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सोलह सोमवार

सासु माँ बड़ी ख़ुश थी, जबसे यह पता चला था कि उनकी बहू ने सोलह सोमवार के व्रत उठाए हैं! ऊपर से भले ही प्रशंसा न करे पर मन ही मन फूली नहीं समा रही थीं। आख़िर लल्ला की लंबी उम्र के लिए ही तो उठाये होंगे,  . . . बड़ी ख़ुशी-ख़ुशी विदा करती थी सीमा को, जब वो मंदिर के लिए निकलती थी . . . और तो और, पीछे से रसोई के सारे काम भी निबटा देती थीं . . . 

उस दिन सुरेश भी, किसी अभिमानी मोर की तरह, कलगी ऊपर करके चलते थे . . . इस देश में पति अपनी पत्नी को वैसे चाहे अधिक महत्व न दें, पर करवाचौथ वाले दिन और सोमवार के व्रत रखने पर विशेष प्रीत दिखाते हैं . . . आख़िर उस दिन के "स्टार" वो जो होते हैं . . . .!

पिछले शानिवार, ऑफ़िस की पार्टी में, बातचीत के दौरान किसी ने सीमा से कहा, "क्या आप भी कहीं जॉब करती हैं," तो तपाक से सुरेश बोले, "अजी कहाँ, ये तो केवल घर पर ही रहती है . . .  वैसे भी, इसे अंग्रेज़ी बोलनी कहाँ आती है . . . आप तो इतनी फर्राटेदार अंग्रेज़ी बोलती हैं कि . . . "

सीमा जितनी बार ऐसे ताने सुनती, मन ही मन कुढ़ के रह जाती . . . एक दो बार तो उसने हिम्मत जुटा के सुरेश से कहा भी, "सुनो जी, मंदिर के पास वाली गली में एक औरत, घर से ही, हर सोमवार को, अंग्रेज़ी बोलना-पढ़ना सिखाती है . . . केवल चार महीने का कोर्स है . . मेरा भी बहुत मन करता है, आप कहो तो मैं भी . . . "

"पागल हो गयी हो, यह उम्र है क्या पढ़ने लिखने की . . . अंग्रेज़ी सीख कर कौन सा तीर मार लोगी . . .  और यहाँ, घर पर, सब काम कौन करेगा? . . . न घर की चिंता है, न अम्मा की... अंग्रेज़ी पढ़ने का शौक़ चढ़ा है . . . कोई ज़रूरत नहीं है . . . "

सीमा मन मोस कर रह गयी और कुढ़े मन से रसोईघर में जुट गई। पीपे में से घी निकाल रही थी तभी उसके दिमाग़ की बत्ती जली  . . . जब सीधी उँगली से घी न निकले, तो  . . . .

उसकी आँखों में चमक आ गयी,  . . . आज सब्ज़ी कुछ अधिक चटपटी बनने वाली थी . . . !

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टिप्पणियाँ

प्रीति अग्रवाल 2021/08/08 01:08 AM

बहुत बहुत धन्यवाद आपका मधु जी, आपने न केवल मेरी लघुकथा को पसन्द किया बल्कि अपना कीमती समय निकाल कर प्रतिक्रिया भी दी!

मधु शर्मा 2021/08/03 02:39 PM

वाह, साँप भी मर गया व लाठी भी नहीं टूटी। सोमवार के सोलह तो क्या सीमा अब किसी की रोकटोक के बिना सोलह सौ व्रत भी रख सकती है।

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