अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

चाँद पर तीन कवितायें 

1. 
पूनम की रात, नीले आकाश पर 
चॉंदनी का चंदोवा तना है, 
चंदोवे तले नन्हे सितारे सोये पड़े हैं
पारिजात की सुगन्ध से महकी हवायें 
पूनम के चाँद को उन्मत्त करती हैं
और तभी, 
चाँदी से सजी हुई चाँदनी 
हौले-हौले आकाश से उतरती है 
निर्मिमेष दृष्टि से चन्द्रमा को तकती है 
दो शाश्वत प्रेमियों की दृष्टि मिलती है 
अलौकिक प्रेम की सृष्टि करती है 
शीतल एकांत उत्तेजना बढ़ता है
प्यासे दो प्रेमियों का मिलन हो जाता है 
चाँद के आलिंगन में चांँदनी खो जाती है 
एकटक चाँद का मुखड़ा निहारती है 
दोनों तन के अस्तित्व मिटते हैं
दिव्य इस प्रेम से जल-थल चमकते हैं 
रात के मधुर पल, क्षण में गुज़रते हैं 
उषा के डर से ये प्रेमी बिछड़ते हैं 
सुबह चाँदनी के फूल, 
नम से मिलते हैं 

2. 
चाँद कितना अकेला होता है
पूर्णिमा के दिन
वह इतना बड़ा हो जाता है
कि सितारे डर जाते हैं
इन्सान जब ऊँचाई छूता है 
तो वह अकेला होता है 
उसे लगता है कि 
लोग उसकी इज़्ज़त करते हैं 
अतः उसे स्थान देते हैं 
उसे क्या ज्ञात नहीं कि 
बड़प्पन से लोग डरते हैं
तभी तो आसपास नहीं फटकते
यही कारण है कि 
अमावस्या के लाखों चमकते तारे 
पूर्णिमा पर डर कर 
कहीं छिप जाते हैं 
और चाँदनी से धुले आकाश में 
चाँद अकेला पड़ जाता है 

3. 
ढेरों टिमटिमाते सितारे 
नीचे की शान्त, निश्चल झील में 
ख़ुद को निहार रहे थे बेख़बर 
आज चाँद को जाने क्या सूझा 
चुपके से चला आया, उसी झील के ऊपर 
शरद की रात का, भरा-पूरा गोल-मटोल चाँद, 
ढेर सारी सफ़ेद चाँदनी के साथ 
दूध सा चमक रहा था 
उसका प्रतिबिंब झील में भी चाँदनी भर रहा था 
पानी में चाँदनी दूध सी घुल रही थी 
दूर से बिल्कुल खीर सी लग रही थी 
अब तारों की परछाईं, झील में नहीं थी 
झील तो खीर से भरी दिख रही थी 
इतनी सारी खीर देख, सितारे ललचा गए 
शरद पूर्णिमा की खीर खाने 
टप-टप-टप टपक कर झील में आगए 
अब आकाश बिल्कुल ख़ाली था 
बिना सितारों के, चाँद अकेला था

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

'जो काल्पनिक कहानी नहीं है' की कथा
|

किंतु यह किसी काल्पनिक कहानी की कथा नहीं…

14 नवंबर बाल दिवस 
|

14 नवंबर आज के दिन। बाल दिवस की स्नेहिल…

16 का अंक
|

16 संस्कार बन्द हो कर रह गये वेद-पुराणों…

16 शृंगार
|

हम मित्रों ने मुफ़्त का ब्यूटी-पार्लर खोलने…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

हास्य-व्यंग्य कविता

कविता

किशोर साहित्य कविता

कविता-ताँका

सिनेमा चर्चा

सामाजिक आलेख

ललित निबन्ध

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं