प्रीति अग्रवाल ’अनुजा’ – ताँका – 001
काव्य साहित्य | कविता-ताँका प्रीति अग्रवाल 'अनुजा'15 Jan 2022 (अंक: 197, द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)
1.
खोजते फिरे
ईश्वर नहीं मिला
हृदय छुपा
इक वहीं न झाँका
हर घर में ताका।
2.
नित नियम
जप, भोग, शृंगार मानव चाल
दुगुने की चाहत
प्रभु पूजें, रिझाएँ!
3.
मन मंथन
निसदिन करती
हाथ में आए
छाछ, केवल छाछ
माखन क्यों न आए?
4.
मन के द्वारे
राग द्वेष पसरे
प्रेम जो चाहे
कैसे प्रवेश पाए
विवश लौट जाए।
5.
माटी सुगन्ध
तन मन घुलती
याद दिलाती
प्रियजन अपने
जाने किस हाल में!
6.
कोरा काग़ज़
भर दिया मन का
नाम से तेरे
क्या तुम कुछ ऐसा
प्रियतम करते?
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
प्रीति अग्रवाल ’अनुजा’ – ताँका – 002
कविता-ताँका | प्रीति अग्रवाल 'अनुजा'1. तोड़ी हमनें रूढ़ियों की बेड़ियाँ चैन…
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
लघुकथा
कविता - हाइकु
कविता-माहिया
कविता-चोका
कविता
कविता - क्षणिका
- अनुभूतियाँ–001 : 'अनुजा’
- अनुभूतियाँ–002 : 'अनुजा’
- प्रीति अग्रवाल 'अनुजा' – 002
- प्रीति अग्रवाल 'अनुजा' – 003
- प्रीति अग्रवाल 'अनुजा' – 004
- प्रीति अग्रवाल ’अनुजा’ – 001
- प्रीति अग्रवाल ’अनुजा’ – 005
- प्रीति अग्रवाल ’अनुजा’ – 006
- प्रीति अग्रवाल ’अनुजा’ – 007
- प्रीति अग्रवाल ’अनुजा’ – 008
- प्रीति अग्रवाल ’अनुजा’ – 009
- प्रीति अग्रवाल ’अनुजा’ – 010
- प्रीति अग्रवाल ’अनुजा’ – 011
सिनेमा चर्चा
कविता-ताँका
हास्य-व्यंग्य कविता
कहानी
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं