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स्वाध्याय ही जीवन की वास्तविक सम्पत्ति

 

स्वाध्याय—स्वयं का अध्ययन एवं विचारों काअवलोकन करना, ज्ञान स्रोत को जागृत करने हेतु अच्छा साहित्य पढ़ना, स्वयं के ज्ञान रूपी मक्खन को सामाजिक तौर पर प्रवाहित होने देना, परोपकार की दिशा की ओर ले जाना, हमारे भीतर हमारी चेतना में जो जगत है, वहाँ बहुत कुछ चल रहा होता है। विचारों के झंझावात स्मृतियों की हलचल भावनाओं का आलोड़न कल्पनाओं की उड़ान बहुत विचार चल रहे हैं अंदर। कुंभ का मेला सदा ही लगा रहता है, उसका निरीक्षण करना। उसमें जागरूकता लाना, बार-बार अभ्यास करना। 

कहते हैं ना—करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान! 

महर्षि पतंजलि ने अष्टांग योग के 8 आयाम बतायें हैं ‌। पहला आयाम यम है, दूसरा नियम‌। नियम के पाँच उपांग हैं जिसमें स्वाध्याय चौथा उपांग है। अष्टांग योग द्वारा व्यक्ति को सामाजिक समरसता शारीरिक स्वास्थ्य, बौद्धिक जागरण, मानसिक शान्ति, एवं आत्मिक आनंद की अनुभूति होती है। यही तो है मनुष्य के जीवन की वास्तविक सम्पत्ति है।

स्वाध्याय हमारे जीवन में सही विचारों का समावेश करता है। जीवन का सच्चा मार्गदर्शन एवं ज्ञान और आनंद की प्राप्ति का सशक्त साधन है। ज्ञान की प्राप्ति परमात्मा की प्राप्ति है। 

महावीर बुद्ध ने बड़ी सुंदरता से कहा है:

कायनु पशयना / अपने शरीर को देखो
वेदनानु पशयना / शरीर की संवेदना को देखो‌। 
चितानु पशयना / अपने चित को, अपने मन को देखो। मन की छाया को देखो, विचारों को देखो। 
चश्मानु पशयना  / अपने आप को देखो 

तुमने शरीर शुद्ध कर लिया क्या? क्या तुम शरीर हो? तुमने मन को हल्का कर लिया क्या? क्या तुम मन हो? क्या तुम विचार हो? क्या भाव हो? 

तुम हो क्या? इस पर ध्यान दो। 

महाभारत के शान्ति पर्व में सभी दुखों भय चिंता क्लेशों को दूर करना तथा विचारों को स्वच्छ करना स्वाध्याय है। 

महर्षि पतंजलि कहते हैं, कि तपसः, स्वाध्याय, ईश्वर प्रणिधान यही क्रिया योग है। 

तुम बस इसे महसूस करो प्रत्येक मनुष्य को योग में स्थित होने के लिए स्वाध्याय को अपने जीवन में ज़रूर अपनाना होगा।

स्वाध्याय की सम्पत्ति से परमात्मा का साक्षात्कार होने लगता है। स्वाध्याय विशेष रूप से वेदों और अन्य पवित्र ग्रन्थों का अध्ययन करना है। आर्य समाज का तीसरा नियम कहता है वेदों का पढ़ना-पढ़ाना और सुनना-सुनाना सभी का परम कर्त्तव्य है। जो व्यक्ति पढ़े-लिखे नहीं है, वह सत्संग द्वारा ऑडियो द्वारा प्रवचनों को सुनकर भी ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं ‌। 

ऋषियों को वेदों का ज्ञान गुरुओं से कहीं ज़्यादा स्वाध्याय से मिला। 

यदि आप जीवन को निर्मल बनाना चाहते हो तो आलस्य, प्रमाद को त्याग कर सद्ग्रंथों का नियमित अध्ययन करने का आज ही संकल्प लें। 

“तमसो मा ज्योतिर्गमय” 

स्वाध्याय एक ऐसा ही सवेरा है, जो मन के अंधकार को, ज्ञान के प्रकाश की ओर सकारात्मक गति देता है। 

अतीत की ग़लतियों से सीखना उन ग़लतियों में सुधार कर आगे बढ़ना, यानी स्वयं से स्वयं का परिचय करना स्वयं को प्यार करना अपने व्यक्तित्व में निखार लाना है।

जिसके लिए ज़रूरी है सद ग्रन्थों का अध्ययन करना जिससे जीवन को आदर्श बनाने की सतप्रेरणा मिलेगी। 

अतः यह कहना अतिश्योक्ति नहीं बल्कि सत्य है, कि स्वाध्याय ही जीवन की वास्तविक सम्पत्ति है। 

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टिप्पणियाँ

अनीता relan 2024/04/08 08:07 AM

साहित्य कुंज पत्रिका के बारे में कुछ भी कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा लेख कविताएँ संस्मरण आलेख लघु कथाएं कुछ भी इस पत्रिका से अछूता नहीं रहा धन्यवाद के पात्र हैं संपादक महोदय पत्रिका अपने नाम को सार्थक करती है पत्रिका में प्रकाशित प्रतीक लेख चाहे वह कविता हो या sansmaran सभी प्रेरणादायक रहते हैं और बड़े चुने हुए होते हैं जो दिल को छू जाते हैं

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