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अमृत जयन्ती तक हिन्दी

हिन्दी का उपयोग करते विवशता में 
आजीविका जिनकी हिन्दी से चलती है 
भाषा-विभाग और विश्वविद्यालयों के 
हिन्दी-विभाग में भी अंग्रेज़ी चलती है 
 
बहुधा ही लिखते हैं हिन्दी को रोमन में 
जिसको भी थोड़ी सी गुंजाइश मिलती है 
सोशल-स्टेटस, अपडेट्स देख लीजिए 
नागरी में लिखने से इज़्ज़त जो घटती है 
 
पब्लिक-स्कूलों के बच्चों से पूछियेगा 
हिन्दी में बोलें तो सज़ा मिल जाती है 
मॉल या दुकान, अस्पताल, प्रतिष्ठानों के 
नामों की तख़्ती अंग्रेज़ी में लगती है 
 
हिन्दी के साहित्यकारों से मिलिये अब
इंग्लिश से बेहद प्रभावित सब लगते हैं 
हिन्दी की रचना से हो कर पुरस्कृत ये 
मंचों से अभिभाषण, इंग्लिश में करते हैं 
 
वह भी शर्मिंदा से रहते हैं हिंदी पर 
हिन्दी के लेखन से पहचान पाते जो 
हिन्दी की पत्रिका के हिन्दी स्तम्भों पर 
नियमित टिप्पणियाँ वो इंग्लिश में करते हैं
 
दवाओं के नाम और डॉक्टर की पर्ची पर 
हिन्दी की बुद्धि कई चक्कर खा जाती है 
नमक, तेल, चाय, दवा आदि सभी जिंस पर 
नाम, निर्देश सभी इंग्लिश में छपते हैं 
 
ख़ुश हूँ मैं हिन्दी की दृढ़-स्थिति देख कर 
एक जगह इसका प्रयोग दुर्निवार्य है 
ख़ालिस अंग्रेज़ी में बोलने के व्यसनी-जन 
गालियॉं सदैव ‘सुद्ध-हिन्दी’ में देते हैं 
 
भारत की सीमा में हिन्दी की दीन-दशा 
कहने में शर्म से मस्तक झुक जाता है
विदेशों में साहित्य रच कर प्रवासी जन 
विश्व में हिन्दी का परचम लहराते हैं 
 
हिन्दी उपेक्षित है पचहत्तर वर्षों से 
जनता और राजनीति दोनों की त्रुटियाँ हैं 
इंग्लिश में काम-काज वर्ष भर करते जो 
एक दिन शोरगुल हिन्दी में करते हैं 
 
त्रुटियों को खोजेंगे, उनको सुधारेंगे 
हिन्दी की स्थिति में उन्नति तब सम्भव है 
हिन्दी-दिवस से ही यदि कुछ भी होता तो 
रोती ना हिन्दी यों अमृत जयन्ती तक

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