मन में उगे बबूल
काव्य साहित्य | दोहे डॉ. सत्यवान सौरभ1 Mar 2025 (अंक: 272, प्रथम, 2025 में प्रकाशित)
दीये से बाती रूठी, बन बैठी है सौत।
देख रहा मैं आजकल, आशाओं की मौत॥
लाख चला ले आदमी, यहाँ ध्वंस के बाण।
सर्जन की चिड़ियाँ करें, तोपों पर निर्माण॥
शायद जुगनू की लगी, है सूरज से होड़।
तभी रात है कर रही, रोज़ नये गठजोड़॥
भाई-भाई में हुई, जब से है तकरार।
मज़े पड़ोसी ले रहे, काँधे बैठे यार॥
हम पत्तों को सींचते, पर जड़ है बीमार।
‘सौरभ’ कैसे हो बता, ऐसे वृक्ष सुधार॥
गाड़ी ऊपर बैठकर, कुत्ता ठोके ताल।
कैसे सरपट दौड़ती, देख मेरा कमाल॥
नागफनी हर बात में, मन में उगे बबूल।
बोलो कैसे प्यार के, महकें ‘सौरभ’ फूल॥
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