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कैप्टन एरिक जेम्स टकर 

 

एरिक जेम्स टकर-कैप्टन एरिक जेम्स टकर, (21 अक्टूबर 1927–2 अगस्त 1957) भारतीय सेना के एक अधिकारी थे, जिन्हें मरणोपरांत नागालैंड में वीरतापूर्ण कार्य के लिए सर्वोच्च वीरता पुरस्कार, अशोक चक्र से सम्मानित किया गया था। 
 
1.
दिन सन् सत्ताईस का, अक्टूबर था मास। 
‘जेम्स टकर’ के जन्म से, घर में हुआ उजास॥
2.
वीर ‘टकर’ के शौर्य का, चमक रहा दिनमान। 
सत्तावन में हो गया, भले देह अवसान॥
3.
‘वीरा’ के वे पुत्र थे, ‘एरिक’ उनका नाम। 
साँसें अपनी कर गए, भारत माँ के नाम॥
4.
वीर शिरोमणि थे टकर, शत्रु ना पाया पार। 
दुश्मन को ललकार कर, विफल किया हर वार॥
5.
आज़ादी के बाद का, पहला था विद्रोह। 
नागा दल से भिड़ गए, छोड़ ‘टकर’ सब मोह॥
6.
नागा विद्रोही बड़े, गुरिल्ला व हैवान॥
उनके सर्वविनाश का, जेम्स लिया मन ठान॥
7.
दुश्मन की घुसपैठ थी, नागा हिल्स के पास। 
एरिक ने कौशल किया, हुआ विद्रोह हताश॥
8.
दुश्मन को ललकारते, ठहरे ना एक ठाँव। 
देह हताहत थी मगर, बढ़ते जाते पाँव॥
9.
प्राणों की चिंता नहीं, पथ बीहड़ अनजान। 
शीश हथेली पर रखा, मातृभूमि का मान॥
10.
भूखे प्यासे लड़ रहे, सरहद पर जो वीर। 
उनके कारण ही सजे, दीपक और अबीर॥
11.
वीरों के वीरत्व से, भारत माँ का मान। 
वक़्त पड़े चूके नहीं, अर्पण कर दें प्राण॥
12.
दृढ़ता और संकल्प से, किया सफल नेतृत्व। 
अचरज में जग देख कर, मूर्तिमान वीरत्व॥
13.
चेहरे पर आभा नई, रक्त रगों में वीर। 
दुर्गम पथ, जंगल घने, हुआ न विचलित॥
14.
 पदक वीरता का मिला, शौर्य प्रतीक ‘अशोक’। 
 अंबर पर गाथा लिखे, उनका यश आलोक॥
15.
भूल गया इतिहास जो, वीरों का बलिदान। 
व्याकुल चैन न पाएँगे, भारत माँ के प्राण॥
16.
सैनिक ही वह था नहीं, था माँ का भी लाल॥
उसका भी परिवार है, इसका रहे ख़्याल॥

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