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प्रीति अग्रवाल ’अनुजा’ – ताँका – 001

1. 
खोजते फिरे
ईश्वर नहीं मिला
हृदय छुपा
इक वहीं न झाँका
हर घर में ताका। 
 
2.
नित नियम
जप, भोग, शृंगार मानव चाल
दुगुने की चाहत
प्रभु पूजें, रिझाएँ! 
 
3. 
मन मंथन
निसदिन करती
हाथ में आए
छाछ, केवल छाछ
माखन क्यों न आए?
 
4.
मन के द्वारे
राग द्वेष पसरे
प्रेम जो चाहे
कैसे प्रवेश पाए
विवश लौट जाए। 
 
5. 
माटी सुगन्ध
तन मन घुलती
याद दिलाती
प्रियजन अपने
जाने किस हाल में! 
 
6. 
कोरा काग़ज़
भर दिया मन का
नाम से तेरे
क्या तुम कुछ ऐसा
प्रियतम करते? 

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