पिता नीम का पेड़!
काव्य साहित्य | दोहे डॉ. सत्यवान सौरभ1 Jul 2022 (अंक: 208, प्रथम, 2022 में प्रकाशित)
हम कच्चे से हैं घड़े, और पिता कुम्हार!
ठोक पीट जो डाँट से, हमको दे आकार!!
सिर पे ठंडी छाँव-सा, पिता नीम का पेड़!
कड़वा लगता है मगर, है जीवन की मेड़!!
पाई-पाई जोड़ता, पिता यहाँ दिन रात!
देता हैं औलाद को, ख़ुशियों की सौग़ात!!
पापा ही अभिमान है, पापा ही संसार!
नगपति से अविचल खड़े, पापा है आधार!!
मन में भावों को भरे, पिता रहें गंभीर!
माँ जैसा है प्यार लिए, किन्तु अलग तस्वीर!!
सूरज से होते पिता, लगते गरम ज़रूर!
अँधेरा सा छा उठे, अगर न हो ये नूर!!
एक पिता के क़र्ज़ को, समझे क्या संतान!
चुपचाप आँसूँ पिये, करता सब बलिदान!!
रौनक़ इनसे ही जुड़ी, इनसे शोहरत शान!
साहस, ताक़त है पिता, है मेरी पहचान!!
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