जाए अब किस ओर
काव्य साहित्य | दोहे डॉ. सत्यवान सौरभ15 Jan 2025 (अंक: 269, द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)
दीये से बाती रूठी, बन बैठी है सौत।
देख रहा मैं आजकल, आशाओं की मौत॥
अपनों से जिनकी नहीं, बनती 'सौरभ' बात।
ढूँढ़ रहे वह आजकल, ग़ैरों में औक़ात॥
चूल्हा ठंडा है पड़ा, लगी भूख की आग।
कौन सुने है आजकल, मज़लूमों के राग॥
देख रहें हम आजकल, ये कैसा जुनून।
जात-धर्म के नाम पर, बहे ख़ून ही ख़ून॥
धूल आजकल फाँकता, दादी का संदूक।
बच्चों को अच्छी लगे, अब घर में बन्दूक॥
घूम रहे हैं आजकल, गली-गली में चोर।
खड़ा-मुसाफ़िर सोचता, जाए अब किस ओर॥
नेता जी है आजकल, गिनता किसके नोट।
अक्सर ये है पूछता, मुझसे मेरा वोट
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