महर्षि दयानंद बलिदान दिवस पर विशेष
काव्य साहित्य | कविता अनीता रेलन ‘प्रकृति’15 Nov 2024 (अंक: 265, द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)
(12 फरवरी, 1824 – 30 अक्तूबर 1883)
धर्म के प्रहरी, ज्योति स्वरूप,
ज्ञान की गंगा बहाई थी।
अंधकार मिटा कर तम का,
नई किरण जग में लाई थी।
पाखंडों को ललकारा जिसने,
वेदों का दिया संदेश,
आर्य समाज का दीप जलाया,
सत्य का बढ़ाया वेश।
जिसने त्याग किया जीवन का,
जोश से लड़ी थी लड़ाई,
धर्मयुद्ध के इस वीर पथिक ने,
न्याय की राह सिखाई।
कर्म की गीता गाई जिसने,
जीवन को सच्चा अर्थ दिया,
अज्ञान के घोर अंधेरे में,
उजियारा अनर्थ किया।
जात-पात का अंत किया,
समानता का दिया विचार,
धर्म के असली अर्थों से,
सबको किया पार।
बलिदान दिवस की वेला पर,
उसे प्रणाम करें हम बार-बार,
धर्मवीर दयानंद का जीवन,
है प्रेरणा का अमूल्य आधार।
जग को नई राह दिखाई जिसने,
उस पर श्रद्धा का सुमन चढ़ाएँ,
वेदों की ज्योति जलती रहे,
ऐसे संकल्प हम मन में बसाएँ।
महर्षि के संदेश और सूक्तियाँ:
-
"सत्य बोलना और सत्य का पालन करना ही सबसे बड़ा धर्म है।"
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"अज्ञान को दूर भगाकर, ज्ञान का प्रकाश फैलाओ।"
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"मनुष्य का धर्म है कर्म करना, सच्ची सेवा में लगना।"
-
"वेदों की ओर लौटो और सत्य मार्ग अपनाओ।"
महर्षि दयानंद के अमर सिद्धांतों और शिक्षाओं से प्रेरणा लेते हुए, हमें उनके बलिदान का सम्मान करना चाहिए और उनके मार्ग का अनुसरण करके समाज में सत्य और धर्म की जोत जलानी चाहिए।
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