द्वंद्व
काव्य साहित्य | कविता शैली1 Jan 2022 (अंक: 196, प्रथम, 2022 में प्रकाशित)
मन और मस्तिष्क का द्वंद्व पुराना है
मन है फ़क़ीर तो मस्तिष्क पैसे का दीवाना है
मन तो बच्चा है जो हिसाब नहीं जानता है
मस्तिष्क साहूकार सा, हर चीज़ तौलता, परखता, जाँचता है
मन को काम नहीं, सपनों की दुकान चाहिये
मस्तिष्क को काम, दाम और सम्मान चाहिए
मन को बन्धन नहीं, स्वच्छंद उड़ान चाहिए
मस्तिष्क को परिवार, मित्र और प्रेम बन्धन चाहिये
मन तो आवारा, बदनाम और फक्कड़ है
मस्तिष्क में हमेशा निन्यानवे का चक्कर है
मन बे-परवाह सा किसी ओर मुड़ जाता है
मस्तिष्क क़दम रखने से पहले, चार बार जाँचता है
मस्तिष्क अरमानी और राल्फ लॉरेन चाहता है
मन तो चीथड़ों में भी ख़ुद को कुबेर सा मानता है
मन-मस्तिष्क में छत्तीस का सम्बन्ध है
दोनों के दिल में एक-दूजे का आतंक है
इन्सान आजीवन इसी द्वंद्व में उलझता है
कभी मन की तो कभी मस्तिष्क की सुनता है
मन की सुनो तो समाज रूठ जाता है,
मस्तिष्क की बातों से जीवन का मज़ा सूख जाता है
ज़िन्दगी इसी दुधारी तलवार पर चलती है
कभी मन को घाव, कभी मस्तिष्क पर चोट लगती है,
इसी कशमकश में उमर गुज़र जाती है . . .
सचमुच ये ज़िन्दगी बहुत ज़्यादा तड़पाती है
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
- अप्रतिहत
- अमृत जयन्ती तक हिन्दी
- आराधना
- उचित क्या है?
- एकता का बंधन
- क्वार का मौसम सुहाना
- खोज
- ग्रहण में 'शरतचंद्र'
- चाँद पर तीन कवितायें
- जलता यूक्रेन-चहकते चैनल
- जादू की परी?
- जाने क्यूँ?
- डिजिटल परिवार
- त्रिशंकु सी
- दिवाली का आशय
- देसी सुगंध
- द्वंद्व
- पिता कैसे-कैसे
- प्यौर (Pure) हिंदी
- प्राचीन प्रतीक्षा
- फ़ादर्स डे और 'इन्टरनेटी' देसी पिता
- फागुन बीता जाय
- फागुनी बयार: दो रंग
- माँ के घर की घंटी
- ये बारिश! वो बारिश?
- विषाक्त दाम्पत्य
- शब्दार्थ
- साल, नया क्या?
- सूरज के रंग-ढंग
- सौतेली हिंदी?
- हिन्दी दिवस का सार
- होली क्या बोली
हास्य-व्यंग्य कविता
किशोर साहित्य कविता
कविता-ताँका
सिनेमा चर्चा
सामाजिक आलेख
ललित निबन्ध
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं
Sarojini Pandey 2021/12/22 08:54 PM
बहुत सुंदर बहुत बढ़िया