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ग्रहण में 'शरतचंद्र' 

 

शरद ऋतु के चन्द्रमा ये क्या हुआ? 
राहु तुझको आज कैसे ग्रस गया? 
जोहते थे बाट तेरे उदय की 
खीर से भर-भर कटोरी रजत की 
बूँद अमृत की गिरेगी रात में
मगन होंगे मन अनूठे स्वाद में 
ग्रहण अबकी बार आकर लग गया
चाँदनी का रूप फीका कर गया
शाम से सूतक रहेगा, 
मोक्ष होते प्रात होगा
खीर कैसे बन सकेगी? 
जीभ सबकी खीर का वो 
स्वाद कैसे चख सकेगी? 
कुछ करो इस राहु का तुम
देवता हो त्राण पाओ ग्रहण से तुम
रात भर जैसे चमकते तुम रहे हो
अमिय से पूरित जगत करते रहे हो
तुम बचो इन राहु-केतू की नज़र से
सींच दो इस भूमि को अपने अमिय से
पर्व हम सब हर्ष से मना सकें 
वीर-गाथा चाँद तेरी गा सकें

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