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रिवर्स-रोल

“समीर और समर मुझे लेने नहीं आये, सब ठीक तो है न, तनु?” मालती ने तमन्ना को एयरपोर्ट के आगमन-द्वार पर अकेली देखकर गले लगाते हुए पूछा। 

“सब लोग ठीक हैं मम्मी। आप कार में बैठिए, फिर आराम से बातें करेंगे। कहीं इंग्लैंड आते ही हड्डियों में घुस जाने वाली यहाँ की ठंड आपको न लग जाये,” अपनी कार की पिछली सीट पर अपनी माँ का सूटकेस रखकर तमन्ना ने हँसते हुए कहा। 

मायके वालों का हालचाल व हवाई-यात्रा कैसी रही पूछने के बाद रास्ते में तनु ने मालती को बताया, “समर की आज स्कूल में 'पैरन्ट्स ईवनिंग' थी। चूँकि हम दोनों में से एक का वहाँ उपस्थित होना ज़रूरी था, सो समीर चले गये। अब तक तो वे दोनों घर वापस भी आ चुके होंगे।” 

बातें करते-करते बीस मिनट में दोनों घर पहुँच गईं। 

रसोई की खिड़की से झाँकते हुए समीर ने जब तमन्ना की कार आती देखी तो समर को पुकारता हुआ बाहर आया और मालती के पाँव छुए। 

उसके पीछे-पीछे शर्माती हुई पाँच वर्ष की समर भी आ गई और अपनी नानी द्वारा अपने गाल चूमने पर और भी शर्मा गई। 

समीर ने ड्योढ़ी (पोर्च) का दरवाज़ा खुला ही रहने दिया था, इसलिए रसोई से आती चावल की भीनी-भीनी महक ने मालती का सबसे पहले स्वागत किया। घर में प्रवेश करते ही मालती की नज़रें रसोई की ओर, फिर इधर-उधर घूमती हुई उस व्यक्ति को ढूँढ़ रह थीं कि ये चावल बना कौन रहा है? इतने में तमन्ना बोली, “चलें मम्मी, आपको आपका कमरा दिखाती हूँ, जल्दी से फ़्रैश हो जायें . . . फिर अपने दामाद के हाथों बना खाना खाकर बताइएगा कि आप इन्हें कितने नम्बर देंगी।”

यह सुनते ही मालती की भूख मर गई। यद्यपि वह खुले विचारों वाली महिला थी, फिर भी नहा-धोकर कपड़े बदलते हुए हैरान-परेशान हुई सोच रही थी कि दामाद के हाथों बना खाना वह कैसे खा सकती है! क्या उसकी बेटी खाना नहीं बनाती? 

नीचे आई तो तमन्ना डाइनिंग-टेबल पर खाना परोस चुकी थी और तीनों उसी की प्रतीक्षा कर रहे थे। थकावट के कारण भूख मिट जाने का बहाना बनाकर औपचारिकता वश मालती ने अपनी प्लेट में बस थोड़े से चावल के ऊपर ही दाल उड़ेल कर व सलाद के दो-तीन टुकड़े रख, जैसे-तैसे भोजन किया। 

खाना खाने के बाद बेटी व नाती के साथ मालती बैठक में चली गई। समीर तब तक डिशवॉशर में झूठे बर्तन रख रसोई सुव्यवस्थित करने में लग गया। तमन्ना देख रही थी कि उसकी मम्मी हमेशा की तरह बतिया नहीं रहीं . . . लेकिन उसने यह सोचकर मन को समझा लिया कि शायद जेट-लैग (लम्बी हवाई-यात्रा उपरांत नये देश के टाइम-ज़ोन से कुछ दिनों तक अभ्यस्त न होना) के कारण थकी-थकीसी हैं। 

अगली सुबह वीकैंड (शनिवार और रविवार की छुट्टी) होने के कारण समीर व समर अभी सो रहे थे। मालती ने देखा कि तमन्ना लंच की तैयारी के साथ-साथ घर को ऊपर से लेकर नीचे तक झाड़-पोंछ रही थी। मालती भी उसका हाथ बटा रही थी, और ध्यान से देखती रही कि रसोई आदि में सब सामान कहाँ-कहाँ रखा हुआ है . . . ताकि जब तक वह अगले चार सप्ताह के लिए यहाँ है, दामाद को खाना बनाने या घर का कोई काम न करने देगी। 

तमन्ना ने तब माँ को बताया, “आपको तो मालूम ही है कि लॉकडाउन के चलते समीर की नौकरी चली गई थी। यद्यपि स्थिति अब सामान्य हो चुकी है . . . लेकिन . . . अभी तक दूसरी नौकरी मिली नहीं। सौभाग्य से उन्हीं दिनों मेरी प्रोमोशन (पदोन्नती) हो गई थी, इसलिए आर्थिक रूप से हम ठीक-ठाक हैं। बस, समीर की कार बेचनी पड़ी . . . क्योंकि एक सफ़ेद हाथी की तरह उसका कहीं भी उपयोग नहीं हो पा रहा था।”

तीन-चार दिन बीतते ही मालती तनु की भी दिनचर्या देखकर चकित रह गई कि वह कैसे अपने ऑफ़िस के बाद या ऑफ़िस के लंच-ब्रेक में भी, कभी घर का राशन-पानी, कभी समर को स्कूल से लाने, उसके बाद उसे कभी ब्राउनी-क्लब, कभी संगीत या जूडो की क्लास आदि पर ले जाने/वापस लाने की भाग-दौड़ में ही लगी रहती है। फिर बूढ़े सास-ससुर, जो समीप के टाउन में रहते हैं, उन्हें उनके डॉक्टर या बैंक आदि के काम के लिए ले जाना इत्यादि इत्यादि। अब मालती को लगा कि यदि दामाद समीर को घर के वे सभी काम करने पड़ रहे हैं जो एक गृहिणी को करने चाहिए . . . तो उसकी बेटी तनु भी तो ख़ुशी-ख़ुशी बाहर के वे सभी काम कर रही है जो घर का पुरुष करता है। 

आज मालती भारत लौट रही है। उसे अपनी बेटी पर तो मान है ही, परन्तु अपने दामाद पर उससे भी अधिक गर्व महसूस हो रहा है। वह ईश्वर का बार-बार धन्यवाद करते नहीं थक रही, “भगवन! आपकी कृपा व आशिर्वाद से मेरी बेटी को समीर जैसा सहयोगी पति एक जीवन-साथी के रूप में मिला। मेरी आपसे अब केवल यही विनती है प्रभु, मेरे दामाद को शीघ्र बढ़िया नौकरी दिलवा दें व संसार की सभी बेटियों का भी जीवन ऐसा ही सुखमय बने।”

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पाण्डेय सरिता 2022/04/11 09:33 PM

सुंदर कहानी

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