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सावन की पहली बूँद

 

बादल की पहली दस्तक, मन के आँगन आई, 
भीग गया हर कोना, हर साँस मुस्काई। 
पीपल की टहनी बोली, झूले की है बारी, 
छत की बूँदों ने फिर, गाई प्रेम पिचकारी। 
 
मिट्टी ने भी मुँह खोला, सौंधी-सौंधी भाषा, 
मन में उठे भावों की, भीनी-भीनी आशा। 
चुनरी उड़ती दिशा-दिशा, लहराए सावन, 
पलकों पर ठहरी जैसे, बरखा में जीवन। 
 
बिरहा के गीतों में, घुलता राग अधूरा, 
झोपड़ी की दीवारें भी, रोतीं तन्हा-सी सूरत। 
बच्चों की हँसी बिखरे, कीचड़ के संग संग, 
भीग रहा हर रिश्ता, जैसे कोई उमंग। 
 
सावन की पहली बूँदें, दिल तक उतरें आज, 
हर किसी की आँखों में, बसी कोई आवाज़। 
वो जो गया है दूर कहीं, उसे लिखूँ संदेस, 
“बरखा आई फिर वही, लेकर तेरा भेस।”

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