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सौतेली हिंदी? 

 

हिन्दी बेचारी सी
कहीं पीछे छूटती सी
‘For English press one
हिन्दी के लिए दो दबायें’
ऐसे संदेशों को सुनती सी
दीन-हीन तिरस्कृत सी
अपने ही घर में सौतेली सन्तान सी
हिन्दी दिवस पर दिख जाती है
चारण-सम स्तुतियाँ की जाती हैं 
कार्यक्रम सम्मेलन कुछ
इसी दिन होते हैं . . . 
वर्ष भर ठंडे बस्तों में सोते हैं
साहित्य में जो हिन्दी का परचम लहराते हैं 
रोज़मर्रा बातों में अँग्रेज़ी झाड़ते हैं
कहते हैं हिन्दी विदेशों तक पहुँची है 
अपने ही देश में, अनदेखी होती है
हिन्दी को रोमन में ज्य़ादातर लिखते हैं 
सिनेमा और टीवी के लोग यहाँ अगड़े हैं 
देश के नेता भी इसके शिकार हैं 
नागरी-लिपि उनके लिए बेकार है 
कहाँ तक सुनाऊँ यह तथ्य विख्यात है
दक्षिण में हिंदी अछूत और त्याज्य है 
दीन-हीन हिंदी का लम्बा इतिहास है 
भारत में अंग्रेज़ी भाषा का राज है 
कौन है जिसको ये दृश्य नहीं दिखता है? 
हिन्दी का भावी अब ख़तरे में दिखता है 

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