सोता हूँ माँ चैन से, जब होती हो पास!!
आलेख | ललित निबन्ध डॉ. सत्यवान सौरभ15 May 2023 (अंक: 229, द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)
हम मदर्स डे की औपचारिकता अवश्य निभाते हैं मगर वास्तविकता इससे बहुत दूर है। जब तक माँ के हाथ पैरों में जान है और गाँठ में पैसे हैं हम माँ को प्यार करते हैं मगर जैसे ही ये दोनों चीज़ें माँ से दूर चली जाती हैं हमारे प्यार का पैमाना भी बदल जाता है विशेषकर माँ के वृद्धावस्था के दिनों में। उस समय हम अपने बीबी बच्चों में घुलमिल जाते है और माँ को बेसहारा छोड़ देते है।
—डॉ. सत्यवान सौरभ
माँ शब्द का विश्लेषण शायद कोई कभी नहीं कर पाएगा, यह दो शब्द इतनी विशालता अपने अंदर समेटे हुए हैं जिसकी व्याख्या करना सम्भव नहीं है। बच्चा जन्म लेने के बाद सबसे पहले जो शब्द बोलता है वह है माँ। माँ वो है जो हमें जीना सिखाती है, दुनिया में वो पहला इन्सान जिसे हम मात्र स्पर्श से जान जाते हैं वो होती है ‘माँ’। 9 महीने तक अपने पेट में रखने के बाद, इतनी परेशानियों के बाद वो हमें जन्म देती है। वो होती है ‘माँ’ छोटे हो या बड़े माँ को हर वक़्त अपने बच्चे की चिंता होती है।
माँ का प्यार अंधा होता है जिसे केवल अनुभव किया जा सकता है। भारत की संस्कृति में माता को पूजनीय माना जाता है। माँ को ख़ुशियाँ और मान-सम्मान देने के लिए पूरी ज़िन्दगी भी कम होती है। फिर भी विश्व में माँ के सम्मान में मातृ दिवस मनाया जाता है। स्नेह, त्याग, उदारता और सहनशीलता के कितने प्रतिमान गढ़ती है माँ, इसे कौन देखता है। उसका वात्सल्य अपने बच्चों के लिए कितनी बार आँसू बहता है। यह वह दिन है जब हम अपनी माँ के आभारी होते हैं जिसने हमें इतना कुछ दिया है और अभी भी हमारे लिये बहुत कुछ कर रही है।
माँ को परिभाषित करने के लिए शब्द कम पड़ जायेंगे लेकिन उसे हम कुछ शब्दों में परिभाषित नहीं कर पायेंगे।
माँ ममता की खान है, धरती पर भगवान!
माँ की महिमा मानिए, सबसे श्रेष्ठ-महान!!
माँ कविता के बोल-सी, कहानी की ज़ुबान!
दोहों के रस में घुली, लगे छंद की जान!!
माँ वीणा की तार है, माँ है फूल बहार!
माँ ही लय, माँ ताल है, जीवन की झंकार!!
माँ ही गीता, वेद है, माँ ही सच्ची प्रीत!
बिन माँ के झूठी लगे, जग की सारी रीत!!
माँ हरियाली दूब है, शीतल गंग अनूप!
मुझमे तुझमे बस रहा, माँ का ही तो रूप!!
कोई भी चोट पहले माँ को लगती है फिर बच्चे को। माँ के प्यार का क़र्ज़ चुकाया नहीं जा सकता। बच्चा चाहे कितना भी बड़ा हो जाए माँ का आँचल उसे सबसे सुरक्षित महसूस होता है। तो उस ‘माँ’ के लिए भी एक दिन उसका अपना होना आवश्यक हो जाता है। इसे लोकप्रिय बनाया अमेरिका की ऐना ने। जी हाँ, लाखों लोग इस दिन को ‘मर्दस डे’ एक सुअवसर के रूप में मनाते हैं और अपनी माँ को उनके बलिदान, समर्थन, प्रयास के लिए दिल से धन्यवाद करते हैं। यही वजह है कि हर साल मई के दूसरे रविवार को दुनिया भर में मदर्स डे मनाया जाता है। साल का एक दिन सिर्फ़ माँ के नाम होता है, जिसे मदर्स डे के नाम से हम जानते हैं। माँ को सम्मान देने वाले इस दिन को कई देशों में अलग-अलग तारीख़ पर सेलिब्रेट किया जाता है। लेकिन भारत समेत ज़्यादातर देशों में मई के दूसरे रविवार को ही मदर्स डे के रूप में मनाया जाता है।
अगर आप अपनी माँ के साथ रहते हैं तो उन्हें गले लगा कर शुभकामनाएँ दें, आप अपनी माँ के साथ-साथ दुनिया की हर माँ का सम्मान करें, आदर करें, तो इससे बड़ा तोहफ़ा दुनिया में कुछ और हो ही नहीं सकता और माँ का आशीर्वाद सदा कवच बनकर आपको हर कष्ट से मुक्ति दिलाता है।
हम मदर्स डे की औपचारिकता अवश्य निभाते हैं मगर वास्तविकता इससे बहुत दूर है। जब तक माँ के हाथ पैरों में जान है और गाँठ में पैसे है हम माँ को प्यार करते हैं मगर जैसे ही ये दोनों चीज़ें माँ से दूर चली जाती हैं हमारे प्यार का पैमाना भी बदल जाता है विशेषकर माँ के वृद्धावस्था के दिनों में। उस समय हम अपने बीबी बच्चों में घुलमिल जाते है और माँ को बेसहारा छोड़ देते हैं।
बुढ़ापा बहुत बुरा होता है। यह वही समय है जब माँ को सबसे ज़्यादा प्यार की ज़रूरत होती है और हम माँ को दुत्कार देते हैं। यह समय किसी भी माँ के लिए बहुत दुख भरा है। वह अपने बच्चों को अपना सब कुछ लुटा कर बड़ा करती है और यही बच्चा बड़ा होकर सबसे पहले अपनी माँ को ही अलग-थलग कर देता है। भारत के अधिकांश घरों की यही कहानी है जिसे झुठलाया नहीं जा सकता। आश्चर्य की बात है कि आज की पढ़ी-लिखी युवा पीढ़ी अपने वृद्ध माता-पिता का सम्मान नहीं करती है। वृद्ध हो जाने पर संतानें अपनी संतानों को तो बहुत प्यार दुलार करती हैं, पर वृद्ध माता-पिता उपेक्षित महसूस करते हैं।
‘माँ’ को देवी सम्मान दिलाना वर्तमान युग की सबसे बड़ी आवश्यकता में से एक है। माँ प्राण है, माँ शक्ति है, माँ ऊर्जा है, माँ प्रेम, करुणा और ममता का पर्याय है। माँ केवल जन्मदात्री ही नहीं जीवन निर्मात्री भी है। माँ धरती पर जीवन के विकास का आधार है। माँ ने ही अपने हाथों से इस दुनिया का ताना-बाना बुना है। सभ्यता के विकास क्रम में आदिमकाल से लेकर आधुनिक-काल तक इंसानों के आकार-प्रकार में, रहन-सहन में, सोच-विचार, मस्तिष्क में लगातार बदलाव हुए। लेकिन मातृत्व के भाव में बदलाव नहीं आया। उस आदिमयुग में भी माँ, माँ ही थी। तब भी वह अपने बच्चों को जन्म देकर उनका पालन-पोषण करती थी। उन्हें अपने अस्तित्व की रक्षा करना सिखाती थी। आज के इस आधुनिक युग में भी माँ वैसी ही है। माँ नहीं बदली। विक्टर ह्यूगो ने माँ की महिमा इन शब्दों में व्यक्त की है कि एक माँ की गोद कोमलता से बनी रहती है और बच्चे उसमें आराम से सोते हैं।
तेरे आँचल में छुपा, कैसा ये अहसास!
सोता हूँ माँ चैन से, जब होती हो पास!!
माँ तेरे इस प्यार को, दूँ क्या कैसा नाम!
पाये तेरी गोद में, मैंने चारों धाम!!
माँ को धरती पर विधाता की प्रतिनिधि कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। सच तो यह है कि माँ विधाता से कहीं कम नहीं है। क्योंकि माँ ने ही इस दुनिया को सिरजा और पाला-पोसा है। कण-कण में व्याप्त परमात्मा किसी को नज़र आये न आए माँ हर किसी को हर जगह नज़र आती है। कहीं अण्डे सेहती, तो कहीं अपने शावक को, छौने को, बछड़े को, बच्चे को दुलारती हुई नज़र आती है। माँ एक भाव है मातृत्व का, प्रेम और वात्सल्य का, त्याग का और यही भाव उसे विधाता बनाता है।
माँ विधाता की रची इस दुनिया को फिर से, अपने ढंग से रचने वाली विधाता है। माँ सपने बुनती है और यह दुनिया उसी के सपनों को जीती है और भोगती है। माँ जीना सिखाती है। पहली किलकारी से लेकर आख़िरी साँस तक माँ अपनी संतान का साथ नहीं छोड़ती। माँ पास रहे या न रहे माँ का प्यार दुलार, माँ के दिये संस्कार जीवन भर साथ रहते हैं। माँ ही अपनी संतानों के भविष्य का निर्माण करती है। इसीलिए माँ को प्रथम गुरु कहा गया है। स्टीव वंडर ने सही कहा है कि मेरी माँ मेरी सबसे बड़ी अध्यापक थी, करुणा, प्रेम, निर्भयता की एक शिक्षका। अगर प्यार एक फूल के जितना मीठा है, तो मेरी माँ प्यार का मीठा फूल है।
अब हमारी बारी है कि हम अपनी माँ को सम्मान दें और प्यार दें जिससे वह अपनी बची ज़िन्दगी हँसी-ख़ुशी से व्यतीत कर सके।
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