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इम्युनिटी

मिसिज़ चोपड़ा के ले दे कर एक ही बेटा था, अमित, पाँच वर्ष का। बड़ी मन्नतों के बाद हुआ था, सो उनका हद से ज़्यादा लाड़-प्यार करना लाज़िमी था, और उसका, इन लाड़ों में बिगड़ना! 

कामवाली चंपा के छह वर्षीय बेटे मुन्नू के स्कूल की छुट्टियाँ थी, घर अकेले छोड़ नहीं सकती थी, सो साथ में ही ले आती थी। 

अमित को उसके साथ खेलना बहुत पसंद था, मिसिज़ चोपड़ा किसी तरह मन मारकर बर्दाशत कर लेती थी। 

अमित जितनी देर वीडियो गेम खेलता मुन्नू वहीं ज़मीन पर बैठ कर उसके टूटे खिलौनों से खेलता रहता या पुरानी किताबों में रंग भरता रहता। 

बाहर खेलते वक़्त भी वही दौड़-दौड़ कर बॉल उठाता और जब दोनों थक जाते तो अमित को झट से जूस का डब्बा पीने को मिलता और मुन्नू को घड़े का पानी। 

अमित के जूठे डाल चावल सब्ज़ी को मिसिज़ चोपड़ा बड़ी चतुराई से मुन्नू को परोस देती और उसकी ज़िद पर बाज़ार से पिज़्ज़ा, बर्गर मँगवा देती। 

आए दिन अमित बीमार रहता तो मिसिज़ चोपड़ा ईर्ष्यालु भरी नज़रों से मुन्नू को देख कर सोचती, ‘पता नहीं इन ग़रीबों के बच्चों की इम्युनिटी इतनी अच्छी कैसे होती है?’

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