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फागुन बीता जाय

मत्त हो रहा बसंत, साथ-साथ है अनंग, 
आम्र मंजरी हैं शर, पुष्प धनु, भ्रमर रोद, 
प्रेम-प्रीति, स्नेह-राग व्याप्त हो रहे दिगन्त 
पुष्प-पुष्प पर भ्रमर गूँज रहे हो विभोर 
बह रही मलय पवन, गीत गा रहे विहंग
नृत्य कर रहे मयूर, कोकिला करे विनोद 
शिरीष और पलाश के वृक्ष सजे रंग-रंग
यह पतंग, वह पतंग, व्योम सजी बद्ध डोर 
नमोशिवाय मंत्र संग, ढोल, झांँझ और मृदंग
मग्न हो रहे मलंग, भक्ति सिक्त साँझ-भोर 
प्रज्वलित है होलिका, धूम्र युक्त दिव्य-गंध 
विकीर्ण रंग और अबीर, धूम मची ओर-छोर
गोप, कृष्ण-राधिका, रास रचें संग-संग
फाग की फुहार में, आबाल-वृद्ध सराबोर 
मधुर पेय-मधुर-अन्न, थाल भरे चित्रगंध
जोगिरा-कबीर के, मंद-दीर्घ मधुर बोल
हास-परिहास, व्यंग्य, मदिर भंग की उमंग
रंग सिक्त पंथ मध्य, हो रही हँसी ठिठोल 
रंग ले उड़ी पवन, विचर रही दिग्दिगंत 
नृत्य अंग-अंग है, प्रमोद की तरंग है, 
फाल्गुन अतीत है, प्राप्त प्रथम चैत्र है 
वर्ष यह व्यतीत है, पक्ष मात्र शेष है 
संग नवरात्रि, नव वर्ष का प्रवेश है

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