इंद्र से बात
हास्य-व्यंग्य | हास्य-व्यंग्य कविता शैली1 Jan 2022 (अंक: 196, प्रथम, 2022 में प्रकाशित)
एक रात सपने में मिल गए इंद्र,
वही चन्द्रमा के फ़्रेंड, ’अहिल्या-फ़ेम’, स्वर्ग के अधिष्ठाता इंद्र,
इंद्र तो इंद्र थे, तेज से दमकते थे,
अपने सहस्त्र नेत्रों के साथ, दिव्य भी लगते थे,
मैंने कहा इंद्र जी! आपके देवत्व को प्रणाम है . . .
क्या आपको अहिल्या के शाप का, थोड़ा भी भान है?
शापित तो आप भी थे, पर आपको 'फ़ेवर' मिल गया,
देवों की सिफ़ारिश से सहस्त्र लिंग चिह्न का शाप,
सहस्त्र आँख में बदल गया,
यानी शाप के रूप में आपको वरदान मिला,
चन्द्रमा भी बच गया, सिर्फ़ एक निशान मिला
पर अहिल्या युगों तक तपड़ती रही . . .
पत्थर बनी वह राम की राह तकती रही
ये कैसा न्याय है? आप ही बतायें,
आप मानव नहीं भगवान हैं,
अपना ईश्वरीय एंगिल दिखलायें॥
क्यों आपने अपना देवत्व नहीं दिखाया?
आपके किए की सज़ा पा रही अहिल्या को, क्यों नहीं बचाया?
क्या आप गौतम मुनि के श्राप से डरे थे?
क्यों आप सामने नहीं आए, कहाँ छिप कर खड़े थे?
एक त्रुटि पर ब्रह्मा भी अपूज्य हो गए,
आख़िर कैसे आप अन्याय करके बच गए?
आज भी आप इंद्र हैं, पूज्य हैं आज भी
परन्तु अहिल्या सी महिलायें—
शापित,
तापित,
अभिशप्त-सी आज भी रोती हैं . . . !
कलयुग में किसी राम की बाट जोहती हैं!
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पाण्डेय सरिता 2021/12/31 03:54 PM
बहुत ख़ूब