चाहत मेरी
काव्य साहित्य | कविता-ताँका कमला निखुर्पा1 Oct 2019
1
चाहत मेरी-
बूँद बन टपकूँ
मोती न बनूँ
पपीहे के कंठ की
सदा प्यास बुझाऊँ।
2
चाहत मेरी-
कस्तूरी मृग बन
छुप के रहूँ
महकाऊँ जो यादें
खोजें धरा-गगन।
3
पावन हुई
वैदिक ऋचाओं -सी
जीवन -यज्ञ
समिधा बन जली
पूर्णाहुति दे चली।
4
लो आई हवा
लेके तेरा संदेशा
रोए जो तुम
भीगा मेरा आँचल
गुमसुम मौसम।
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प्रीति अग्रवाल 2022/01/15 03:52 AM
बेहतरीन ताँका!