परिवार
काव्य साहित्य | कविता डॉ. दीप्ति15 Nov 2024 (अंक: 265, द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)
नाज़ुक धागों में बँधे रिश्ते
आत्मीयता और भावुकता लिए
काँपते हाथों का आशीर्वाद
खिलौनों से खेलते हुए नन्हे नन्हे हाथ
प्रेम और सम्मान उड़ेलता जीवनसाथी
परिवार
कच्चे धागों से जुड़ा संसार
वर्षों से सिमटा परिवार
बिखरता चंद लम्हों में
नाराज़गी जहाँ दरारों में बदल जाती है
और दरारें गहरी खाइयों में
जीवन दूरियों में बहते रिश्ते
परिवार
जिसके बिना जीना नामुमकिन
और जिसमें बसना एक बड़ी चुनौती
परिवार
स्नेह की डोर से बँधे रिश्ते
जीवन भर चलता संघर्ष
प्रत्येक सदस्य का
स्थायित्व का
परिवार
जो छूटता है मृत्यु की आख़िरी साँसों से प्रयत्नों से नहीं छूटता
परिवार
मोह जाल के धागों से बुना
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