अँधियारे उर में भरे, मन में हुए कलेश!!
काव्य साहित्य | दोहे डॉ. सत्यवान सौरभ15 Nov 2021 (अंक: 193, द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)
मन को करें प्रकाशमय, भर दें ऐसा प्यार!
हर पल, हर दिन ही रहे, दीपों का त्यौहार!!
दीपों की क़तार से, सीख बात ले नेक!
अँधियारा तब हारता, होते दीपक एक!!
फीके-फीके हो गए, त्योहारों के रंग!
दीप दिवाली के बुझे, होली है बेरंग!!
दिये से बाती रूठी, बन बैठी है सौत!
देख रहा मैं आजकल, आशाओं की मौत!!
बदल गए इतिहास के, पहले से अहसास!
पूत राज अब भोगते, पिता चले वनवास!!
रूठी दीप से बातियाँ, हो कैसे प्रकाश!
बैठा मन को बाँधकर, अँधियारे का पाश!!
पहले से त्यौहार कहाँ, और कहाँ परिवेश!
अँधियारे उर में भरे, मन में हुए कलेश!!
मैंने उनको भेंट की, दिवाली और ईद!
जान देश के नाम जो, करके हुए शहीद!!
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