टूट रहे परिवार!
काव्य साहित्य | दोहे डॉ. सत्यवान सौरभ15 May 2022 (अंक: 205, द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)
(15 मई-परिवारों का अंतर्राष्ट्रीय दिवस)
बदल गए परिवार के, अब तो सौरभ भाव!
रिश्ते-नातों में नहीं, पहले जैसे चाव!!
टूट रहे परिवार हैं, बदल रहे मनभाव!
प्रेम जताते ग़ैर से, अपनों से अलगाव!!
ग़लती है ये ख़ून की, या संस्कारी भूल!
अपने काँटों से लगे, और पराये फूल!!
रहना मिल परिवार से, छोड़ न देना मूल!
शोभा देते हैं सदा, गुलदस्ते में फूल!!
होकर अलग कुटुम्ब से, बैठें ग़ैरों पास!
झुँड से निकली भेड़ की, सुने कौन अरदास!!
राजनीति नित बाँटती, घर-कुनबे-परिवार!
गाँव-गली सब कर रहें, आपस में तकरार!!
मत खेलो तुम आग से, मत तानों तलवार!
कहता है कुरुक्षेत्र ये, चाहो यदि परिवार!!
बग़िया सूखी प्रेम की, मुरझाया है स्नेह!
रिश्तों में अब तप नहीं, कैसे बरसे मेह!!
बैठक अब ख़ामोश है, आँगन लगे उजाड़!
बँटी समूची खिड़कियाँ, दरवाज़े दो फाड़!!
विश्वासों से महकते, हैं रिश्तों के फूल!
कितनी करों मनौतियाँ, हटे न मन की धूल!!
सौरभ आये रोज़ ही, टूट रहे परिवार!
फूट कलह ने खींच दी, आँगन बीच दीवार!!
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