अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा यात्रा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

सुरभित कर्म, सुरभित वाणी, और हो सुरभित अंतर्मन!

 

गुलाब की तरह हमारा जीवन अंदर-बाहर से सुंदर हो।

जीवन एक रहस्य है। हम इसके रहस्य को बिना समझे अपने जीवन की किसी भी साधना में सफलता प्राप्त नहीं कर सकते। जीवन को वैसे भी किन्हीं भी शब्दों में बाँधा नहीं जा सकता। संसार अनंत है। इस अनंत जगत में, मनुष्य का जीवन एक नन्ही बूँद सा है। बूँद को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है—अंतरंग और बहिरंग। दोनों को मिलाकर ही विचार और आचार बनते हैं।

जीवन को चार प्रकार के पुष्पों के माध्यम से समझा जा सकता है। पहला प्रकार—पुष्प जो बाहर से आकार और रंग-रूप की दृष्टि से देखने में सुंदर लगते हैं, किन्तु सौरभ से रहित होते हैं, जैसे टेसू के फूल। वैसे ही कुछ व्यक्ति होते हैं—बाह्य ऐश्वर्य, शारीरिक सौंदर्य आदि से संपन्न, परन्तु सद्गुणों और सौरभ से ना के बराबर। उदाहरणस्वरूप, रावण, दुर्योधन, और जरासंध।

दूसरे प्रकार के पुष्प में सौरभ तो होता है, परन्तु सुंदर न होते हुए भी वे आकर्षित करते हैं। जैसे, विजय चंपा के पुष्प अपने सौरभ के कारण। ऐसे लोगों का जीवन अनुकरणीय होता है। तीसरे प्रकार के पुष्प वे होते हैं, जो बाहर के रूप-रंग की दृष्टि से भी सुंदर होते हैं और अंदर की दृष्टि से भी। सौरभ से महकते हुए उनके जीवन का महत्त्व होता है—जैसे गुलाब का पुष्प, जो दूर-दूर तक सुगंध फैलाता है और उसका रंग-रूप भी सुंदर होता है। हमें भी गुलाब के फूल की तरह अंदर और बाहर, दोनों तरह से सुंदरता को अपनाना चाहिए।

चतुर्थ प्रकार के पुष्प वे होते हैं, जिनमें न तो सुंदरता होती है और न ही सुगंध। वे केवल नाम मात्र के फूल होते हैं, जैसे धतूरे के फूल। इसी प्रकार, संसार में लाखों-करोड़ों व्यक्ति हैं, जिनमें न तो शारीरिक सौंदर्य है और न ही आत्मिक गुणों का सौरभ। बाहर से तो वे इंसान का आकार लिए हुए हैं, परन्तु सही अर्थों में वे इंसान नहीं, बल्कि हैवान होते हैं। बाह्य एवं अभ्यंतर सौंदर्य से शून्य उनका जीवन होता है; इसलिए उनके जीवन का कोई महत्त्व नहीं होता।

जीवन को सफल बनाने का सूत्र यही है कि हमारा अंतर्मन भी सुरभित होना चाहिए, कर्म भी सुरभित हो और हमारी वाणी भी सुरभित हो। जब हमारा जीवन गुलाब की तरह अंदर और बाहर से सुंदर होगा, तो हमारा जीवन कभी निराशा को छू नहीं पाएगा। चंपा के पुष्प की तरह, जब हमारा अंतर्मन भी सौरभ से परिपूर्ण होगा, तो हम निर्भय और निरंतर उन्नति की ओर अग्रसर होते चले जाएँगे।

यह संसार एक झील है, जिसमें विषय-वासना का कीचड़ भरा है, मोह का जल तरंगित हो रहा है, और राग, द्वेष, घृणा, आवेश, और विरोध जैसे विकारों के तूफ़ानों से यह झील उद्वेलित है। फिर भी, हमें कमल की तरह संसार से निर्लिप्त रहकर अपनी जीवन यात्रा करनी चाहिए। कमल सदैव जल से निर्लिप्त रहता है। जल कितना भी हो, कमल पर एक बूँद भी नहीं टिकती। जहाँ धरती पर पानी हो, वहाँ ज़मीन गीली हो जाती है; वस्त्र पर पानी पड़े, तो वह भीग जाता है; परन्तु कमल, जल में रहकर भी निर्लिप्त रहता है। हमें भी कमल की तरह संसार से निर्लिप्त रहकर अपनी जीवन यात्रा करनी चाहिए।

मेरी यही मंगल कामना है कि मानवता की डाली पर चंपा, कमल, और गुलाब का एक सुंदर संगम हो।

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

25 वर्ष के अंतराल में एक और परिवर्तन
|

दोस्तो, जो बात मैं यहाँ कहने का प्रयास करने…

अच्छाई
|

  आम तौर पर हम किसी व्यक्ति में, वस्तु…

अज्ञान 
|

  चर्चा अज्ञान की करते हैं। दुनिया…

अनकहे शब्द
|

  अच्छे से अच्छे की कल्पना हर कोई करता…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

चिन्तन

काम की बात

ललित निबन्ध

कविता

सांस्कृतिक आलेख

साहित्यिक आलेख

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं