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जलता यूक्रेन-चहकते चैनल

कराहती मानवता, अट्टहास करता विनाश 
कौन शक्तिशाली है, सृजन या सर्वनाश? 
सृजन और विनाश ईश्वर में समाहित है, 
वही सर्जक है और वही संहारक है, 
विनाश की शक्ति ने सृजन को पराजित किया है 
क्या इसीलिए यह संघर्ष, आरंभ हुआ है? 
क्या यह युद्घ ईश्वरीय शक्तियों का टकराव है? 
यह युद्घ और संहार किस बात का परिणाम है? 
क्या स्वयं ईश्वर अंतर्द्वंद्व से ग्रस्त है? 
शक्ति-संतुलन किसी कारण से ध्वस्त है? 
मानव और मानवता त्रस्त है! 
विनाश और संहार सर्वत्र है, 
गीता बताती है सभी रूपों में ईश्वर स्वयं है, 
फिर आक्रान्ता और आक्रान्त प्रभु स्वयं है, 
तटस्थता से देखता वह, मौन है निर्लिप्त है, 
अपनी ही सृष्टि के, विनाश में व्यस्त है? 
पीड़ित मानवता किस की राह निहारे? 
क्या अपने पापों का इसे दण्ड माने? 
किसकी शरण ले, किसे सुरक्षा के लिए पुकारे? 
संचार माध्यम सहायता कर सकते हैं 
टीवी के चैनल्स इसमें ऊँचा स्थान रखते हैं॥
  
हमारा दूरदर्शन भी परमात्मा के समान है, 
युद्ध और विनाश से चलती दुकान है, 
कितने उत्साह से चित्र दिखाते हैं, 
चहकती हुई आवाज़ में दृश्य बखानते हैं, 
युद्ध और विनाश को वैसे ही दिखाते हैं, 
जैसे किसी खेल की कमेंट्री बताते हैं॥
 
दूरदर्शन पर युद्घ भी, मैच जैसे लगते हैं, 
ऐंकर बिल्कुल, कॅमेन्ट्रेटर जैसे लगते हैं, 
बम गिरने को, विकेट गिरने सा बताते हैं, 
मिसाइल गिरने को, रन लेने जैसा सुनाते हैं, 
ये चैनल्स विनाश को भी चटपटा बनाते हैं, 
इतना उत्साह और हृदयहीनता कहाँ से पाते हैं? 
देखने वाले भी क्या तालियाँ बजाते हैं?? 
 
अशोक युद्घ देख कर विरत हो गया था, 
बुद्ध की शरण ले श्रमण हो गया था, 
इनमें अशोक सी आत्मा नहीं दिखती है
व्यापार के आगे, मानवता शून्य लगती है, 
इन्हें नर-संहार नहीं 'टी आर पी' दिखती है 
“एमी अवार्ड्स“ में नामज़दगी दिखती है। 

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टिप्पणियाँ

पाण्डेय सरिता 2022/02/27 09:20 AM

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