सही निर्णय
कथा साहित्य | लघुकथा डॉ. रमा द्विवेदी1 Oct 2021 (अंक: 190, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
"सावित्री देवी तुम इतने बड़े घर में अकेली क्यों रहती हो। अपने बेटे-बहू के साथ क्यों नहीं रहती?" नैना ने पूछा।
सावित्री ने कहा, "रोज़-रोज़ बहू-बेटा उपेक्षित और दुर्व्यवहार करते थे। मैं यह सोच कर चुप रही कि बच्चे हैं, एक न एक दिन तो समझ ही जाएँगे लेकिन एक दिन तो हद ही कर दी। बेटा आकर मुझसे बोला– ’माँ अगर हमारे साथ रहना है तो हमारी मर्ज़ी से आपको रहना पड़ेगा।’ मैंने कहा तुम्हारी मर्ज़ी? मैंने दृढ़ता से कहा– ’बेटा तुम ग़लत कह रहे हो। यह घर मेरे पति ने बनवाया था, यह घर मेरा स्वाभिमान है इसलिए मैं तो यहीं रहूँगी। अब यह तुम्हें सोचना है कि ’तुम्हें कहाँ रहना है’?
"इसके बाद वो किराए के घर में रहने चले गए। तुम्हीं बताओ मैंने क्या ग़लत कहा ? मैं बहुत स्वाभिमानी और सिद्धांतवादी महिला हूँ, कोई बेवज़ह मेरा अपमान करे, यह सहना मेरे रक्त में नहीं है।"
नैना ने कहा,"तुमने बिलकुल सही किया, सही समय पर तुमने सही निर्णय लिया।"
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
लघुकथा
कहानी
गीत-नवगीत
कविता
कविता - क्षणिका
कविता - हाइकु
कविता-ताँका
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं