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छत्रपति शिवाजी का जन्म जयघोष

 

सिंहगर्जना गूँज रही है, 
नभ में बज रही रणभेरी, 
धरती हर्षित, गगन सजीव, 
यह पुण्य घड़ी है न्यारी। 
 
कौन जन्मा आज भूमि पर, 
यह कैसा तेज अपार? 
स्वयं सूर्य का पुत्र उतरकर, 
दे रहा विजय का संचार। 
 
जय भवानी! जय शिवाजी! 
स्वराज्य का दीप जला, 
धर्मरक्षक, नीति-नायक, 
शत्रु-दल को आज हिला। 
 
शेर सा साहस, पर्वत सी दृढ़ता, 
रणभेरी की हुंकार थे शिवाजी! 
मिट्टी की ख़ुश्बू, जन-जन की आशा, 
स्वराज के शृंगार थे शिवाजी! 
 
मातृभूमि का प्रेम सिखाया, 
बचपन से रण का रंग चढ़ा, 
न्याय-धर्म की नींव रखी, 
हर अन्यायी शीश झुका। 
 
बचपन में ही खा ली सौगंध, 
“माँ, स्वराज्य का होगा मान!”
हिंदवी सिंह गर्जना करके, 
फिर रच देंगे इतिहास महान। 
 
मुग़ल, सुल्तान, सब घबराए, 
इस सिंह की देखो हुंकार, 
रणभूमि में गरज पड़े जब, 
ध्वस्त हुए आतंकी शासक। 
 
सिंहगढ़ से लहराया परचम, 
हर दिल में जगा था जोश नया, 
धर्म, जाति से ऊपर उठकर, 
जनता को एक किया। 
 
छत्रपति की यह पुण्य जयंती, 
शौर्य, प्रेम, विजय का संगम, 
आज हमारे हृदय में धधके, 
शिव जन्मोत्सव का जयघोष! 
 
जय भवानी! जय शिवाजी! 

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