहे अवतारों के प्रागट्य को रोकना सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी के भी वश में नहीं है। चूँकि मैं तुम्हारी इच्छा पूरी न कर सका तो मेरा अस्तित्व भी आज समाप्त . . . ,” यह कहता हुआ वह वहीं ढेर हो गया।
अब आप पाठक ही बताएँ कि क्या मेरी वह अभिलाषा अनैतिक थी?
अच्छा हुआ . . . बहुत अच्छा हुआ जो मैंने वर्तमान व भविष्य के सभी जीवों को (मुझ सहित) सदबुद्द्धि प्रदान करने की इच्छा प्रकट नहीं की . . . क्योंकि यह कार्य तो बिग-बैंग को रोकने से भी अधिक कठिन साबित होता। है न!
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
25 वर्ष के अंतराल में एक और परिवर्तन
चिन्तन | मधु शर्मादोस्तो, जो बात मैं यहाँ कहने का प्रयास करने…
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
- 16 का अंक
- 16 शृंगार
- 6 जून यूक्रेन-वासियों द्वारा दी गई दुहाई
- अंगदान
- अकेली है तन्हा नहीं
- अग्निदाह
- अधूरापन
- असली दोस्त
- आशा या निराशा
- उपहार/तोहफ़ा/सौग़ात/भेंट
- ऐन्टाल्या में डूबता सूर्य
- ऐसे-वैसे लोग
- कविता क्यों लिखती हूँ
- काहे दंभ भरे ओ इंसान
- कुछ और कड़वे सच – 02
- कुछ कड़वे सच — 01
- कुछ न रहेगा
- कैसे-कैसे सेल्ज़मैन
- कोना-कोना कोरोना-फ़्री
- ख़ुश है अब वह
- खाते-पीते घरों के प्रवासी
- गति
- गुहार दिल की
- जल
- जाते-जाते यह वर्ष
- दीया हूँ
- दोषी
- नदिया का ख़त सागर के नाम
- पतझड़ के पत्ते
- पारी जीती कभी हारी
- बहन-बेटियों की आवाज़
- बेटा होने का हक़
- बेटी बचाओ
- भयभीत भगवान
- भानुमति
- भेद-भाव
- माँ की गोद
- मेरा पहला आँसू
- मेरी अन्तिम इच्छा
- मेरी मातृ-भूमि
- मेरी हमसायी
- यह इंग्लिस्तान
- यादें मीठी-कड़वी
- यादों का भँवर
- लंगर
- लोरी ग़रीब माँ की
- वह अनामिका
- विदेशी रक्षा-बन्धन
- विवश अश्व
- शिकारी
- संवेदनशील कवि
- सती इक्कीसवीं सदी की
- समय की चादर
- सोच
- सौतन
- हेर-फेर भिन्नार्थक शब्दों का
- 14 जून वाले अभागे अप्रवासी
- अपने-अपने दुखड़े
- गये बरस
लघुकथा
- अकेलेपन का बोझ
- अपराधी कौन?
- अशान्त आत्मा
- असाधारण सा आमंत्रण
- अहंकारी
- आत्मनिर्भर वृद्धा माँ
- आदान-प्रदान
- आभारी
- उपद्रव
- उसका सुधरना
- उसे जीने दीजिए
- कॉफ़ी
- कौन है दोषी?
- गंगाजल
- गिफ़्ट
- घिनौना बदलाव
- देर आये दुरुस्त आये
- दोगलापन
- दोषारोपण
- नासमझ लोग
- पहली पहली धारणा
- पानी का बुलबुला
- पिता व बेटी
- प्रेम का धागा
- बंदीगृह
- बड़ा मुँह छोटी बात
- बहकावा
- भाग्यवान
- मेरी स्वाभाविकता
- मोटा असामी
- सहानुभूति व संवेदना में अंतर
- सहारा
- स्टेटस
- स्वार्थ
- सोच, पाश्चात्य बनाम प्राच्य
हास्य-व्यंग्य कविता
किशोर साहित्य कविता
ग़ज़ल
किशोर साहित्य कहानी
कविता - क्षणिका
सजल
चिन्तन
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
कविता-मुक्तक
कविता - हाइकु
कहानी
नज़्म
सांस्कृतिक कथा
पत्र
सम्पादकीय प्रतिक्रिया
एकांकी
स्मृति लेख
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं