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मेरा देश, सदा विशेष?

 

मेरा देश, बहुत विशेष, 
गिर-गिर उठता, सदा अशेष . . . 
मंत्र पूत हैं, दिशा हमारी, 
अभिमंत्रित यह, भूमि-पावनी, 
ज्ञान और विज्ञान यहाँ का, 
लूट ले गए आतत्ताई, 
आग लगा दी, विद्यालय में
ग्रन्थ-पांडुलिपियाँ सब फाड़ीं, 
तक्षशिला-नालंदा रौंदा
सोमनाथ का, मन्दिर लूटा, 
तोड़ा था, कोणार्क हमारा, 
धर्म, यज्ञ-स्थान पुराना। 
 
सतियों की, लज्जा हर ली थी, 
धर्म, कर्म, व्यापार ध्वस्त कर-
संस्कृति की महिमा मेटी थी। 
जातिवाद को, घृणित बनाया
ख़ुद पर शर्माना, सिखलाया। 
 
कैसे हैं हम, गर्व खो रहे? 
धर्म छोड़, सेकुलर हो रहे? 
माथे का चन्दन पोंछा है, 
शिखा सूत्र का, त्याग किया है। 
गीता-रामायण को छोड़ा, 
वामपन्थ का पाठ पढ़ा है-
मन्दिर जाने में, शर्माते
कथा-वार्ता में सकुचाते, 
पूजा करते हैं, कहने में-
होंठों पर ताले लग जाते . . . 
जबकि सब, अपने धर्मों के-
चिह्न शान से, धारण करते
सड़क रोक कर, धरम दिखाते
बेधर्मी को, मार गिराते। 
 
फिर भी हम, शालीन बने हैं, 
धर्मों को, आदर देते हैं . . . 
क्या हम कायर नाकारे हैं? 
स्वभिमान, तज कर हारे हैं? 
रख सकते ना, मान धर्म का! 
पूजा, अनुष्ठान और तप का . . . 
जो भी ज्ञान ग्रन्थ, अपने हैं, 
उन्हें नहीं हम, पढ़ सकते हैं? 
गर्व नहीं, अपनी संस्कृति का! 
वेश, वस्त्र और धर्म-प्रथा का? 
क्या म्लेच्छ अब समझाएँगे?? 
राह धर्म की दिखलाएंगे? 
मानवता का पाठ हमें क्या
नरपिशाच अब सिखलाएँगे? 
 
जागो! भरत भूमि के तक्षक-
सत्य, सनातन-संस्कृति रक्षक!!! 
मान धर्म का और देश का, 
हाथ तुम्हारे तुम संरक्षक
है स्वतंत्र, भारत अब जागो . . . 
शस्त्र और, पुरुषार्थ जगा दो
बिना शस्त्र के, धर्म नहीं है, 
वैदिक हिंसा, हिंस्र नहीं है
मान और, सम्मान हमारा-
शक्ति-प्रदर्शन पर लम्बित है। 
धर्म और, संस्कृति की रक्षा, 
नहीं अहिंसा से होती है-
शस्त्र उठाओ, घात करो तुम! 
सब वैरी का, नाश करो तुम! 
बनो शिवा, विक्रमादित्य तुम! 
चन्द्रगुप्त, राणा प्रताप तुम! 
हर हर हर का नाद करो तुम, 
भारत का अभिमान बनो तुम, 
भारत का अभिमान बनो तुम। 

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