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चाँद पर तीन कवितायें 

1. 
पूनम की रात, नीले आकाश पर 
चॉंदनी का चंदोवा तना है, 
चंदोवे तले नन्हे सितारे सोये पड़े हैं
पारिजात की सुगन्ध से महकी हवायें 
पूनम के चाँद को उन्मत्त करती हैं
और तभी, 
चाँदी से सजी हुई चाँदनी 
हौले-हौले आकाश से उतरती है 
निर्मिमेष दृष्टि से चन्द्रमा को तकती है 
दो शाश्वत प्रेमियों की दृष्टि मिलती है 
अलौकिक प्रेम की सृष्टि करती है 
शीतल एकांत उत्तेजना बढ़ता है
प्यासे दो प्रेमियों का मिलन हो जाता है 
चाँद के आलिंगन में चांँदनी खो जाती है 
एकटक चाँद का मुखड़ा निहारती है 
दोनों तन के अस्तित्व मिटते हैं
दिव्य इस प्रेम से जल-थल चमकते हैं 
रात के मधुर पल, क्षण में गुज़रते हैं 
उषा के डर से ये प्रेमी बिछड़ते हैं 
सुबह चाँदनी के फूल, 
नम से मिलते हैं 

2. 
चाँद कितना अकेला होता है
पूर्णिमा के दिन
वह इतना बड़ा हो जाता है
कि सितारे डर जाते हैं
इन्सान जब ऊँचाई छूता है 
तो वह अकेला होता है 
उसे लगता है कि 
लोग उसकी इज़्ज़त करते हैं 
अतः उसे स्थान देते हैं 
उसे क्या ज्ञात नहीं कि 
बड़प्पन से लोग डरते हैं
तभी तो आसपास नहीं फटकते
यही कारण है कि 
अमावस्या के लाखों चमकते तारे 
पूर्णिमा पर डर कर 
कहीं छिप जाते हैं 
और चाँदनी से धुले आकाश में 
चाँद अकेला पड़ जाता है 

3. 
ढेरों टिमटिमाते सितारे 
नीचे की शान्त, निश्चल झील में 
ख़ुद को निहार रहे थे बेख़बर 
आज चाँद को जाने क्या सूझा 
चुपके से चला आया, उसी झील के ऊपर 
शरद की रात का, भरा-पूरा गोल-मटोल चाँद, 
ढेर सारी सफ़ेद चाँदनी के साथ 
दूध सा चमक रहा था 
उसका प्रतिबिंब झील में भी चाँदनी भर रहा था 
पानी में चाँदनी दूध सी घुल रही थी 
दूर से बिल्कुल खीर सी लग रही थी 
अब तारों की परछाईं, झील में नहीं थी 
झील तो खीर से भरी दिख रही थी 
इतनी सारी खीर देख, सितारे ललचा गए 
शरद पूर्णिमा की खीर खाने 
टप-टप-टप टपक कर झील में आगए 
अब आकाश बिल्कुल ख़ाली था 
बिना सितारों के, चाँद अकेला था

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