अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा यात्रा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

फागुन बीता जाय

मत्त हो रहा बसंत, साथ-साथ है अनंग, 
आम्र मंजरी हैं शर, पुष्प धनु, भ्रमर रोद, 
प्रेम-प्रीति, स्नेह-राग व्याप्त हो रहे दिगन्त 
पुष्प-पुष्प पर भ्रमर गूँज रहे हो विभोर 
बह रही मलय पवन, गीत गा रहे विहंग
नृत्य कर रहे मयूर, कोकिला करे विनोद 
शिरीष और पलाश के वृक्ष सजे रंग-रंग
यह पतंग, वह पतंग, व्योम सजी बद्ध डोर 
नमोशिवाय मंत्र संग, ढोल, झांँझ और मृदंग
मग्न हो रहे मलंग, भक्ति सिक्त साँझ-भोर 
प्रज्वलित है होलिका, धूम्र युक्त दिव्य-गंध 
विकीर्ण रंग और अबीर, धूम मची ओर-छोर
गोप, कृष्ण-राधिका, रास रचें संग-संग
फाग की फुहार में, आबाल-वृद्ध सराबोर 
मधुर पेय-मधुर-अन्न, थाल भरे चित्रगंध
जोगिरा-कबीर के, मंद-दीर्घ मधुर बोल
हास-परिहास, व्यंग्य, मदिर भंग की उमंग
रंग सिक्त पंथ मध्य, हो रही हँसी ठिठोल 
रंग ले उड़ी पवन, विचर रही दिग्दिगंत 
नृत्य अंग-अंग है, प्रमोद की तरंग है, 
फाल्गुन अतीत है, प्राप्त प्रथम चैत्र है 
वर्ष यह व्यतीत है, पक्ष मात्र शेष है 
संग नवरात्रि, नव वर्ष का प्रवेश है

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

'जो काल्पनिक कहानी नहीं है' की कथा
|

किंतु यह किसी काल्पनिक कहानी की कथा नहीं…

14 नवंबर बाल दिवस 
|

14 नवंबर आज के दिन। बाल दिवस की स्नेहिल…

16 का अंक
|

16 संस्कार बन्द हो कर रह गये वेद-पुराणों…

16 शृंगार
|

हम मित्रों ने मुफ़्त का ब्यूटी-पार्लर खोलने…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता

हास्य-व्यंग्य कविता

किशोर साहित्य कविता

कविता-ताँका

सिनेमा चर्चा

सामाजिक आलेख

ललित निबन्ध

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं