जादू की परी?
काव्य साहित्य | कविता शैली15 Apr 2024 (अंक: 251, द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)
क्या किसी ने देखी हैं परियाँ?
होती हैं क्या जीती जागती?
उड़ती हैं रंगीन पंखों से?
जादू की छड़ी ले मनोकामना पूरी करतीं?
परियाँ सुन्दर ही होती हैं?
आसमान में रहती हैं या धरती पर बसती हैं?
कहीं ये ज़मीन के नीचे तो नहीं रहतीं हैं?
क्यों दिन में नहीं, सिर्फ़ रातों में दिखाती हैं?
कौन इन्हें बनाता है?
चलना और उड़ना सिखाता है?
क्या ये पैदा होती हैं
बच्ची से बूढ़ी हो मृत्यु तक पहुँचती हैं
अंत्येष्टि होती है क्या, कौन इन्हें दफ़नाता है?
परियाँ मात्र स्त्रियाँ हैं, पुरुष नहीं?
तब इनका पैदा होना सम्भव ही नहीं!
निश्चित ही यह फ़ैक्ट्रियों में बनती हैं
रिमोट कंट्रोल से हवा में उड़ती हैं
ये जादू क्या करेंगी जब ख़ुद नक़ली होती हैं
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
- अप्रतिहत
- अमृत जयन्ती तक हिन्दी
- आराधना
- उचित क्या है?
- एकता का बंधन
- क्वार का मौसम सुहाना
- खोज
- ग्रहण में 'शरतचंद्र'
- चाँद पर तीन कवितायें
- जलता यूक्रेन-चहकते चैनल
- जादू की परी?
- जाने क्यूँ?
- डिजिटल परिवार
- त्रिशंकु सी
- दिवाली का आशय
- देसी सुगंध
- द्वंद्व
- पिता कैसे-कैसे
- प्यौर (Pure) हिंदी
- प्राचीन प्रतीक्षा
- फ़ादर्स डे और 'इन्टरनेटी' देसी पिता
- फागुन बीता जाय
- फागुनी बयार: दो रंग
- माँ के घर की घंटी
- ये बारिश! वो बारिश?
- विषाक्त दाम्पत्य
- शब्दार्थ
- साल, नया क्या?
- सूरज के रंग-ढंग
- सौतेली हिंदी?
- हिन्दी दिवस का सार
- होली क्या बोली
हास्य-व्यंग्य कविता
किशोर साहित्य कविता
कविता-ताँका
सिनेमा चर्चा
सामाजिक आलेख
ललित निबन्ध
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं
Neelam 2024/04/06 05:13 PM
विचारणीय। क्यों लोग अपनी बेटियों को परी कहते हैं?