सुरंगमा यादव माहिया – 001
काव्य साहित्य | कविता-माहिया डॉ. सुरंगमा यादव15 Apr 2022 (अंक: 203, द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)
माहिया
1.
रीता मन का प्याला
माँगी प्रेम सुधा
तुमने विष भर डाला।
2.
तेरा कुछ दोष नहीं
हाथों में मेरे
है प्रेम लकीर नहीं।
3.
तुझको ना भाये हैं
मौसम कोई भी
जो संग बिताये हैं।
4.
भारत की नारी है
उसका जीवन तो
हर दुःख पर भारी है।
5.
नाचूँ धुन पर तेरी
भायी ना तुमको
कोई कोशिश मेरी।
6.
हम शिकवे भुला देंगे
फिर न सताओगे
वादा पहले लेंगे।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
प्रीति अग्रवाल ‘अनुजा’ - 001
कविता-माहिया | प्रीति अग्रवाल 'अनुजा'1. तुम रूठ के मत जाना मर जाऊँगी मैं…
रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु - 1
कविता-माहिया | रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’माहिया 1. तुम चन्दा अम्बर के मैं केवल तारा…
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
पुस्तक समीक्षा
- दूधिया विचारों से उजला हुआ– 'काँच-सा मन'
- भाव, विचार और संवेदना से सिक्त – ‘गीले आखर’
- भावों का इन्द्रजाल: घुँघरी
- विविध भावों के हाइकु : यादों के पंछी - डॉ. नितिन सेठी
- संवेदनाओं का सागर वंशीधर शुक्ल का काव्य - डॉ. राम बहादुर मिश्र
- साहित्य वाटिका में बिखरी – 'सेदोका की सुगंध’
- सोई हुई संवेदनाओं को जाग्रत करता—पीपल वाला घर
सामाजिक आलेख
दोहे
कविता
कविता-मुक्तक
लघुकथा
सांस्कृतिक आलेख
शोध निबन्ध
कविता-माहिया
कविता - हाइकु
कविता-ताँका
साहित्यिक आलेख
विडियो
ऑडियो
उपलब्ध नहीं