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अकथित दर्द

दोपहर प्रिया जब कॉलेज से घर आयी तो ननद सास से बतिया रही थी कि कैसे उसके ससुराल वाले बेटे को तो बहुत प्यार करते हैं किन्तु उसे नहीं करते। वे बेटे-बहू में फ़र्क़ करते हैं। मैं तो सास-ससुर का उनके बेटे से बढ़कर ध्यान रखती हूँ। 

प्रिया की सास अपनी बेटी के ससुराल के ऐसे व्यवहार से दुखी थी और उसे अपने यहाँ कुछ दिन रुकने का आग्रह कर रही थी कि उसकी अनुपस्थिति में उसके ससुराल वालों को अक़्ल आ जाएगी कि बहू के साथ कैसा व्यवहार करते हैं। ननद से मिलकर प्रिया रसोई मे कुछ बढ़िया व्यंजन बनाने गई ताकि ननद का मूड अच्छा हो जाए। आदर्श बहू की भाँति प्रिया सुबह से लेकर शाम तक ससुराल में चकरी की तरह घूमती हुई सास, पति एवं बच्चों की  देखभाल एवं सेवा मे हर पल तत्पर रहती। विवाह के पश्चात अपनी पसंद-नापसंद एवं इच्छाओं की तिलांजलि दे कर हर पल सभी की आवश्यकताओं एवं इच्छाओं का ध्यान रखती। अपने मायके जाने से पहले भी दस बार सोचती। इतना सब करने पर भी न जाने ससुराल वाले पूरी तरह संतुष्ट नहीं थे। नौकरी से आने में पति को अगर देर हो जाती तो उन्हें पानी देने के पश्चात्‌ आराम करने को कहा जाता और उसे कॉलेज से आने में थोड़ी सी भी देरी होने पर कारण पूछा जाता और खाना मिलने में देरी की बात सुनने को मिलती। ये बात उसे कई बार उसके मन को कचोटती, फिर सोचती कि मेरी तरफ़ से कोई तो कमी रह गई होगी।  एक दिन कॉलेज से प्रिया घर वापिस आयी तो तबीयत अस्वस्थ प्रतीत हो रही थी। ननद घर आयी हुई थी। ननद से मिलकर प्रिया ने खाना पकाया और सभी को खिलाकर दवाई खाकर आराम करने चली गई । थोड़ी देर आराम करने के उपरांत उठी तो घर के सभी सदस्य तिलमिलाए हुए थे कि इसकी बदतमीज़ी तो देखो ननद घर आयी है किन्तु महारानी को आराम फ़रमाने से फ़ुर्सत नहीं है।  

प्रिया सोचने पर विवश थी कि जिन की इतने तन-मन से सेवा की है, वे कुछ देर के लिए भी बहु के तथाकथित कर्तव्यों से छुट्टी देकर उससे बेटी की तरह व्यवहार नहीं कर सकते। 

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