प्रीति अग्रवाल ‘अनुजा’ - 001
काव्य साहित्य | कविता-माहिया प्रीति अग्रवाल 'अनुजा'1 Jul 2024 (अंक: 256, प्रथम, 2024 में प्रकाशित)
1.
तुम रूठ के मत जाना
मर जाऊँगी मैं
ना बाद में पछताना।
2.
तुम बात मेरी मानो
कह दो जो दिल में
मुझको अपना जानो।
3.
जीवन की ये बाती
जाने कब तक है
आ जी लें हम साथी!
4.
सपनों को सजाती हूँ
तुमको उनमें पा
मैं ख़ूब लजाती हूँ।
5.
तुम को कैसे भूलूँ
तुम जो आ जाओ
मैं भी जी भर जी लूँ।
6.
तुम रोज़ रुलाते हो
भीगे नयनों में
विरह दे जाते हो।
7.
दिन वो अँधियारे थे
तुम बिन जो बीते
दुख कितने सारे थे।
8.
मिलने के बहानों को
कैसे भूलूँ मैं
उन स्वप्न सुहानों को।
9.
आओ मन साफ़ करें
जो भी ग़लत किया
प्रभु हमको माफ़ करे।
10.
तू है मेरा साया
तुझ बिन मैं कैसी
मैं हूँ तेरी छाया।
11.
तू प्रेम का सागर है
मेरा रीता मन
भर लेता गागर है।
12.
मेरा मन कहता है
और नहीं बस तू
इस दिल में रहता है।
13.
तेरे पथ के काँटे
पलकों से मैंने
वो सारे ही छाँटें।
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