आधुनिक स्त्री और हिंदी साहित्य
आलेख | साहित्यिक आलेख प्रीति अग्रवाल 'अनुजा'1 Oct 2025 (अंक: 285, प्रथम, 2025 में प्रकाशित)
समय बदलता है तो सोच भी बदलती है और फिर यही सोच उस समय के साहित्य में झलकती है। आधुनिक युग में स्त्री की भूमिका और उसकी पहचान में गहरा परिवर्तन आया है।
पहले जहाँ स्त्री केवल परिवार और घर की सीमाओं तक बँधी थी, वही स्त्री आज शिक्षा, राजनीति, विज्ञान, कला और साहित्य-हर क्षेत्र में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही है। अब वह केवल परिवार की धुरी नहीं बल्कि समाज और राष्ट्र की सक्रिय निर्माणकर्ता है।
हिंदी साहित्य में स्त्री का चित्रण सादियों से होता रहा है। आदिकाल और भक्ति काल में स्त्री मुख्यतः श्रद्धा, प्रेम और त्याग का प्रतीक बनी रही लेकिन आधुनिक हिंदी साहित्य में स्त्री की छवि बहुआयामी होकर सामने आई है। अब वह केवल नायिका या प्रेरणा नहीं बल्कि अपनी स्वतंत्र सोच रखती, संघर्षों का सामना करती, एक सशक्त व्यक्तित्व के रूप में उभरी है।
महादेवी वर्मा ने स्त्री की कोमल संवेदनाओं और आत्मबोध को स्वर दिया, तो अमृता प्रीतम ने स्त्री की पीड़ा और विद्रोह को शब्द दिए। इसी तरह कृष्णा सोबती, मन्नू भंडारी और मैत्रेयी पुष्पा जैसी लेखिकाओं ने स्त्री की सामाजिक, आर्थिक और मानसिक जटिलताओं का आईना दिखाया। आधुनिक कवयित्रियाँ और कथाकार भी स्त्री की बदलती आकांक्षाओं, सपनों और चुनौतियों को अपने लेखन में चित्रित कर रहे हैं।
एक बात से हमें बेहद सजग होने की आवश्यकता है कि आजकल आधुनिकता के नाम पर हिंदी साहित्य में अश्लीलता की प्रवृत्ति तेज़ी से बढ़ रही है। अनेक रचनाकार साहित्य में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को, खुली भाषा और उत्तेजक चित्रण से जोड़ने लगे हैं। जहाँ साहित्य कभी संस्कार और संस्कृति का वाहक था वहीं अब वह बाज़ारवाद और भौतिकता से प्रभावित होता दिखाई दे रहा है, जिससे साहित्य का मूल उद्देश्य कमज़ोर पड़ रहा है। साहित्य का काम समाज को दिशा देना है ना कि उसे भटकना!
साहित्य में संवेदनशील विषयों को शालीन भाषा में प्रस्तुत करना पुर्णतः सम्भव है परन्तु जब केवल उत्तेजना और आकर्षक को महत्त्व दिया जाने लगे तो साहित्य की गरिमा और गंभीरता दोनों पर प्रश्न चिह्न लगने लगते हैं। आधुनिकता का अर्थ अश्लीलता नहीं है बल्कि विचारों की नवीनता, दृष्टिकोण में सकारात्मकता और समाज को नई दिशा देने की क्षमता है।
अतः मेरा मानना है कि हमें आधुनिक हिंदी साहित्य में स्वतंत्र अभिव्यक्ति का स्वागत करना चाहिए परन्तु साथ ही यह ध्यान रखना चाहिए की साहित्य की गरिमा और मर्यादा दोनों बनी रहें।
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