अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा यात्रा वृत्तांत डायरी रेखाचित्र बच्चों के मुख से बड़ों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

अकेले होने का ख़ौफ़

 

अकेले हो जाने के ख़ौफ़ से, 
लोग समझौतों की बेड़ियाँ पहन लेते हैं। 
जिन्हें दिल से मिटा देना चाहिए, 
उन्हीं को ताबीज़ बनाकर रह लेते हैं। 
 
यह कैसा दौर है साथियों, 
जहाँ सच्चाई शर्मिन्दा खड़ी है! 
झूठ मुस्कुरा रहा है कुर्सियों पर, 
और ईमानदारी नौकरी से कटी है। 
 
जो झुक गए, वही महान कहलाए, 
जो बोले सच, वो बाग़ी ठहराए गए। 
हमने डर के बदले इज़्ज़त बेच दी, 
और चुप्पी को संस्कार बताने लगे। 
 
अब भी वक़्त है, उठो अपने भीतर से, 
ये भीड़ तुम्हें कुछ नहीं देगी। 
तुम्हारे हिस्से का सूरज, 
तुम्हारे हौसले से ही निकलेगा। 
 
अकेले हो जाने के ख़ौफ़ से, 
तुम बेक़दरों के साथ मत रह जाना—
क्योंकि इतिहास गवाह है, 
भीड़ नहीं, अकेले लोग ही वक़्त बदलते हैं। 

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

'जो काल्पनिक कहानी नहीं है' की कथा
|

किंतु यह किसी काल्पनिक कहानी की कथा नहीं…

14 नवंबर बाल दिवस 
|

14 नवंबर आज के दिन। बाल दिवस की स्नेहिल…

16 का अंक
|

16 संस्कार बन्द हो कर रह गये वेद-पुराणों…

16 शृंगार
|

हम मित्रों ने मुफ़्त का ब्यूटी-पार्लर खोलने…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता

बाल साहित्य कविता

दोहे

कहानी

ऐतिहासिक

हास्य-व्यंग्य कविता

लघुकथा

ललित निबन्ध

साहित्यिक आलेख

सामाजिक आलेख

सांस्कृतिक आलेख

किशोर साहित्य कविता

काम की बात

पर्यटन

चिन्तन

स्वास्थ्य

सिनेमा चर्चा

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं

लेखक की पुस्तकें

  1. बाल-प्रज्ञान
  2. खेती किसानी और पशुधन
  3. प्रज्ञान
  4. तितली है खामोश