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रोम-रोम में है बसे, सौरभ मेरे राम

 

{प्रभु श्रीराम की स्तुति में डॉ. सत्यवान सौरभ के बाईस दोहे}
 
1.
राम नाम है हर जगह, राम जाप चहुँओर। 
चाहे जाकर देख लो, नभ तल के हर छोर॥
2.
नगर अयोध्या, हर जगह, त्रेता की झंकार। 
राम राज्य का ख़्वाब जो, आज हुआ साकार॥
3.
रखो लाज संसार की, आओ मेरे राम। 
मिटे शोक मद मोह सब, जगत बने सुखधाम॥
4.
मानव के अधिकार सब, होने लगे बहाल। 
राम राज्य के दौर में, रहते सभी निहाल॥
5.
रामराज्य की कल्पना, होगी तब साकार। 
धर्म, कर्म, सच, श्रम बने, उन्नति के आधार॥
6.
राम नाम के जाप से, मिटते सारे पाप। 
राम नाम ही सत्य है, सौरभ समझो आप॥
7.
मद में डूबे जो कभी, भूले अपने राम। 
रावण-सा होता सदा, उनका है अंजाम॥
8.
राम भक्त की धार हैं, राम जगत आधार। 
राम नाम से ही सदा, होती जय जयकार॥
9.
जगह-जगह पर इस धरा, है दर्शनीय धाम। 
बसे सभी में एक से, है अपने श्री राम॥
10.
राम सदा से सत्व है, राम समय का तत्त्व। 
राम आदि है अन्त हैं, राम सकल समत्व॥
11.
राम-राम सबसे रखो, यदि चाहो आराम
पड़ जायेगा कब पता, सौरभ किससे काम॥
12.
राम नाम से मैं करूँ, मित्रों तुम्हें प्रणाम। 
जीवन खुशमय आपका, सदा करे श्रीराम॥
13.
राम-राम मुख बोल है, संकटमोचन नाम। 
ध्यान धरे जो राम का, बनते बिगड़े काम॥
14.
रोम-रोम में है बसे, सौरभ मेरे राम। 
भजती रहती है सदा, जिह्वा आठों याम॥
15.
उसका ये संसार है, और यहाँ है कौन। 
राम करे सो ठीक है, सौरभ साधे मौन॥
16.
हर क्षण सुमिरे राम को, हों दर्शन अविराम। 
राम नाम सुखमूल है, सकल लोक अभिराम॥
17.
जात-पाँत मन की कलह, सच्चा है विश्वास। 
राम नाम सौरभ भजें, पंडित और' रैदास॥
18.
सहकर पीड़ा आदमी, हो जाता है धाम। 
राम गए वनवास को, लौटे तो श्रीराम॥
19.
बन जाते हैं शाह वो, जिनको चाहे राम। 
बैठ तमाशा देखते, बड़े-बड़े जो नाम॥
20.
जपते ऐसे मंत्र वो, रोज़ सुबह औ' शाम। 
कीच-गंद मन में भरी, और ज़ुबाँ पे राम॥
21.
राम राज के नाम पर, कैसे हुए सुधार। 
घर-घर दुःशासन खड़े, रावण है हर द्वार॥
22.
हारे रावण अहम तब, मन हो जय श्री राम। 
धीर-वीर गम्भीर को, करे दुनिया प्रणाम॥
 

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