अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा यात्रा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

महर्षि दयानंद बलिदान दिवस पर विशेष

 

(12 फरवरी, 1824 – 30 अक्तूबर 1883)

 

धर्म के प्रहरी, ज्योति स्वरूप,
ज्ञान की गंगा बहाई थी।
अंधकार मिटा कर तम का,
नई किरण जग में लाई थी।
 
पाखंडों को ललकारा जिसने,
वेदों का दिया संदेश,
आर्य समाज का दीप जलाया,
सत्य का बढ़ाया वेश।
 
जिसने त्याग किया जीवन का,
जोश से लड़ी थी लड़ाई,
धर्मयुद्ध के इस वीर पथिक ने,
न्याय की राह सिखाई।
 
कर्म की गीता गाई जिसने,
जीवन को सच्चा अर्थ दिया,
अज्ञान के घोर अंधेरे में,
उजियारा अनर्थ किया।
 
जात-पात का अंत किया,
समानता का दिया विचार,
धर्म के असली अर्थों से,
सबको किया पार।
 
बलिदान दिवस की वेला पर,
उसे प्रणाम करें हम बार-बार,
धर्मवीर दयानंद का जीवन,
है प्रेरणा का अमूल्य आधार।
 
जग को नई राह दिखाई जिसने,
उस पर श्रद्धा का सुमन चढ़ाएँ,
वेदों की ज्योति जलती रहे,
ऐसे संकल्प हम मन में बसाएँ।

 

महर्षि के संदेश और सूक्तियाँ:

  • "सत्य बोलना और सत्य का पालन करना ही सबसे बड़ा धर्म है।"

  • "अज्ञान को दूर भगाकर, ज्ञान का प्रकाश फैलाओ।"

  • "मनुष्य का धर्म है कर्म करना, सच्ची सेवा में लगना।"

  • "वेदों की ओर लौटो और सत्य मार्ग अपनाओ।"

महर्षि दयानंद के अमर सिद्धांतों और शिक्षाओं से प्रेरणा लेते हुए, हमें उनके बलिदान का सम्मान करना चाहिए और उनके मार्ग का अनुसरण करके समाज में सत्य और धर्म की जोत जलानी चाहिए।

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

'जो काल्पनिक कहानी नहीं है' की कथा
|

किंतु यह किसी काल्पनिक कहानी की कथा नहीं…

14 नवंबर बाल दिवस 
|

14 नवंबर आज के दिन। बाल दिवस की स्नेहिल…

16 का अंक
|

16 संस्कार बन्द हो कर रह गये वेद-पुराणों…

16 शृंगार
|

हम मित्रों ने मुफ़्त का ब्यूटी-पार्लर खोलने…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

काम की बात

ललित निबन्ध

कविता

चिन्तन

सांस्कृतिक आलेख

साहित्यिक आलेख

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं