पंछी
बाल साहित्य | किशोर साहित्य कविता डॉ. सत्यवान सौरभ15 Nov 2024 (अंक: 265, द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)
(बाल दिवस विशेष)
छोटे-छोटे पंछी लेकिन,
बातें बड़ी-बड़ी सिखाते।
उड़ते ऊँचे आसमान में,
मंज़िल की ये राह दिखाते।
ये छोटे-छोटे जीव मगर,
इनसे ये नभ भी हारा है।
आत्मबल से ओत-प्रोत ये,
मिल उड़ना इनको प्यारा है।
बड़े-बड़े जो ना कर पाए,
पल भर में ये कर जाते।
छोटे-छोटे पंछी लेकिन,
बातें बड़ी-बड़ी सिखाते।
लड़ते हैं ये तूफ़ानों से,
उड़ सूरज से भी बात करें।
पंख रुकते हैं कब इनके,
सागर, पर्वत भी पार करें।
कोमल काया के हैं लेकिन,
सदा हौसले ये आज़माते।
छोटे-छोटे पंछी लेकिन,
बातें बड़ी-बड़ी सिखाते।
तिनके-पत्ती जोड़-जोड़ सब,
रहे घरौंदे हैं सभी सजे।
इच्छा जो दाने-पानी की,
कमा श्रम से, लेते हैं मज़े।
प्यारी-सी एक सीख देकर,
अंतर्मन को है हर्षाते।
छोटे-छोटे पंछी लेकिन,
बातें बड़ी-बड़ी सिखाते।
अपने घर, गलियाँ नगर में,
यदि मधुर स्वर गुंजाना है।
मनुज सहेजे पंछी-पंछी,
गीत यही अब मिल गाना है।
ये नन्हे हैं मित्र हमारे,
हमसे बस ये आस लगाते।
छोटे-छोटे पंछी लेकिन,
बातें बड़ी-बड़ी सिखाते।
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