अनुभूति बोध
काव्य साहित्य | कविता - क्षणिका डॉ. रमा द्विवेदी17 Nov 2014
सदियाँ गुज़र जाती हैं
अनुभूति का बोध उगने के लिए
शताब्दियाँ गुज़र जाती हैं
अनुभूति को पगने के लिए
अनुभूति माँगती है दिल की सच्चाई
सच्चाई में तप कर खरा उतरना
बहुत दुर्लभ प्रक्रिया है
क्षण-क्षण बदलते मन के भाव
अनुभूति की नींव
बारम्बार हिला देते हैं।
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