स्वतंत्र जीवन
कथा साहित्य | लघुकथा डॉ. रमा द्विवेदी1 Nov 2021 (अंक: 192, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
"हमें आपका घर किराए पर चाहिए," आगंतुक लड़के ने कहा।
मैंने लड़के के साथ लड़की को देख पूछा, "आप दोनों पति-पत्नी हो?"
लड़के ने लड़की की ओर देख कर कहा, "हम दोनों पति-पत्नी जैसे ही हैं।"
"पति-पत्नी के जैसे ही हैं का क्या मतलब? क्या तुम दोनों की शादी नहीं हुई अभी?" मैंने पूछा।
"नहीं। दरअसल हम शादी करना भी नहीं चाहते, पर हम दोनों साथ रहकर न केवल जीवन गुज़ारना चाहते हैं बल्कि संतान भी करना चाहते हैं," लड़के ने उत्तर दिया।
मैंने बड़ी सहजता से पूछा, "शादी क्यों नहीं करना चाहते? संतान तो शादी के बाद ही करनी चाहिए?"
"वास्तव में शादी करके हम सामाजिक बंधनों में नहीं बँधना चाहते और अगर हम दोनों में से किसी एक की मृत्यु हो जाए तो न मैं विधवा होऊँगी और न ये विधुर होगा और हाँ हमारे ऊपर घर-परिवार एवं समाज की रूढ़ि परम्पराओं का भी किसी प्रकार का दबाव नहीं होगा तथा हम स्वतंत्र जीवन जी सकेंगे." इस बार उस लड़की ने बेहिचक उत्तर दिया।
लड़की का इतना स्पष्ट उत्तर सुनकर आश्चर्यचकित हो मैं गंभीर प्रश्नों में उलझ गई।
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