प्रीति अग्रवाल ’अनुजा’ – 009
काव्य साहित्य | कविता - क्षणिका प्रीति अग्रवाल 'अनुजा'1 Dec 2021 (अंक: 194, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
1.
मेरे हँसने पर हँसते हो
रोने पर रोते,
कहो तो सही
तुम मेरे कौन हो . . .
मेरे पूछने से पहले,
आईना, पूछ बैठा . . . !!
2.
है ख़ुद की प्यास मिटानी तो,
दूजे को नीर पिलाओ . . .
मिटेगी तृष्णा ऐसे ही,
एक बार तो, आज़माओ!
3.
कहने को यूँ तो
था बहुत, पर
क्या कहूँ . . .
कैसे कहूँ . . . .
किससे कहूँ . . .
कहूँ, न कहूँ . . .
इस सोच में
उलझी रही . . .
ज़िन्दगी, ज़िन्दगी ठहरी
क्यों रुकती,
चलती रही . . . !
4.
तुम संग बीते लम्हे
काश! समेट पाते . . .
नर्म, मुलायम इतने,
हाथों से फिसले जाते . . . !
5.
ये लोग
जो चले जाते हैं,
जाते हैं कहाँ . . .
पूछते उन्हीं से,
जो लौटते,
वो यहाँ . . . !
6.
पहुँचने की तुम तक
है कैसी लगन . . .
हर वक़्त यूँ लगे, कि
सफ़र में हैं हम . . . !
7.
हम दोनों की मंज़िल,
हम दोनों ही हैं . . .
सफ़र ख़ूबसूरत,
यूँ ही नहीं . . . .!!
8.
था लम्बा सफ़र
पर मैं न थकी...
थकी, तो बस,
तुझे, मना-मना थकी!
9.
जज़्बातों को मेरे
समझते वो कैसे . . .
बातें ही मेरी,
समझ वो न पाए . . . !
10.
ज़िन्दगी में साल, चाहे
जितने भी हों . . .
हर साल में, बस,
ज़िन्दगी चाहिए . . . !
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