अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

नहीं हाथ परिणाम

(दोहा छंद)

 

हर घर में कैसी लगी, ये मतलब की आग। 
अपनों को ही डस रहे, बने विभीषण नाग॥
 
सत्य धर्म की जंग में, जीत गए थे राम। 
मगर विभीषण तो रहे, सदियों तक बदनाम॥
 
राम-राम में मैं रमूँ, बनूँ राम का भक्त। 
चरणों में श्रीराम के, रहूँ सदा अनुरक्त॥
 
जिनका पानी मर गया, शर्म गयी पाताल। 
वो औरों को दोष दें, छीटें रहे उछाल॥
 
हो जाए यूँ हर सुबह, नवमी का त्योहार। 
दिखे सभी को बेटियाँ, देवी का अवतार॥
 
स्वार्थ से सम्बन्ध जुड़े, देते कब बलिदान। 
वक़्त पड़े पर टूटना, उनकी है पहचान॥
 
फल की चिंता मत करो, देना उसका काम। 
कर्म हमारा धर्म है, नहीं हाथ परिणाम॥

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

'जो काल्पनिक कहानी नहीं है' की कथा
|

किंतु यह किसी काल्पनिक कहानी की कथा नहीं…

14 नवंबर बाल दिवस 
|

14 नवंबर आज के दिन। बाल दिवस की स्नेहिल…

16 का अंक
|

16 संस्कार बन्द हो कर रह गये वेद-पुराणों…

16 शृंगार
|

हम मित्रों ने मुफ़्त का ब्यूटी-पार्लर खोलने…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

उपलब्ध नहीं

उपलब्ध नहीं

लेखक की पुस्तकें

  1. बाल-प्रज्ञान
  2. खेती किसानी और पशुधन
  3. प्रज्ञान
  4. तितली है खामोश