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ऐसा क्यों? 

(विधा-ताँका)

(मातृ दिवस विशेष)
 

कच्ची सी कली 
ससुराल पहुँची 
पाषाण वह 
मसली मुरझायी
गर्भ से अकुलायी
 
समयान्तर 
नूतन अंकुरण 
जीवन ज्योति 
सम्हाली भरसक 
अथक परिश्रम 
 
विपदा गिरी 
विकल हतभागी 
उजड़ गयी 
एकाकी रथचक्र 
हांँकती शक्ति भर
 
दो पेट भूखे 
निस्तेज बाल रूखे 
रोज़ी की खोज 
पीठ बाँध ममता 
श्रम स्वेद बहता 
 
हाथ में रक्खे 
गिनती के रुपये 
आसार देते 
दूध मिल जाएगा 
बच्चा अघायेगा 
 
बीतते दिन 
परिश्रम प्रतिदिन
बढ़ता पौधा
आश्वासन दिलाता 
काल चक्र घूमेगा 
 
थकती काया 
मिथ्या थी मोहमाया 
दूधिया हँसी 
उँगली छोड़ चली 
नयी राह खोजती 
 
पीठ का बोझ 
हल्का था ममता सा
मोह का धागा 
बोझिल है शोक सा 
दुखता है कोढ़ सा 
 
धुँधली आँख 
थरथराती आस 
खोजती रोज़ 
मन को भरमाया 
मातृ दिवस आया

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टिप्पणियाँ

Vimal 2022/05/07 12:03 AM

Acchi kavita hai Maa ka sahi chitran

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